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Assembly Election: भाजपा को सताने लगी है चिंता, तीन साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव

Assembly Election: लोकसभा चुनाव में इस बार भाजपा को 2019 के मुकाबले 29 सीटों का नुकसान हुआ , पार्टी पता लगाने के प्रयास में है कि ओबीसी व वंचित समाज के मतदाताओं में किस दल ने सेंधमारी की है

Jyotsna Singh
Published on: 15 Jun 2024 11:50 AM IST
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Assembly Election: हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनावों ने उत्तर प्रदेश में तीन साल बाद होेने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष को कई संकेत दे गए हैं। जहां विपक्ष के लिए उसने सकारात्मक संकेत दिए हैं वहीं सत्ता पक्ष के लिए खतरे की घंटी बताने का काम किया है। दरअसल इन लोकसभा सीटों के अर्न्तगत पड़ने वाली विधानसभा सीटों की हार जीत पर गौर किया जाए तो आंकडे बेहद चौकाने वाले कहे जाएगें इन चुनावों के परिणामों को देखे तो 17 मंत्रियों को अपनी विधानसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा हैं। इनमें सूर्य प्रताप शाही ;पथरदेवा जयवीर सिंह ;मैनपुरी राकेश सचान ;भोगनीपुर ओमप्रकाश राजभर ;जहूराबाद गिरीश चन्द्र यादव ;जौनपुर असीम अरुण ;कन्नौज मयकेश्वर शरण सिंह ;तिलोइ संजीव कुमार ;ओबरा ब्रजेश सिंह ;देवबंद सुरेश राही ;हरगांव सोमेन्द्र तोमर ;मेरठ दक्षिण अनूप प्रधान ;खैर प्रतिभा शुक्ला ;अकबरपुर रनिया रजनी तिवारी ; शाहाबाद सतीश चन्द्र शर्मा ;दरियाबाद तथा विजयलक्ष्मी गौतम ;सलेमपुर के नाम शामिल हैं।

वहीं लोकसभा चुनाव में इस बार भाजपा को 2019 के मुकाबले 29 सीटों का नुकसान हुआ है। पार्टी पता लगाने के प्रयास में है कि लंबे समय से जुड़े ओबीसी व वंचित समाज के मतदाताओं में किस दल ने सेंधमारी की है। इसके साथ ही गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों में से कितने प्रतिशत मतदाताओं ने दूसरे दलों को वोट डाला है। भितरघात करने वाले नेताओं का भी पता लगाया जा रहा है। अब भाजपा इनके कारणों का पता करने में लगी हुई है।दरअसल लोकसभा के बाद प्रदेश में नौ सीटों पर होने वाले विधानसभा के उप चुनाव में भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगी। पार्टी इसके लिए सारी तैयारियों में जुट गई है। उप चुनाव उन नौ विस सीटों पर होंगे जिनके विधायक इस लोस चुनाव में जीते हैं। इसके साथ ही सपा अपने कई बागी विधायकों की सदस्यता भी समाप्त करवाने के प्रयास में है। अगर सदस्यता समाप्त हो जाती है तो इनकी सीटों पर भी उप चुनाव होंगे। वहीं, कानपुर से सपा विधायक इरफान सोलंकी को सजा होने के बाद उनकी सीट पर भी उप चुनाव होना है।


एक तरफ जहां भाजपा उत्तर प्रदेश में अपने लोकसभा चुनाव प्रदर्शन की समीक्षा करने में जुटी है, वहीं कई नेताओं ने पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए आंतरिक कलह को जिम्मेदार ठहराया है। दूसरी ओर पश्चिम यूपी के दो प्रमुख भाजपा नेता सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। समीक्षा के दौरान प्रदेश हाईकमान ने पाया है कि भाजपा का वोट 2019 के मुकाबले करीब 8.50 प्रतिशत कम हो गया है। 2014 से भाजपा ने यूपी में एकतरफा जीत का जो सिलसिला शुरू किया था, वह इस चुनाव में धराशायी हो गया। 2014 में भाजपा ने धरातल पर काम शुरू किया और जातीय समीकरणों के साथ अपना आधार बढ़ाया था। 2009 में भाजपा के पास यूपी में केवल 10 सीटें थीं और वोट 17.50 प्रतिशत ही था। 2014 में भाजपा ने सारे रेकॉर्ड तोड़कर 71 सीटें जीतीं और 42.30 प्रतिशतः वोट पाए। यह पार्टी का अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन था।


राजनीति के जानकारों का मानना है कि भाजपा ने इस बार चुनाव जीतने के लिए पन्ना प्रमुखों की भी तैनाती की थी। वोटर लिस्ट के हिसाब से हर पन्ने का प्रभारी बनारी बनाया गया था। उसके बाद भी इस चुनाव में भाजपा का यह प्रयोग भी पूरी तरह से सफल नहीं साबित हुआ। अमित शाह से लेकर संगठन के स्तर पर पन्ना प्रमुखों से काफी उम्मीदें लगाई गईं थीं कि यह मैनेजमेंट चुनाव जीत का बड़ा हथियार साबित होगा, लेकिन प्रमुख लोगों को मतदान केंद्रों तक न ला सके।कांग्रेस-सपा ने महंगाई व बेरोजगारी के मुद्दे पर भाजपा को घेरा, जिसका जवाब भाजपा के पास नहीं था। जरूरी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के अलावा बेरोजगारों को नौकरी के मुद्दे पर भाजपा पलटवार न कर सकी।


कांग्रेस ने 30 लाख बेरोजगारों को नौकरी देने का मुद्दा उठाया, जो भाजपा के खराब प्रदर्शन पर प्रभावी रहा। पूर्व केंद्रीय मंत्री और मुजफ्फरनगर से दो बार के सांसद संजीव बालियान ने पार्टी के पूर्व सरधना विधायक संगीत सिंह सोम पर समाजवादी पार्टी का समर्थन करके उन्हें चुनाव हराने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। बालियान इस बार सपा के हरेंद्र मलिक से 24,672 वोटों से चुनाव हार गए हैं।



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Shalini singh

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