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UP Election 2022: जानें क्यों अपने लिए सुरक्षित सीटों पर ही उतरते हैं पार्टियों के सुप्रीमो

UP Election 2022: प्रदेश की 403 विधान सभा सीटों में से तक़रीबन 10 ऐसी VVIP सीटें हैं जहाँ पर प्रदेश के कद्दावर नेता अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इन 10 सीटों पर ना केवल प्रदेश की बल्कि समूचे देश की नजरें टिकी हुई हैं।

Rakesh Mishra
Written By Rakesh MishraPublished By Shreya
Published on: 9 Feb 2022 7:01 PM IST (Updated on: 9 Feb 2022 8:31 PM IST)
UP Election 2022
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यूपी चुनाव

UP Election 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (UP Vidhan Sabha Chunav) को लेकर सरगर्मियां जोरों पर हैं। प्रदेश की 403 विधान सभा सीटों के लिए सात चरणों में चुनाव होंगे। पहले चरण का चुनाव 10 फरवरी को होगा। ऐसे में सभी प्रत्याशी और दल अपने पुरे दमखम से चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। प्रदेश की 403 विधान सभा सीटों में से तक़रीबन 10 ऐसी VVIP सीटें हैं जहाँ पर प्रदेश के कद्दावर नेता अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इन 10 सीटों पर ना केवल प्रदेश की बल्कि समूचे देश की नजरें टिकी हुई हैं। इन्ही 10 सीटों में से कुछ ऐसी भी सीटें हैं जो यह निर्धारित करेंगी की प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री (UP Next CM) कौन होगा। आइये उन 10 सीटों पर नजर डालते हैं जहां से अपनी-अपनी पार्टियों के दिग्गज दंगल में उतरेंगे।

सीएम योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो- न्यूजट्रैक)

गोरखपुर शहर- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ-भाजपा

गोरखपुर शहर (Gorakhpur Seat) प्रदेश की पहली ऐसी सीट है जिस पर सभी की नजर है। यहाँ से खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) चुनाव मैदान में हैं। भाजपा ने यहाँ से अपने चार बार के विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल का टिकट काट कर योगी को मैदान में उतारा है। यह पहली बार है कि योगी विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। विधानसभा का यह क्षेत्र गोरखपुर की उस संसदीय सीट में आता है, जहां से योगी पांच बार लगातार सांसद रह चुके हैं।

गोरखनाथ मंदिर के प्रभाव वाली इस सीट पर आलम यह रहा है कि अभी तक सपा-बसपा का तो यहाँ से खाता तक नहीं खुला है। लेकिन इस बार योगी को उनके घर में ही घेरने के लिए समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर कभी भाजपा का ब्राह्मण चेहरा रहे स्वर्गीय उपेंद्र शुक्ला की पत्नी शुभावती शुक्ला को मैदान में उतारा है। भाजपा के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष और गोरखपुर के क्षेत्रीय अध्यक्ष रहे उपेंद्र शुक्ला की पकड़ ब्राह्मणों में मजबूत मानी जाती थी।

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर सदर लोकसभा सीट पर 2018 में हुए उपचुनाव में भाजपा ने उपेंद्र को प्रत्याशी बनाया था। योगी के सीएम रहते हुए मंदिर की इस परंपरागत सीट पर उपेंद्र शुक्ला को सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद से पराजित होना पड़ा। आज भी स्थानीय लोगों खास कर ब्राह्मणों में इस बात की चर्चा होती है की योगी और उनके लोगों ने उपेंद्र शुक्ल को जीताने का पूरा प्रयास नहीं किया। सपा ने शुभावती को मैदान में उतार कर ब्राह्मणों के उसी असंतोष को भुनाने का प्रयास किया है।

बता दें कि गोरखपुर शहर सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। सपा इस सीट पर अपने परम्परातगत वोटर्स मुस्लिम के साथ ब्राह्मणों को जोड़कर कुछ उलटफेर करना चाहती है। जानकारी के मुताबिक गोरखपुर शहर सीट पर करीब 4.50 लाख वोटर हैं। यहां कायस्थ 95 हजार, ब्राह्मण 55 हजार, मुस्लिम 50 हजार, क्षत्रिय 25 हजार, वैश्य 45 हजार, निषाद 25 हजार, यादव 25 हजार, दलित 20 हजार इसके अलावा पंजाबी, सिंधी, बंगाली और सैनी कुल मिलाकर करीब 30 हजार वोटर हैं। लेकिन ऐसे में एक बड़ा सवाल यह तो उठेगा कि क्या भाजपा के परंपरागत वोटर ब्राह्मण एकतरफा योगी को हराने के लिए सुभावती के पक्ष में वोट करेंगे? ऐसा संभव तो नहीं दिखता। क्यूंकि यह पहला प्रयास नहीं है जब कोई ब्राह्मण चेहरा योगी के खिलाफ खड़ा हो।

