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UP Election 2022: मऊ सदर सीट पर चुनाव न लड़कर भी चर्चा में मुख्तार, बेटे अब्बास को घेरने में जुटी BJP

UP Election 2022: मऊ सदर सीट से बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी के चुनाव मैदान में उतरने के कारण चुनाव में मुख्तार की ही चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman TiwariPublished By Deepak Kumar
Published on: 3 March 2022 6:46 PM IST
Sonbhadra News
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यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो:न्यूज़ट्रैक)

UP Election 2022: पूर्वांचल की मऊ सदर विधानसभा सीट (Mau Sadar Assembly seat) हर बार की तरह इस बार भी चर्चा में है। इस बार बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी (Bahubali MLA Mukhtar Ansari) चुनाव तो नहीं लड़ रहे हैं। मगर उनके बेटे अब्बास अंसारी (Son Abbas Ansari) के चुनाव मैदान में उतरने के कारण चुनाव में मुख्तार की ही चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है। मुख्तार ने इस सीट पर 1996 में पहला चुनाव जीता था और उसके बाद लगातार उनका ही इस सीट पर कब्जा रहा है।

मुस्लिम बहुल इस सीट पर इस बार भाजपा (BJP) के जुझारू प्रत्याशी अशोक सिंह मुख्तार (Candidate Ashok Singh Mukhtar) के बेटे अब्बास को कड़ी चुनौती देते दिख रहे हैं। बसपा (BSP) के भीम राजभर भी ताकत दिखाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। मऊ सदर सीट (Mau Sadar Assembly seat) पर आखिरी चरण में 7 मार्च को मतदान होना है। इसलिए चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में सभी प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंक दी है।

मुख्तार ने बेटे को सौंपी विरासत

मऊ सदर सीट (Mau Sadar Assembly seat) पर पहले बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी (Bahubali MLA Mukhtar Ansari) के ही चुनाव लड़ने की चर्चा थी और इसके लिए अदालत से अनुमति भी ले ली गई थी मगर आखिर में मुख्तार ने इस बार चुनाव न लड़ने का फैसला किया। मुख्तार के अधिवक्ता दरोगा सिंह ने अदालत से नामांकन की औपचारिकताएं पूरी कराने की अनुमति देने की मांग की थी। अदालत की ओर से मुख्तार के अधिवक्ता और अन्य लोगों को जेल में जाकर औपचारिकताएं पूरी कराने की अनुमति भी मिल गई थी।

अधिवक्ताओं ने सारी प्रक्रियाएं पूरी भी कराई थीं। इसके बाद माना जा रहा था कि मुख्तार इस बार भी चुनावी अखाड़े में कूदेंगे मगर आखिरकार मुख्तार ने चुनाव न लड़ने का फैसला किया। मुख्तार के करीबियों का कहना है कि उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे अब्बास अंसारी (Abbas Ansari)) को सौंप दी है। अब्बास अंसारी (Abbas Ansari)) सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के टिकट पर किस्मत आजमाने के लिए चुनाव मैदान में उतरे हैं।

भाजपा प्रत्याशी के जुझारू तेवर

भाजपा ने अब्बास के खिलाफ इलाके पर मजबूत पकड़ रखने वाले अशोक सिंह को चुनाव मैदान में उतारकर कड़ी चुनौती दी है। अशोक सिंह के ठेकेदार भाई अजय सिंह की 2009 में हत्या कर दी गई थी। इस मामले में मुख्तार अंसारी (Bahubali MLA Mukhtar Ansari) का नाम सामने आया था। गवाह और साक्ष्य के अभाव में मुख्तार अंसारी (Bahubali MLA Mukhtar Ansari) को इस मामले में बरी किया जा चुका है मगर दोनों परिवारों के बीच तभी से खींचतान चल रही है। अशोक सिंह को मुख्तार के खिलाफ सहानुभूति का लाभ मिलने की बात भी कही जा रही है। अब्बास अंसारी (Abbas Ansari)) और अशोक सिंह के बीच जनता की अदालत में लड़ी जा रही इस लड़ाई पर अब सबकी निगाहें लगी हुई है।

