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UP Election 2022 7th Phase: क्षत्रपों की ताकत की होगी परीक्षा, इस बार मिल रही है कड़ी चुनौती

UP Election 2022 7th Phase: 2017 के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल की सीटों पर भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था मगर इस बार भाजपा गठबंधन को सपा गठबंधन की ओर से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman TiwariPublished By Shreya
Published on: 6 March 2022 6:26 AM GMT
UP Election 2022 7th Phase: क्षत्रपों की ताकत की होगी परीक्षा, इस बार मिल रही है कड़ी चुनौती
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यूपी चुनाव (डिजाइन फोटो- न्यूजट्रैक) 

UP Election 2022 7th Phase: प्रदेश विधानसभा चुनाव में सातवें और आखिरी चरण का चुनावी शोर भी अब थम चुका है। सोमवार को पूर्वी उत्तर प्रदेश में वाराणसी (Varanasi) समेत नौ जिलों की 54 सीटों पर मतदान (UP 7th Phase Election Date) होना है। अगले चरण के मतदान में सपा और भाजपा (BJP vs SP) की ताकत के साथ ही क्षेत्रीय क्षत्रपों (Satraps Voters) की ताकत का भी आंकलन होना है। खास तौर पर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के मुखिया ओमप्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) और अपना दल की मुखिया और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल (Anupriya Patel) की असली ताकत भी आखिरी चरण में ही पता चलेगी।

2017 के विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2017) में पूर्वांचल की सीटों (Purvanchal Seats In UP) पर भाजपा, ने अच्छा प्रदर्शन किया था मगर इस बार भाजपा गठबंधन को सपा गठबंधन की ओर से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

पिछले चुनाव में भाजपा गठबंधन था मजबूत

सातवें चरण में 9 जिलों की 54 विधानसभा सीटों पर 613 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे हैं। इसी चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी और सपा मुखिया अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ में भी मतदान होना है। चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में दोनों सियासी दिग्गजों ने अपने-अपने संसदीय इलाके में पूरी ताकत लगाई है। यदि 2017 में इन 54 सीटों के चुनावी नतीजों को देखा जाए तो इनमें से 29 सीटों पर भाजपा, 11 पर सपा, छह पर बसपा, 4 पर अपना दल (एस), 3 पर सुभासपा और एक सीट पर निषाद पार्टी को जीत हासिल हुई थी।

पिछले चुनाव में अपना दल और सुभासपा दोनों भाजपा गठबंधन में शामिल थे मगर अब सुभासपा ने सपा से हाथ मिला लिया है। पिछले चुनाव में भाजपा बीस और सपा 10 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। बसपा 14, कांग्रेस छह, सुभासपा तीन और निषाद पार्टी की एक सीट पर दूसरे स्थान पर रही थी। अब आखिरी चरण में जीत हासिल करने के लिए इन सभी दलों ने पूरी ताकत लगा रखी है।

सहयोगी दलों की होगी परीक्षा

सातवें चरण की सीटों पर सपा और भाजपा के साथ सहयोगी दलों की भी परीक्षा होनी है। भाजपा ने सातवें चरण की 54 में से 48 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं जबकि 6 सीटें अपने सहयोगी दलों को दी हैं। अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के उम्मीदवार तीन-तीन सीटों पर किस्मत आजमाने के लिए चुनावी रण में कूदे हैं। आखिरी चरण में सपा के प्रत्याशी 43 सीटों पर चुनाव मैदान में कूदे हैं जबकि सुभासपा के सात और अपना दल कमेरावादी के दो प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं।

अरविंद राजभर-ओमप्रकाश राजभर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

पिता और पुत्र कड़े मुकाबले में फंसे

सातवें चरण में ओमप्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद की सियासी पकड़ की परीक्षा होनी है। सातवें चरण की कई सीटों पर राजभर, पटेल और निषाद समुदाय से जुड़े मतदाता काफी संख्या में है। इसी चरण में ओमप्रकाश राजभर और उनके बेटे अरविंद राजभर की किस्मत का भी फैसला होना है। ओमप्रकाश राजभर गाजीपुर जिले की जहूराबाद सीट से चुनाव लड़ रहे हैं जबकि उन्होंने अपने बेटे को वाराणसी जिले की शिवपुर विधानसभा सीट पर चुनाव मैदान में उतारा है।

ओमप्रकाश राजभर की ओर से बड़े-बड़े दावे तो जरूर किए जा रहे हैं मगर सच्चाई यह है कि दोनों सीटों पर पिता और पुत्र कड़े मुकाबले में फंसे हुए हैं। सुभासपा मुखिया की ओर से राजभर बिरादरी का पूरा वोट मिलने का दावा किया जा रहा है मगर कई सीटों पर भाजपा ने राजभर प्रत्याशी उतारकर उनके लिए मुसीबतें भी खड़ी कर दी है। खुद उनकी सीट पर भाजपा प्रत्याशी कालीचरण राजभर उन्हें कड़ी चुनौती देते दिख रहे हैं। उनके बेटे को भी भाजपा प्रत्याशी और प्रदेश के मंत्री अनिल राजभर की ओर से कड़ी चुनौती मिल रही है।

अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

क्षत्रपों की ताकत पर टिकीं निगाहें

सातवें चरण में केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और निषाद पार्टी के संजय निषाद को भी अपनी पकड़ साबित करनी है। भाजपा ने दोनों पार्टियों को तीन-तीन सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका दिया है। दूसरी ओर सपा के सहयोगी दल अपना दल (कमेरावादी) को दो सीटों पर ताकत दिखानी है। सियासी जानकारों का कहना है कि आखिरी चरण में सपा और भाजपा के साथ ही क्षेत्रीय क्षत्रपों की ताकत की भी परीक्षा होगी। अब यह देखने वाली बात होगी कि इनमें से कौन नेता ताकतवर बनकर उभरने में कामयाब होता है।

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