इससे पहले 2009 के संसदीय चुनाव में भी योगी के खिलाफ बाहुबली और क्षेत्र के एक बड़े ब्राह्मण चेहरे हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी ने भी अपनी किस्मत आजमायी थी। लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। मुस्लिम वोटर यूँ तो सपा के साथ खड़े हैं। लेकिन इस सीट पर बसपा द्वारा एक मुस्लिम प्रत्याशी ख्वाजा शम्सुद्दीन मैदान में उतार देने के कारण वहां भी मतों के बॅटवारे के आसार हैं। वहीँ गोरखपुर शहर सीट से भीम आर्मी के संयोजक चंद्रशेखर आजाद भी चुनाव लड़ रहे है। इन दोनों के मैदान में आने से मुस्लिम और दलित मतों का बँटवारा होना तय है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि इस VVIP सीट पर योगी को हराना विपक्ष के लिए मुश्किल ही होगा। बीते चुनाव के आंकड़ों पर यदि हम एक नजर डाले तो पाएंगे की अपने संसदीय चुनावों में भी योगी शहर विधान सभा से अच्छे खासे वोट पाते रहे हैं।

उनके आखिरी दो चुनावों पर यदि नजर डाले तो 2009 के संसदीय चुनाव में उन्हें गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से कुल पड़े 122983 मतों में से 77438 वोट मिले । जबकि दूसरे स्थान पर रहे बसपा के विनय शंकर तिवारी को सिर्फ 25352 वोट। उस समय यहां सपा को महज 11521 मत हासिल हुए थे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में तो योगी को इस विधान सभा से मिले वोटों का ग्राफ और बढ़ गया। 2014 के संसदीय चुनाव में गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से कुल पोल हुए 206155 वोटों में से अकेले 133892 वोट मिले। दूसरे स्थान पर रहीं सपा की राजमती निषाद को 31055 और बसपा के रामभुआल निषाद को 20479 वोट ही हासिल हो सके। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि विपक्ष के लिए योगी को इस सीट पर हराना आसान नहीं होगा।

अखिलेश यादव (फोटो- न्यूजट्रैक)

करहल-पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव-सपा

समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) मैनपुरी जिले की महत्वपूर्ण सीट करहल विधानसभा (Karhal Assembly Seat) से चुनावी मैदान में हैं। करहल मुलायम सिंह की कर्मभूमि रही है। यहीं से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की। यहीं पर उन्होंने पहलवानी के दावंपेंच भी सीखे हैं। यह सीट यादव बहुल है। यही वजह है कि यहां सपा की मजबूत किलेबंदी है। वर्ष 1992 में मुलायम सिंह यादव के पार्टी बनाने के बाद से सपा ने इस सीट पर अब तक छह चुनाव लड़े हैं, जिसमें से पांच चुनाव जीते हैं। इस सीट पर समाजवादी पार्टी का वर्चस्व है। 2007, 2012 और 2017 लगातार तीन बार के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी यहां से जीत दर्ज करती आ रही है। इस सीट पर अभी तक केवल एक-एक बार कांग्रेस और भाजपा ने जीत का स्वाद चखा है।

वहीं बसपा का यहाँ तभी तक खाता भी नहीं खुला है। वर्ष 2002 में सोबरन सिंह यादव ने यहां भाजपा का खाता खोला। पर, इसके बाद उन्होंने पाला बदल लिया और सपा में चले गए। 2007, 2012 और 2017 में लगातार तीन बार वे सपा के टिकट पर विधायक चुने गए। 2017 के चुनाव में सपा उम्मीदवार सोबरन सिंह यादव ने 104221 वोट पाकर भाजपा के राम शाक्य को 38405 वोट से शिकस्त दी थी। इस सीट पर सवा लाख के आसपास यादव मतदाता हैं। शाक्य मतदाता 40 हजार, क्षत्रिय और जाटव मतदाता 25-25 हजार हैं। ब्राह्मण और मुसलमान मतदाता 15-15 हजार बताए जाते हैं। पाल-धनगर मतदाता 15 से 20 हजार के बीच हैं। कठेरिया मतों की संख्या 15 हजार और लोधी की संख्या 12 हजार के करीब मानी जाती है। इस बार अखिलेश यादव के मुकाबले जातीय समीकरणों को साधने के लिए भाजपा ने केंद्रीय मंत्री और सांसद एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतारा है। कभी मुलायम के सुरक्षा अधिकारी रहे एसपी सिंह बघेल