2017 का जनादेश

2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर उतरे मुख्तार अंसारी (Bahubali MLA Mukhtar Ansari) ने सुभासपा प्रत्याशी महेंद्र राजभर को हराकर जीत हासिल की थी। मुख्तार अंसारी (Bahubali MLA Mukhtar Ansari) को इस चुनाव में 96,793 मत मिले थे जबकि महेंद्र राजभर ने 88,095 मत पाकर उन्हें कड़ी चुनौती दी थी। सपा के अल्ताफ अंसारी 72,016 मत पाने में कामयाब हुए थे।

मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी (Abbas Ansari) पिछले चुनाव में घोसी विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे। उन्हें फागू चौहान के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा था। फागू चौहान को अब बिहार का राज्यपाल बनाया जा चुका है। इस चुनाव में फागू चौहान को 88,298 मत मिले थे जबकि अब्बास अंसारी 81,295 मत पाने में कामयाब हुए थे। अब्बास अंसारी (Abbas Ansari) ने पिछला चुनाव बसपा के टिकट पर लड़ा था जबकि इस बार वे सुभासपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे हैं।

मऊ सदर का जातीय समीकरण

मऊ सदर सीट (Mau Sadar Assembly seat) का जातीय समीकरण मुख्तार को चुनाव जिताने में काफी मददगार साबित होता रहा। इस सीट पर करीब 1.70 लाख मुस्लिम मतदाता है। दलित मतदाताओं की संख्या करीब 80,000 है। यादव मतदाताओं की संख्या करीब 90 हजार और राजभर मतदाता करीब 45,000 हैं। क्षत्रिय मतदाता भी बड़ी ताकत रखते हैं और उनकी संख्या भी करीब और 45,000 है। वैश्य और चौहान मतदाता भी प्रत्याशियों की हार-जीत में बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं।

सुभासपा का सपा से गठबंधन होने के कारण अब्बास अंसारी (Abbas Ansari) की नजर मुस्लिम और यादव मतदाताओं पर टिकी हुई है। इस समीकरण के बल पर मुख्तार अंसारी (Bahubali MLA Mukhtar Ansari) इस चुनाव क्षेत्र में अपनी ताकत दिखाते रहे हैं।

दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह की नजरें गैर मुस्लिम और गैर यादव मतों के ध्रुवीकरण पर टिकी हुई हैं। बसपा प्रत्याशी भीम राजभर को दलित और राजभर मतदाताओं पर काफी भरोसा है। कांग्रेस प्रत्याशी माधवेंद्र भी ताकत दिखाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। हालांकि वे मुख्य मुकाबले से बाहर दिख रहे हैं

अब्बास को घेरने में जुटी है भाजपा

इस क्षेत्र पर मुख्तार अंसारी (Bahubali MLA Mukhtar Ansari) की मजबूत पकड़ मानी जाती है और 1996 से 2017 तक लगातार चुनाव जीतकर उन्होंने इस बात को साबित भी किया है। उनकी पकड़ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2002 और 2007 का चुनाव उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीता था। 2012 के चुनाव में वे कौमी एकता दल से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे थे जबकि 2017 का चुनाव उन्होंने बसपा के टिकट पर लड़ा था। मुस्लिम मतदाताओं के निर्णायक भूमिका में होने के बावजूद सपा इस सीट पर आज तक जीत हासिल नहीं कर सकी है।

इस बार मुख्तार के रसूख को भाजपा की ओर से कड़ी चुनौती मिल रही है। मुख्तार के खिलाफ हमेशा आवाज बुलंद करने के कारण अशोक सिंह की इलाके में अच्छी खासी लोकप्रियता है और इसी कारण वे अब्बास अंसारी (Abbas Ansari) को चुनौती देते दिख रहे हैं। अब सबकी निगाहें इस बात पर लगी हुई हैं कि अब्बास अंसारी (Abbas Ansari) इस सीट पर परिवार का कब्जा बनाए रख पाते हैं या नहीं।

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Deepak Kumar

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