Puri Rath Yatra 2021: भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra) की पौराणिक कथा का ज्ञान हम सभी को है। हम सब जानते हैं कि भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई दाऊ बलभद्र और बहन सुभद्रा (Baldau- Subhadra) के साथ 15 दिन तक औसर घर में वास (Home Quarantine) करते हैं। ओसर घर यानी वह स्थान जहां किसी का आना -जाना मना है। औसर घर उनके मुख्य महल या मंदिर से अलग है। ऐसे में प्रश्र स्वाभाविक है कि आखिर भगवान का ओसर घर में वास कुल 15 दिनों का क्यों होता है। कोरोना के इस दौर से गुजर रहे श्रद्धालु मन का यह सहज प्रश्र है। जो भावनाओं के समुद्र में उमड़ते ज्वार की तरह ही उठता है। भक्त का भगवत एकात्म भाव इसे पुष्ट करता है कि हो , ना हो भगवान को भी कोरोना जैसे ही किसी वायरस ने पीडि़त किया है। जिसके फलस्वरूप उन्हें ओसर घर में क्वारंटाइन (Lord Jagannath Quarantine Himself) होना पड़ा है।
भगवान जगन्नाथ क्वारंटाइन क्यों होते हैं (Bhagwan Jagannath Quarantine Kyun Hote Hain)
कोरोना महामारी फैलने के बाद पूरी दुनिया ने 15 दिन के क्वारंटाइन उपचार का नया अर्थ ग्रहण किया है। वायरस संक्रमण के बारे में सभी जान गए हैं कि अगर वायरस का हमला होगा तो आपको एक सप्ताह से लेकर 15 दिन तक अपने शरीर का विशेष ध्यान रखना होगा। सबसे अलग-थलग होकर क्वारंटाइन होना होगा यानी ओसर घर में वास करना होगा। इम्युनिटी को बढ़ाने वाले खाद्य व पेय पदार्थों का सेवन करना होगा। आयुर्वेद से लेकर एलोपैथी तक हर चिकित्सा पद्धति में क्वारंटाइन का कोई विकल्प नहीं है। दूसरों को वायरस के संक्रमण से बचाना है तो संक्रमित हो चुके व्यक्ति को एकांत वास यानी ओसर घर जाना ही पड़ेगा। तो क्या भगवान ने अपने भक्तों की प्राण रक्षा व रोग रक्षा के लिए खुद ही क्वारंटाइन का विकल्प चुना है।
रथयात्रा की परंपरा और पूजा पद्धति पर ध्यान दें तो ऐसा प्रतीत होता है कि हजारों साल पहले भले ही कोरोना वायरस नहीं था लेकिन तब कोई ऐसा वायरस जरूर सक्रिय हुआ था जिसने पूरे जम्बूदीप को प्रभावित किया होगा। तब ही लोगों ने क्वारंटाइन और इम्युनिटी बढ़ाने के उपायों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। शायद इसीलिए धर्माचार्यों ने भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में इन तत्वों को शामिल किया। प्राचीन काल में राजा के शासन और आदेश से ज्यादा धर्मादेश प्रभावी थे। जब भगवान को स्नान के बाद सर्दी-जुकाम हुआ। वह ओसर घर में वास करेंगे और काढ़ा का प्रयोग करेंगे तो उनके भक्त भी वही करेंगे। भक्त और भगवान का संबंध ही कुछ ऐसा है जो -जो गुंसाई यानी भगवान को प्रिय है वही सब कुछ भक्त के जीवन का लक्ष्य हो जाता है। शायद समाज को क्वारंटाइन और इम्युनिटी वाले खान-पान के लिए प्रेरित करने का इससे श्रेष्ठ तरीका दूसरा नहीं हो सकता है।
जगन्नाथ रथयात्रा में क्यों भगवान जाते हैं ओसर घर
भगवान जगन्नाथ की यात्रा का प्रारंभ ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा से होता है। भक्तों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान जगन्नाथ का जन्म हुआ है। इसी दिन भगवान जगन्नाथ , बहन सुभद्रा व बलदाऊ को स्नान के लिए मंदिर के निकट स्नान मंडप में ले जाया जाता है। यहां तीनों को 108 कलशों से शाही स्नान कराया जाता है।
इस स्नान के बाद तीनों को ज्वर यानी बुखार हो जाता है तब उपचार के लिए ओसर घर ले जाया जाता है। यह ओसर घर मंदिर से अलग हटकर एकांत में होता है जहां किसी का भी आना - जाना पूरी तरह वर्जित है। यहां भगवान पूरे 15 दिन वास करते हैं और हर रोज उन्हें काढ़ा भोग लगाया जाता है। इस काढ़ा भोग में विभिन्न जड़ी-बूटी का अर्क भी शामिल है।
ओसर घर में 15 दिन के वास के बाद भगवान पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं। ओसर घर से निकलकर भगवान अपने भक्तों को दर्शन देते हैं जिसे नवयौवन नेत्र उत्सव कहा जाता है। भगवान के स्वस्थ होने के बाद उनके दर्शन की अभिलाषा से भक्त विह्वल होने लगते हैं। सभी देखना चाहते हैं कि उनके अस्वस्थ हुए भगवान अब कैसे हैं तब भगवान नगर भ्रमण का निर्णय करते हैं। इसके लिए सुभद्रा की मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाने की घोषणा करते हैं।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान अपनी बहन सुभद्रा व भैया बलदाऊ के साथ तीन रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर के लिए निकलते हैं। भगवान के दर्शन और उनके रथ को खींचने की अभिलाषा लिए नगर वासी भी घरों से बाहर निकल आते हैं और पूरी दुनिया भक्त व भगवान के अनन्य प्रेम का दर्शन करती है।