को भाजपा ने क्षेत्र के पाल, धनगर और बघेल समाज के वोट बैंक को साधने के लिए मैदान में उतारा गया है। बघेल को मैदान में उतार भाजपा यह भी सन्देश देना चाहती है की वो अखिलेश को वॉक ओवर न देकर एक लड़ाई प्रस्तुत करना चाहती है। भाजपा बघेल के सजातीय मतों, अन्य एससी वोटरों के साथ गैर यादव पिछड़ों और सर्वणों को गोलबंद करने की कोशिश में है। बसपा ने इस बार जाटव समाज के कुलदीप नारायण उर्फ दीपक पेंटर को प्रत्याशी बनाया है। बसपा की नजर भी जाटव वोटर के साथ ब्राह्मण मतदाताओं पर भी होगी। कांग्रेस ने यहाँ प्रत्याशी नहीं उतारा है। ऐसे में जातीय समीकरणों को देख कर यह कहा जा सकता है कि भाजपा भले ही इस मुकाबले को रोचक बनाने का प्रयास कर रही हो । लेकिन इस सीट पर 30 प्रतिशत के करीब यादव मतदाताओं की संख्या को देखते हुए परिणाम का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं होना चाहिए।

केशव प्रसाद मौर्य (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सिराथू-डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य-भाजपा

कौशांबी जिले की सिराथू विधानसभा सीट (Sirathu Assembly Seat) पर भी इस बार सभी की नजरें हैं। कारण यह कि इस बार इस सीट से प्रदेश सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य (Deputy CM Keshav Prasad Maurya) मैदान में हैं। मौर्या इसी सीट से 2012 में पहली बार वह विधायक बने थे। बाद में वो 2014 में फूलपुर से सांसद चुने गए। केशव प्रसाद मौर्या के लोकसभा सांसद चुने जाने के कारण यह सीट रिक्त हो गई जिसके कारण 2014 में ही लोकसभा चुनाव के साथ इस सीट पर उपचुनाव कराए गए। इसमें समाजवादी पार्टी के वाचस्पति ने जीत दर्ज की। 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा के शीतला प्रसाद ने जीत दर्ज की।

केशव मौर्य का जन्म सिराथू में ही हुआ था। यहीं वह बचपन में अपने पिताजी के साथ रेलवे स्टेशन के बाहर चाय बेचा करते थे। हॉकर के तौर पर अखबार बांटने का काम करते थे। सिराथू की अगर बात की जाए तो यह सीट विकास के नजरिये से काफी पिछड़ी हुई थी। यहां बिजली-पानी-सड़क-शिक्षा, सिंचाई और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों का जबरदस्त अभाव रहता था। केशव प्रसाद मौर्य ने डिप्टी सीएम रहते हुए यहां विकास के काफी काम कराए। सड़कों का जाल बिछाया।कई फ्लाईओवर बनवाए। इस बार मौर्य के खिलाफ सपा गठबंधन ने पल्लवी पटेल को मैदान में उतारा है। पल्लवी खुद को यहाँ की बहू बताती है। वह लड़ाई को बेटा बनाम बहू बनाने में जुटी हैं। वह यह कह रहीं हैं कि जब बेटा किसी काम का न रह जाये तो बेटे को बाहर कर के बहू को कमान दे दी जानी चाहिए।

