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नहीं मिल रहा शिक्षा का अधिकार, तो पाने के लिए धरने पर बैठ गया परिवार

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Published on: 15 Nov 2017 10:16 AM IST
नहीं मिल रहा शिक्षा का अधिकार, तो पाने के लिए धरने पर बैठ गया परिवार
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गोरखपुर: प्राइवेट स्कूलों में गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए 25 प्रतिशत सीट सुरक्षित होती हैं और किसी भी स्कूल से किसी बच्चे को फीस नहीं भरने के कारण नहीं निकाला जा सकता है। पर गोरखपुर में एक प्राइवेट स्कूल से एक ही परिवार के 4 बच्चों को इसीलिए निकल दिया गया क्योंकि उनके पिता 1 महीने की फीस नहीं दे पाए थे। इस स्कूल में एक साथ पढ़ने 2 भाई और 2 बहनों को स्कूल प्रबंधन ने बेइज्जत करके स्कूल से बाहर किया और शिकायत करने पर इनके पिता को पीटा भी। कई बार अधिकारियों और मुख्यमंत्री कार्यालय से भी पत्र भिजवाने के पास जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो अब यह बच्चे अपने पिता के साथ जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना देने को मजबूर हो गए हैं। अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए यह बच्चे अब सीएम योगी से फरियाद कर रहे हैं।

गोरखपुर के जिलाधिकारी कार्यालय पर स्कूल ड्रेस में धरना देते इन 4 बच्चों की आंखों में कुछ कर गुजरने का जूनून है, पढ़ लिखकर परिवार की दिक्कत को दूर करने और अपने पिता का सहारा बनने का सपना है। इनके इन्ही सपनों को पूरा करने के लिए इनके गरीब पिता ने इनका दाखिला अपने इलाके के सबसे अच्छे प्राइवेट स्कूल में करवाया। सोचा था कि किसी तरह से पेट काटकर अगर बच्चे पढ़ गए तो उनकी ग़ुरबत ख़त्म हो जाएगी और बच्चों की ऊची उड़ान से इनका भी सपना पूरा हो जाएगा। लेकिन इनके सपनों पर ग्रहण उस समय लग गया जब इनके स्कूल प्रबंधन ने इन सभी भाई बहनों को स्कूल से बाहर निकाल दिया।

इनको स्कूल से इसलिए निकल दिया गया क्योंकि इनके पिता ने इनकी एक महीने की फीस समय पर नहीं भरी थी। बच्चों को जब स्कूल से निकाला गया तो इनको यकीं नहीं हुआ। आंखों में आंसू लिए बच्चे जब घर आए तो इनके हालत को देखकर इनके पिता ने इनसे कारण पूछा और वजह जानने पर जब वह स्कूल पहुंचे तो स्कूल वालों ने इनकी एक ना सुनी। इसके बाद इस परिवार ने अपने बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए हर दरवाजे को खटखटाया। चाहे वो शिक्षा विभाग का ऑफिस हो, जिलाधिकारी कार्यालय हो या फिर सूबे के मुखिया योगी का कार्यालय। योगी के गोरखपुर कार्यालय से एक पत्र स्कूल प्रशासन के लिए लिखा गया कि इनके बच्चों को सहानुभूतिपूर्वक स्कूल में ले लिया जाए, लेकिन जब यह पत्र स्कूल के प्रबंधक के पास पहुंचा तो उन्होंने इस चिट्ठी का जवाब एक जोरदार तमाचे के रूप में दिया।

इस परिवार की आवाज जब सरकारी अधिकारियों के कानों को भेद नहीं पाई तो आज वह अपने बच्चों के साथ जिलाधिकारी कार्यालय पर धरने पर बैठ गया। इनकी मांग है कि इनके बच्चों को इंसाफ मिले और इनको भी पढ़ने का अधिकार मिले। आज योगी और मोदी जी बच्चों को पढ़ाने के लिए कई योजनाएं चला रहे हैं और प्राइवेट स्कूल में गरीब बच्चों को 25 प्रतिशत फ्री पढ़ाई की सुविधा भी दी है पर हकीक़त में ऐसा कुछ होता नहीं है।

वहीं इस मामले पर जब स्कूल के प्रबंधक श्री प्रकाश पांडे से बात की गई, तो उन्होंने दलील दी कि कैश अली के चार बच्चे पिछले सत्र से उनके यहां पढ़ रहे थे। 20 हजार रुपए उनकी फीस बाकी थी, और जब नया सत्र एक अप्रैल से शुरू हुआ, तो इन्होंने कोई भी फीस जमा नहीं की, पिछला पैसा जमा नहीं किया, फिर वो मई में आये, पिछले सत्र के बकाये में से उन्होंने कुछ जमा किया, फिर जुलाई में आये, और पिछले सत्र के कुछ पैसे बकाये में से 6 हजार रुपए जमा किया, दोनों रसीदों पर प्रीवियस बैलेंस लिखा हुआ है। इसके बाद से वो तमाम तरह की शिकायतें करने लगे।

इस मामले में स्कूल प्रबंधक कैश अली को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और उनसे या बच्चों से किसी तरह के दुर्व्यवहार की बात को गलत बता रहे हैं। जबकि इस मामले में कैश का कहना है की उन्होंने मई 2017 तक का पूरा फीस जमा कर चुके हैं। इस मामले की जांच कर रहे गोरखपुर के नगर शिक्षा अधिकारी का कहना है की दो पक्षों से उनकी बात हुई है और इसमें दोनों पक्ष अपने अपने तर्क दे रहे हैं। इन दोनों के विवाद के कारण ये मामला सुलझ नहीं पाया है। जिलाधिकारी ने इनके बच्चो को परिषदीय स्कूल में दाखिला करवाने का आदेश दे दिया गया है। पर प्राइवेट स्कूल में 25 प्रतिशत सीट गरीबों को क्यों नहीं मिल पाती, इस सवाल पर इनका कहना है कि हमारे यहां निर्धारित अवधि में जब आवेदन किया जाए तभी इन योजनाओं का लाभ मिल सकता है।

इस मामले में स्कूल प्रबंधन के अड़ियल रुख के कारण कोई भी बात आगे नहीं बढ़ पा रही है। यह बच्चे उसी प्राइवेट स्कूल में अपनी पढाई चाहते हैं जहां से इनको निकाला गया है। आज इनके द्वारा धरना देने के बाद जिलाधिकारी ने नगर शिक्षा अधिकारी को एक बार फिर इस मामले का जल्द निपटारा कराने का निर्देश दिया है पर इसके चक्कर में इन बच्चों का यह साल बर्बाद हो रहा है और कहीं से किसी तरह का कोई ठोस आश्वासन नहीं मिलने के कारण इनकी आंखों के सपने भी टूटने लगे हैं।​



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