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Coalition Government: एक बार फिर देश में गठबंधन की सरकार, कब-कब बनी ऐसी सरकारें, कई तो पूरा भी नहीं कर पाईं अपना कार्यकाल?

Coalition Government:देश में गठबंधन सरकार का दौर 1977 में शुरू हुआ। उस समय लोकसभा चुनाव के बाद मोराजी देसाई प्रधानमंत्री बने।

Ashish Kumar Pandey
Published on: 9 Jun 2024 12:41 PM IST
Social- Media- Photo
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Coalition Government:देश में एक बार फिर गठबंधन की सरकार बनने जा रही है। यह सरकार 9 जून को शपथ ग्रहण करने के साथ ही अस्तित्व में आ जाएगी। वाराणसी से भाजपा के सांसद चुने गए नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। नरेंद्र मोदी के पहले दो कार्यकाल 2014 और 2019 में भाजपा को स्पष्ट जनादेश मिला था। लेकिन इस बार जनता ने उन्हें बहुमत का आंकड़ा 272 से पहले ही रोक दिया। बीजेपी को इस बार अकेले दम पर केवल 240 सीटें मिली हैं। इस तरह से देखा जाए तो पीएम मोदी को इस बार गठबंधन की सरकार चलानी है।

मोदी पहली बार चलाएंगे गठबंधन की सरकार

यह पहली बार होगा जब मोदी गठबंधन की सरकार चलाएंगे। इससे पहले मोदी 2001 से 20013 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और 2014 से 2024 तक देश के प्रधानमंत्री रहे तो इस दौरान भाजपा की बहुमत वाली सरकारें रहीं। अब देश के संसदीय इतिहास में 10 साल बाद फिर से एक बार गठबंधन सरकार का दौर लौट रहा है। जब किसी एक दल को जनता ने स्पष्ट बहुमत नहीं दिया है।यहां आइए यह जानते हैं कि देश में कब-कब गठबंधन की सरकारें बनीं? ये गठजोड़ वाली सरकारें कितने समय तक चलीं? गठबंधन की कौन सी सरकार सबसे अधिक तो कौन सी सरकारें सबसे कम दिनों तक चलीं?


1977 में बनी भारत की पहली गठबंधन सरकार

भारत में पहली गठबंधन की सरकार 1977 में बनी जब कई दलों ने मिलकर एक दल के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा और एक पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। यह पहली बठबंधन की सरकार के साथ ही देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार भी थी। जीत के बाद इस गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई बने। मोरारजी के नेतृत्व में गठबंधन दो साल तक चला, लेकिन वैचारिक मतभेदों के चलते जनता पार्टी टूट गई। सरकार के गृह मंत्री रहे चरण सिंह ने पार्टी से अलग होकर एक नई पार्टी जनता पार्टी सेक्युलर नाम से बना ली और कांग्रेस पार्टी के बाहरी समर्थन से चरण सिंह प्रधानमंत्री बन गए। यह देश में गठबंधन का पहला प्रयोग था और यह प्रयोग केवल 23 दिनों तक चला। 28 जुलाई 1979 को चरण सिंह सरकार ने शपथ ली और जब 20 अगस्त 1979 को नई सरकार को बहुमत के लिए संसद का सत्र बुलाया गया तो कांग्रेस ने चरण सिंह सरकार के समर्थन वापसी का एलान कर दिया। इसके बाद चरण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, नए सिरे से चुनाव होने तक चरण सिंह कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर पद पर बने रहे। इसके बाद 1980 में देश में पहली बार मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस जीतकर वापस सत्ता में आई।


1989 में वीपी सिंह ने बनाई गठबंधन सरकार

1980 के लोकसभा चुनाव के करीब नौ साल बाद देश में एक बार फिर गठबंधन सरकार वाला दौर लौटा जब 1989 में देश में लोकसभा के चुनाव हुए जिसमें राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। यह पहली बार था जब किसी भी पार्टी या चुनाव-पूर्व गठबंधन को स्पष्ट जनादेश नहीं मिला था। चुनाव के लिए पूर्व कांग्रेस नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राष्ट्रीय मोर्चा नाम से एक नया गठबंधन बनाया। चुनाव में वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल ने 143 सीटें हासिल कीं। वी.पी. सिंह को भाजपा और लेफ्ट ने बाहर से समर्थन दिया। वहीं, डीएमके, एजेपी और टीडीपी जैसे दल सरकार में शामिल हुए। इस तरह कुल 280 सांसदों के समर्थन से वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। वहीं, 194 सीटों वाली सबसे बड़ी कांग्रेस विपक्ष में बैठी। लेकिन वीपी सिंह की यह सरकार एक साल भी नहीं चल सकी। 1990 का वह समय था जब यूपी के अयोध्या में राम मंदिर के लिए आंदोलन अपनी चरम पर था। इसी आंदोलन के दौरान भाजपा के सबसे बड़े नेता लाल कृष्ण आडवाणी अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए देशव्यापी यात्रा पर निकाल रहे थे। इसी दौरान उन्हें बिहार के समस्तीपुर में उस समय की लालू प्रसाद यादव की सरकार के आदेश पर गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और वीपी सिंह की सरकार गिर गई।