भाजपा की सहयोगी केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की बहन पल्लवी कुर्मी समाज से आती हैं। बीजेपी ने कुर्मी समुदाय के मौजूदा विधायक शीतला पटेल का टिकट काटकर केशव मौर्य को उम्मीदवार बनाया है। सपा इसे कुर्मियों की अस्मिता से जोड़ कर और पल्लवी पटेल को आगे कर कुर्मी वोटों में सेंधमारी करने की कोशिश में है। सिराथू में अगर जातीय समीकरणों की बात की जाए तो यहां 3 लाख 80 हजार 839 वोटर हैं।इनमे से 19 फीसदी सामान्य जाति के, 33 फीसदी दलित, 13 फीसदी मुस्लिम और करीब 34 फीसदी पिछड़े वर्ग से हैं। पिछड़ों में कुर्मी समाज के वोटर यहां निर्णायक भूमिका में हैं। बीएसपी ने यहां से संतोष त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया है। यहां इस बार केशव मौर्य और सपा गठबंधन में सीधा मुकाबला होने की उम्मीद है।

ऐसे में 30 फीसदी से ज्यादा दलित वोटरों का रुख काफी अहम साबित हो सकता है। स्थानीय विश्लेषकों की मानें तो कौशांबी में विकास के तमाम काम कराए जाने और सियासी और सामजिक समीकरण साधने के बावजूद इस बार केशव प्रसाद मौर्य के लिए सिराथू की डगर आसान नहीं है। यहाँ लोगों का मानना है कि उपमुख्यमंत्री का चुनाव टफ है । लेकिन मैनेज करने पर लगे हैं। अगर स्थानीय बनाम बाहरी मुद्दा जोर पकड़ा तो उप मुख्यमंत्री जीत जाएंगे नही तो यह सीट केशव मौर्य के लिए आसान नहीं होगी।

आजम खान (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

रामपुर-आजम खान-सपा

नवाबों के इस गढ़ में हमेशा से ही आजम खान और उनके परिवार का दबदबा रहा है। समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के नेता आजम खान (Azam Khan) वर्तमान में तो सांसद हैं । लेकिन 2022 विधानसभा चुनाव में वो रामपुर सीट (Rampur Assembly Seat) से मैदान में उतर रहे हैं। रामपुर विधानसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में आई थी। इस सीट पर आज़म खान के दबदबे का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो रामपुर सीट से नौ बार विधायक चुने गए हैं। रामपुर सीट पर मौजूदा विधायक तंजीम फात्मा आजम खान की पत्नी हैं। आजम खान फिलहाल सीतापुर जेल में बंद हैं। समाजवादी पार्टी ने उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया है। चर्चा है कि आजम खान इस बार जेल से ही चुनाव लड़ सकते हैं।

योगी सरकार (Yogi Government) ने आजम खान पर शिकंजा कसने के साथ ही बड़े पैमाने पर मुकदमे दर्ज कराए। आजम के खिलाफ 102 मुकदमे दर्ज हुए और 26 फरवरी, 2020 को उन्हें उनके परिवार के साथ जेल में डाल दिया गया। आजम खान के जेल जाने के बाद से बीजेपी उनके क्षेत्र में लगातार सक्रिय है । इस बार उनके मजबूत किले में सेंधमारी की भरसक कोशिश कर रही है। यही कारण है कि भाजपा ने यहाँ से उस शख्श को मैदान में उतारा है जिन्होने आज़म खान के खिलाफ अकेले 30 से ज्यादा FIR दर्ज कराये।

भाजपा ने यहां 46 वर्षीय आकाश सक्सेना को मैदान में उतारा है। जातीय समीकरण की बात करें तो रामपुर सीट पर सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाताओं की संख्या है, जो लगभग 80 हजार के आस पास है। वैश्य यहाँ 35 हजार हैं। लोधी- 35 हजार, एससी- 15 हजार तो वहीँ यादव मतदाताओं की संख्या 10 हजार के आस पास है। इस सीट पर भाजपा जहाँ मतों के ध्रुवीकरण पर अपनी उम्मीद लगाए बैठी है तो वहीँ आज़म खान मुस्लिम वोटों के सहारे अपनी नैया पार कराने की कोशिश करेंगे।

वैसे इस सीट पर धीरे-धीरे ही सही आज़म खान का जलवा कम होता दिख रहा है। 2012 के चुनाव में आज़म ने जहाँ इस सीट पर 60000 वोटों से जीत दर्ज की थी तो वहीँ 2017 में उनकी जीत का आंकड़ा घट कर 47000 रह गया। अब जबकि यह सम्भावना है की आज़म यह चुनाव जेल में ही रह कर लड़ेंगे, भाजपा उसका कितना फ़ायदा उठा पाती है यह देखना दिलचस्प होगा।

राजा भैया (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

कुंडा-रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया-जनसत्ता लोकतांत्रिक

