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Ram Manohar Lohia: किसने रोका नेशनिलिस्टों व सोशलिस्टों के बीच एकता को, पढ़ें योगेश मिश्र का ये लेख
Indian Politics: अदृश्य ताक़तों ने राष्ट्रवादी नेताओं को एक होने नहीं दिया। इन दोनों नेताओं का निधन एक साल के भीतर ही हो गया।
Ram Manohar Lohia Politics: इसे महज़ संयोग नहीं कह सकते हैं कि देश के जिन भी नेताओं ने राष्ट्रवाद की बात की, राष्ट्रवाद का परचम लहराया वे असमय काल कवलित हो गये। यही नहीं, अदृश्य ताक़तों ने राष्ट्रवादी नेताओं को एक होने नहीं दिया। जब देश की तमाम ताक़तें डॉ राम मनोहर लोहिया (Dr. Ram Manohar Lohia) और पंडित दीन दयाल उपाध्याय (PT. Deen Dayal Upadhyaya) को क़रीब लाने का खाका तैयार कर चुकी थीं, तब इन दोनों नेताओं का निधन एक साल के भीतर ही हो गया। पर यह आज तक रहस्य है कि आख़िर इन दोनों नेताओं की एक साल के भीतर ही मृत्यु कैसे हुई।
डॉ. राम मनोहर लोहिया का निधन आज के दिल्ली स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल में हुआ था। लोहिया जी ने बीमारी के दौरान मिलने आये पत्रकार कुलदीप नैय्यर से कहा था कि डॉक्टर हमें मार डालेंगे। लोहिया के निधन के बाद जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो उस समय के स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण ने डॉ लोहिया की मौत की जाँच करानी चाही तो पता चला कि डॉ लोहिया से जुड़ी फाइल ग़ायब है। दीनदयाल जी की मौत मुगलसराय स्टेशन पर हुई। बताया गया कि पैसे चुराने के चक्कर में चोरों ने उन्हें ट्रेन से धक्का देकर मार दिया। क्योंकि दीनदयाल जी ने उन्हें चोरी करते हुए देख लिया था। परेशान करने वाली बात यह है कि दो लोग पकड़े गये। अदालत ने एक को बरी कर दिया। दूसरे को सजा सुनाई।
डॉ जोशी और लोहिया की मुलाकात
भाजपा नेता व पार्टी के पूर्व अध्यक्ष डॉ मुरली मनोहर जोशी बताते हैं कि डॉ लोहिया को उस समय के जनसंघ के क़रीब लाने और एक साझा फ़्रंट बनाने का काम जब उन्हें सौंपा गया तब डॉ लोहिया मिर्ज़ापुर में तीन दिन के प्रवास पर थे। डॉ जोशी डॉ लोहिया से मिलने निकल पड़े। जब वहाँ पहुँचे तो देखा पेड़ के नीचे लुंगी व बनिया पहने डॉ लोहिया किताब पढ़ रहे थे। समय दोपहर का था। डॉ लोहिया ने पूछा कि तुम खाना कहाँ खाओगे? डॉ जोशी का जवाब था, "मिलने आपसे आया हूँ तो खाना दूसरी जगह क्यों खाऊँगा।" वैसे भी सिंचाई विभाग के जिस डाक बंगले में डॉ लोहिया रूके थे, वहां से बाज़ार बहुत बाहर था।
डॉ लोहिया ने कहा कि मैं तुम्हारे बाहर खाने की बात इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि हमारा कुक डोम है। यह बहुत सालों से मेरे साथ है। उसका नाम राम स्वरूप है। डॉ जोशी का बड़ा सुंदर उत्तर था, " आपका कुक इतने दिनों से आपका भोजन पका रहा है डोम ही है। हमारे यहाँ तो डोम कुक अगर भोजन बना रहा होता है तो वह ब्राह्मण हो जाता है।" क्योंकि भोजन पकाना ऐसा ही काम है। हमारे यहाँ जातियाँ जन्म से नहीं कर्म से निर्धारित होती है।
पंडित दीनदयाल-डॉ लोहिया को साथ लाने की कोशिश
डॉ जोशी बताते हैं कि हमने डॉ लोहिया जी से कहा कि आपसे बड़ा कोई नेशनलिस्ट नहीं है। पंडित दीनदयाल जी से बड़ा कोई सोशलिस्ट नहीं है। दीन दयाल जी के पास कोई बैंक अकाउंट नहीं है। दो तीन से ज़्यादा कपड़े नहीं हैं। उनका खर्चा उनके प्रशंसक व समर्थक वहन करते हैं। वह समाज के अंतिम पायदान पर खड़े आदमी की चिंता करते हैं। आदि इत्यादि। आप हिमालय का सवाल उठाते हैं, राम व रामायण आपके चरित्र का हिस्सा हैं। कृष्ण व शंकर से आपका आध्यात्मिक रिश्ता है। गाय व गंगा आपकी चिंता का विषय हैं। भारत विभाजन के गुनहगारों को आपने दिगंबर किया। आदि इत्यादि। इसलिए आप दोनों को एक साथ काम करना चाहिए ।
डॉ जोशी ने डॉ लोहिया को जनसंघ की कानपुर की बैठक में सम्मिलित होने का आमंत्रण भी दिया। डॉ लोहिया कानपुर पहुँचे। उन्होंने अपनी पार्टी के किसी नेता को नहीं बताया। किसी नेता के घर नहीं रूके। वह रेलवे स्टेशन के रिटायरिंग रूम में रूके। जनसंघ के सम्मेलन में शरीक हुए। क़रीब आधा घंटे बोले। बाद में उन्होंने कहा कि आप में से किसी को कोई सवाल पूछना हो तो पूछे। कोई सवाल किसी ओर से नहीं आया। डॉ लोहिया ने कहा कि आप सब कुछ पूछ नहीं रहे है। या तो आप सबको मेरी बात अच्छी नहीं लगी। आप लोगों के बारे में कहा जाता है कि आप फ़ासिस्ट हैं। किसी को सुनते नहीं।
तभी डॉ जोशी ने उठकर कहा, " यह बात नहीं है। आप जो बातें कह रहे थे। हम लोग भी बिल्कुल वही बातें करते हैं। यही हमारे भी विचार हैं। इसलिए हम चाहते हैं कि जनसंघ के साथ आप कॉमन प्लेटफ़ार्म पर काम करें। डॉ लोहिया हंसे और कहा कि यदि यही भाषण हमने सोशलिस्टों के बीच दिया होता तो वे आप की तरह चुप नहीं बैठते। शोर शराबा बहुत करते। डॉ लोहिया ने कानपुर के सम्मेलन में सोशलिस्टों व जनसंघ के साथ काम करने का रास्ता खुला। इसी के बाद से डॉ लोहिया व पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया। पर यह लंबा नहीं चलने दिया गया।
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