फिर चंद्रशेखर बने प्रधानमंत्री

इस सियासी घटनाक्रम के बाद एक और गठबंधन सरकार बनाने की कवायद शुरू हुई। इसी कड़ी में राष्ट्रीय मोर्चे का हिस्सा रही जनता दल दो भागों में बंट गई। जनता दल के वरिष्ठ नेता चंद्रशेखर नवंबर 1990 में कांग्रेस पार्टी के बाहरी समर्थन से वीपी सिंह के बाद देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन चंद्रशेखर की सरकार भी चंद महीनों की मेहमान रही और गिर गई।


1991 में फिर हुआ मध्यावधी चुनाव

फिर से एक बार देश में 1991 में नए सिरे से मध्यावधि चुनाव कराए गए जिसमें कांग्रेस फिर से सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई। चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस नेता पीवी नरसिम्हा राव जनता दल के बाहरी समर्थन से प्रधानमंत्री बने। इस चुनाव में कांग्रेस को 244 सीटें मिलीं और वह बहुमत के जादुई आंकड़े से दूर रह गई। इस तरह से नरसिम्हा राव ने पांच साल तक अल्पमत की सरकार चलाई।


1996 में अटल ने चलाई 13 दिन की सरकार

1996 में फिर देश में लोकसभा के चुनाव हुए जिसमें भाजपा पहली बार सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर साकने आई। इस चुनाव में भाजपा ने 161 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस 140 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही और जनता दल 46 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रहा। कई छोटे दलों के समर्थन के साथ भाजपा ने वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी और अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन वे संसद में बहुमत हासिल नहीं कर सके और उनकी सरकार केवल 13 दिन ही चल सकी।


अटल बिहारी वाजपेयी सकरार के गिरने के बाद संयुक्त मोर्चा बना और एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाले संयुक्त मोर्चे में जनता दल और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के साथ-साथ वामपंथी और कम्युनिस्ट पार्टियां शामिल थीं। यह गठबंधन भी आपसी झगड़े के कारण बहुत दिनों तक नहीं चल पाया और देवगौड़ा की सरकार भी कुछ महीनों की मेहमान रही और एक साल के अंदर ही गिर गई। उसके बाद इंद्र कुमार गुजराल ने उनकी जगह ली, लेकिन उनकी सरकार भी एक साल से ज्यादा नहीं चल सकी।

जब 1998 में अटल ने चलाई 13 महीने की सरकार

1998 के लोकसभा चुनाव में देश में एक बार फिर एक गठबंधन सरकार आई। 1998 के चुनावों में अटल बिहारी ने नेशनल डेमक्रेटिक अलायंस यानी एनडीए नाम से गठबंधन बनाया जिसमें शिवसेना और एआईएडीएमके जैसी पार्टियां शामिल थीं। यह सरकार 13 महीने तक चली उसके बाद एआईएडीएमके ने अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद 1999 में नए सिरे से फिर लोकसभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में भाजपा ने 182 सीटों पर जीत दर्ज की और 299 सदस्यों के समर्थन के साथ अटल विहारी वाजपेयी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस बार वाजपेयी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया। यह देश की पहली ऐसी गठबंधन सरकार थी जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था।


2004-2014 तक जब यूपीए दो बार सत्ता में रहा

अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद 2004 में एनडीए को बड़ा झटका लगा। 2004 के आम चुनावों में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इसके बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) नाम से देश में एक नया गठबंधन बना। पहले यूपीए सरकार में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री चुना गया जो वित्त मंत्री रह चुके थे। मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन की यह सरकार पांच साल तक चली और सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया। 2009 में भी यूपी गठबंधन की सरकार बनाने में सफल रही। इस सरकार के मुखिया भी मनमोहन सिंह ही रहे। उन्हें फिर से प्रधानमंत्री बनाया गया। कांग्रेस ने एक बार फिर 2009 से 2014 तक गठबंधन की सरकार चलाई। इसके बाद 2014 में हुए आम चुनाव में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी जो पांच साल तक चली। 2019 में हुए चुनाव में एक बार फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण बहमुत की सरकार बनी और उसने अपना कार्यकाल पूरा किया। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला और दस साल बाद फिर से गठबंधन का युग लौट आया। मतलब साफ है कि करीब दस साल बाद देश में एक बार फिर गठबंधन सरकार बन रही है जिसके मुखिया नरेंद्र मोदी हैं। वे आज शाम को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे और इसके साथ ही गठबंधन सरकार का दौर फिर से अस्तित्व में आ जाएगा।



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Shalini Rai

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