कुंडा (Kunda Assembly Seat) प्रतापगढ़ की सात विधानसभा सीटों में से एक है। यह सीट भी प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीट मानी जाती है। इस सीट पर पहली बार चुनाव 1952 में हुआ था। इस सीट से इस बार जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के टिकट पर रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया (Raghuraj Pratap Singh- Raja Bhaiya) मैदान में हैं। यहां पिछले 29 सालों से रघुराज प्रताप सिंह चुनाव जीतते आ रहे हैं। राजा भैया लगातार छह बार निर्दलीय विधायक चुने गए हैं। 2002 के बाद से चुनावों में राजा भैया की सपा से नजदीकी के कारण समाजवादी पार्टी इस सीट से राजा भैया के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारती थी। लेकिन इस बार सपा ने कभी राजा भैया के करीबी रहे गुलशन यादव को मैदान में उतारा है।

गुलशन यादव, राजा भैया के पोटा केस में गवाह की हत्या के बाद चर्चा में आए। यहीं से गुलशन और राजा भैया में संपर्क बढ़ा। राजा भैया के सपोर्ट के बाद ही गुलशन यादव प्रधान और फिर कुंडा नगर पंचायत कुंडा विधानसभा सीट के के चेयरमैन पद तक पहुंचने में कामयाब हुए। बाद में राजा भैया अपनी पार्टी बना ली तो गुलशन यादव उनके साथ नहीं गए और वो सपा में ही बने रहे। सियासी समीकरण को देखें तो यहाँ राजा भैया की डगर मुश्किल दिख रही है। यहां पर 75 हजार यादव, 50 हजार ब्राह्मण, 55 हजार मुस्लिम, 30 हजार कुर्मी, 18 हजार ठाकुर, 15 हजार मौर्य, 10000 वैश्य और 90 हजार के करीब दलित मतदाता है, जिनमें पासी सबसे ज्यादा हैं।

कुंडा से सपा प्रत्याशी गुलशन यादव अगर सपा के कोर वोट बैंक यादव और मुस्लिम के साथ-साथ दलित और ब्राह्मण वोटों को अपने पक्ष में करने में कामयाब रहते हैं तो यहाँ राजा भैया के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। गौरतलब है कि इस सीट पर ब्राह्मण मतदाता अधिकतर राजा भैया के खिलाफ ही वोटिंग करते रहे हैं। यहां से भाजपा ने सिंधुजा मिश्रा को टिकट दिया है। बसपा ने मोहम्मद फहीम उर्फ़ पप्पू भाई को टिकट दिया है।

शिवपाल सिंह यादव (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

जसवंतनगर- शिवपाल सिंह यादव-सपा

जसवंतनगर सीट (Jaswantnagar Seat) भी प्रदेश की एक हाई प्रोफाइल सीट है। समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के इस गढ़ में मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) और शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) का ही दबदबा रहा है। सपा के लिए यह सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती है, और यही कारण है कि मुलायम परिवार का ही कोई व्यक्ति इस सीट से चुनाव लड़ता है। जसवंतनगर सीट पर पार्टी कोई रही हो 1967 के बाद से विधायक सिर्फ यादव ही बना है। यहां से 1996 में पहली बार सपा के टिकट पर शिवपाल विधायक बने। शिवपाल ने यहाँ से लगातार 2002, 2007, 2012 और 2017 में भी जीत दर्ज की। शिवपाल यादव एक बार फिर यहाँ से मैदान में हैं।

भाजपा ने जहाँ इस बार 32 वर्षीय विवेक शाक्य पर दांव लगाया है तो वहीँ बसपा ने एक दलित चेहरे विजेंद्र प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है। जसवंतनगर सीट पर यादवों का दबदबा है। लेकिन दलित वोटर भी काफी बड़ी संख्या में है। 2017 में भी बीजेपी को दलितों का वोट मिला था । वो दूसरे स्थान पर रही थी। अब जबकि मायावती ने यहाँ से एक दलित प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया है ।यहाँ से शिवपाल सिंह यादव की राह बहुत ही आसान ही दिखती है। इस सीट पर यादव मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा 1.40 लाख है। अनुसूचित जाति 77 हज़ार, ब्राह्मण 18 हज़ार, मुस्लिम 14 हज़ार, क्षत्रिय 12 हज़ार, कोरी शंखवार 8 हज़ार और अन्य 91 हज़ार हैं।

बीजेपी सपा मुखिया अखिलेश के चाचा शिवपाल के खिलाफ ओबीसी समुदाय का एक मजबूत प्रत्याशी उतारकर सवर्ण, गैर-यादव ओबीसी के साथ-साथ दलित वोटों को एकजुटकर करने का प्रयास कर सपा को जसवंतनगर में घेरने का प्रयास तो कर रही है लेकिन मायावती द्वारा दलित समुदाय से प्रत्याशी उतार देने के बाद भगवा दल की कोशिश सफल होती नहीं दिख रही है। यहाँ दलित वोटों का बॅटवारा स्पष्ट तौर पर होगा और जिसका सीधा फ़ायदा शिवपाल सिंह यादव को होगा।

सरधना-संगीत सोम-भाजपा

सरधना विधान सभा सीट (Sardhana Assembly Seat) पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सबसे हॉट सीट मानी जा रही है। यहाँ से बीजेपी के फायरब्रांड नेता संगीत सोम (Sangeet Som) चुनावी मैदान में हैं। मुस्लिम और जाट बाहुल्य आबादी वाली मेरठ जिले की सरधना विधानसभा सीट पर 1993 से लेकर अब तक बीजेपी का ही दबदबा रहा है। इस सीट पर समाजवादी पार्टी कभी भी जीत का परचम नहीं लहरा पायी है। इस सीट पर बसपा और भाजपा के ही उम्मीदवार जीतते रहे हैं। पिछले आठ चुनाव की अगर बात करें तो इनसे से छह बार भाजपा जीती है जबकि एक बार जनता दल और एक बार बसपा। भाजपा ने वर्तमान प्रत्याशी संगीत सोम को पहली बार 2012 के विधान सभा चुनाव में इस सीट से मैदान में उतारा था।

उसके बाद संगीत सोम ने 2017 में भी यहाँ से जीत दर्ज की थी। सपा-आरएलडी गठबंधन ने इस सीट पर इस बार अतुल प्रधान को मैदान में उतारा है। गुर्जर बिरादरी से आने वाले प्रधान, संगीत सोम को कड़ी टक्कर देते हुए दिख रहे हैं। जातीय समीकरण इस सीट का परिणाम तय करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इस विधानसभा सीट से ज्यादातर ठाकुर और जाट प्रत्याशी ही जीतते आए हैं। सरधना में अगर जातिगत आंकड़ों को देखें तो मुस्लिम यहां निर्णायक हैं। इस क्षेत्र में 80-90 हजार मुस्लिम हैं। वहीं 60 हजार से ज्यादा ठाकुर हैं। जाट आबादी यहां तकरीबन 50 हजार है। वहीं, करीब 50 हजार अनुसूचित जाति और 40 हजार गुर्जर मतदाता भी हैं।

मेरठ की सरधना विधानसभा सीट मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र मे आती है। इस संसदीय क्षेत्र से बीजेपी के संजीव कुमार बालियान सांसद हैं। सरधना में बालियान के प्रभाव को भी नकारा नहीं जा सकता। बालियान, सोम के लिए दिन रात एक किये हुए हैं। कांग्रेस ने यहाँ से एक मुस्लिम प्रत्याशी सैयद रिहानुद्दीन को उतारा है तो वहीँ बसपा ने एक दलित संजीव धामा को टिकट दिया है। हलाकि स्थानीय विश्लेषकों के अनुसार संगीत सोम का 2017 वाला जलवा इस बार नहीं दिख रहा है।

सोम को कई गांवों में जमकर विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है। उनकों गांवों में घुसने तक में दिक्कत आ रही है। किसान आंदोलन के कारण भी संगीत सोम को नुकसान उठाना पड़ सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश किसान आंदोलन का एक बड़ा केंद्र था। यहाँ के किसानों ने किसान आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। स्थानीय लोगों के अनुसार किसान आंदोलन का नुकसान भाजपा को उठाना पड़ेगा।

ब्रजेश पाठक (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

लखनऊ कैंट-ब्रजेश पाठक-भाजपा

यूँ तो सूबे की राजधानी लखनऊ की सभी विधान सभा सीटें महत्वपूर्ण हैं। लेकिन भाजपा द्वारा प्रदेश सरकार के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक को लखनऊ कैंट विधान सभा सीट (Lucknow Cantt Vidhan Sabha Seat) से उतारने से यह सीट एक हाई प्रोफाइल सीट बन गयी है। लखनऊ कैंट विधानसभा सीट बीजेपी का गढ़ रही है। यहाँ से वर्तमान में भाजपा के ही सुरेश चंद्र तिवारी विधायक हैं। यह सीट आजादी के बाद शुरुआती साल में कांग्रेस का गढ़ रही थी। भाजपा को पहली बार यहाँ 1991 में जीत मिली। लखनऊ की सभी सीटों में से यह सीट भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित मानी जा सकती है। यही कारण था की इस सीट से भाजपा के तमाम दिग्गज चुनाव लड़ना चाहते थे।

यहाँ से भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी के बेटे मयंक जोशी टिकट माँग रहे थे। जबकि समाजवादी पार्टी के बहू अपर्णा यादव ने जब भाजपा की सदस्यता ग्रहण की तब यह अनुमान लगाया गया कि अपर्णा यहाँ से चुनाव मैदान में उतरेंगी। क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में अपर्णा कैंट से ही सपा की उम्मीदवार थीं। हालाँकि समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर राजू गाँधी को टिकट दिया है। बीते चुनावों के परिणामों पर अगर नजर डाली जाए तो यह कहना मुफीद होगा इस सीट पर ब्रजेश पाठक (Brajesh Pathak) के लिए बहुत मुश्किल आने वाली नहीं है।

हालाँकि इस सीट पर जाति और धर्म की सीमा से उठ कर ही मतदान होता है लेकिन अगर जातीय समीकरणों पर नजर डाली जाये तो वह भी ब्रजेश पाठक के ही मुफीद बैठती है। जातीय संरचना के हिसाब से इस सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा 1.40-50 लाख के करीब है। वहीँ मुस्लिम करीब 40 हजार, पंजाबी और सिंधी 50 से 60 हजार, वैश्य करीब 25 हजार, अनुसूचित जातियां करीब 25 हजार हैं।

संदीप सिंह-अतरौली-भाजपा

अलीगढ़ जिले की अतरौली विधानसभा सीट (Atrauli Vidhan Sabha Seat) भी एक वीआईपी सीट है। इस सीट पर सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Kalyan Singh) के परिवार का ही वर्चस्व रहा है। पूर्व मुख्‍यमंत्री कल्याण स‍िंह अतरौली विधानसभा सीट का ही प्रत‍िन‍िध‍ित्‍व करते थे। अतरौली विधान सभा सीट पर कल्‍याण स‍िंह के पर‍िवार के दबदबे का आलम यह रहा है कि इस सीट पर बीते 50 वर्षों में इस परिवार को सिर्फ दो बार हार म‍िली है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने यहाँ से जीत दर्ज की। उस चुनाव में कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया गया था। इस बार भी भाजपा ने संदीप सिंह पर ही अपना दांव लगाया है।

यह पहला मौका होगा जब कल्याण सिंह की अनुपस्थिति में उनके परिवार के सदस्य विधान सभा का चुनाव लड़ेंगे। बीते वर्ष कल्याण सिंह का निधन हो गया। कल्याण सिंह के पुत्र और संदीप सिंह के पिता राजवीर सिंह राजू भैया एटा से सांसद हैं। सामजवादी पार्टी ने वीरेश यादव को मैदान में उतारा है। यह वही वीरेश यादव हैं जिन्होंने 2012 में कल्याण सिंह का गढ़ ढहाया था। वीरेश ने कल्याण सिंह की पुत्रवधु प्रेमलता वर्मा को पटखनी दी थी। जातीय समीकरण के हिसाब से यह सीट संदीप सिंह के लिए मुफीद बैठती है।

संदीप सिंह लोध समुदाय से आते हैं। इस सीट पर सबसे ज्यादा लोध मतदाताओं की संख्या 70,000 है। हलाकि इस सीट पर यादव और मुस्लिम मतदाताओं का गठजोड़ भाजपा के समीकरण को बिगाड़ सकता है। यहाँ यादव मतदाताओं की संख्या 60,000 है तो वहीँ 29,000 मुस्लिम मतदाता हैं। ब्राह्मण मतदाता भी इस सीट पर अच्छी खासी पैठ रखता है और उनका रुख यहाँ पर विजेता का चयन कर सकता है। यहां जाट, वैश्य, कहार मतदाता भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि अलीगढ की इस सीट पर भी मुकाबला दिलचस्प होने की उम्मीद इस बार की जा सकती है।

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Shreya

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