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UP Politics: यूपी चुनाव से पहले दल बदलने वाले नेताओं का भविष्य, पढ़ें ये पूरी रिपोर्ट
UP Politics: देश की राजनीति में बीते कुछ सालों में नेताओं के दल बदलने की मानो एक प्रथा सी हो गई है। जिसका सीधा असर चुनाव तथा नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर भी पड़ता है।
UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव नजदीक है। उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव देश के सबसे अहम राज्यों में से एक माना जाता है। उत्तर प्रदेश के चुनाव में 2 दिन से एक शब्द बहुत ज्यादा सुर्खियों में है और वह शब्द है 'दल-बदलू' वैसे तो यह शब्द हंसी मजाक में उपयोग किया जाता है। लेकिन भारतीय राजनीति में बहुत पहले से इसके उदाहरण मिलते रहे हैं।
हाल फिलहाल की राजनीति को देखें तो दल बदलने की प्रथा कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। चाहे वह गोवा चुनाव हो, कर्नाटक चुनाव हो, पश्चिम बंगाल चुनाव या अगले महीने होने वाला उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव। हर चुनाव में चुनाव से ठीक पहले या चुनाव के ठीक बाद सभी पार्टियों से दल-बदलू नेता सामने आ ही जाते हैं। मगर विडंबना यह है कि भारतीय राजनीति में नेता खुद को दल-बदलू सुनना स्वीकार नहीं करते हैं वह कहते हैं कि यह विचारों की बदलाव है।
चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव समेत देश में पांच राज्यों के चुनाव तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। इन राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू हो चुकी है। जिसके बाद से ही चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश में नेताओं के दल बदलने का सिलसिला तेजी से चल रहा है। कुछ दिन पहले कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता माने जाने वाले इमरान मसूद ने कांग्रेस पार्टी छोड़ समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया था। वहीं कल भारतीय जनता पार्टी के कुछ बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। जिसमें योगी सरकार में श्रम मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्या का नाम प्रमुख था।
स्वामी प्रसाद मौर्या के पार्टी छोड़ने के बाद ही भाजपा के पांच और विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। बीजेपी नेताओं के पार्टी छोड़ने का कल शुरू हुआ यह सिलसिला आज भी जारी रहा। आज भी योगी कैबिनेट के एक मंत्री दारा सिंह चौधरी ने मंत्रिमंडल पद से इस्तीफा दे दिया। गौरतलब है कि 2 दिन में हुए दोनों मंत्रियों ने अपने इस्तीफे में बिल्कुल एक ही बात कही है। दोनों ने प्रदेश सरकार पर दलितों और पिछड़ों का उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाया है।
हाल ही में हुआ पश्चिम बंगाल का चुनाव नेताओं के दल बदलने का एक सबसे बड़ा उदाहरण रहा जिसमें तृणमूल कांग्रेस के कई बड़े नेता भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे जिसमें एक बहुत बड़ा नाम मुकुल रॉय का था। मुकुल रॉय ममता बनर्जी के बेहद करीबी माने जाते हैं। बता दें मुकुल रॉय तृणमूल कांग्रेस के संस्थापकों में से एक हैं। लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी के साथ जाने का फैसला किया। लेकिन 2021 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी हार गई और ममता बनर्जी फिर से मुख्यमंत्री बनी। चुनाव परिणाम आने के तुरंत बाद ही यह अटकलें चलने लगी कि मुकुल रॉय टीएमसी में फिर वापस जा सकते हैं। और कुछ दिन बाद ही वह अटकलें सही भी साबित हुई। मुकुल रॉय ने बीजेपी को बाय-बाय कह कर फिर से तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया।
बंगाल चुनाव में दल बदलने के मामले में एक और नाम बहुत बड़ा था। ममता बनर्जी के बेहद करीबी माने जाने वाले शुभेंदु अधिकारी ने पश्चिम बंगाल 2021 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़ भारतीय जनता पार्टी के साथ चले गए। और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर नंदीग्राम से चुनाव लड़ा। इसी सीट से ममता बनर्जी भी चुनाव लड़ रही थी। चुनाव परिणाम में शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को हरा दिया। लेकिन बीजेपी सरकार बनाने में असफल रह गई।
गौरतलब है की पिछले कुछ सालों में दल बदलने की राजनीति काफी तेज हुई है। जिसका सीधा परिणाम चुनाव में देखने को मिला है। साथ ही दल बदलने वाली राजनीति का परिणाम चुनाव के बाद भी देखने को मिला है। इसका बहुत बड़ा उदाहरण कर्नाटक और मध्य प्रदेश है।
अगर पिछले 5 सालों की बात करें तो दल बदलने वाले नेताओं के कारण चुनाव परिणाम पर काफी असर पड़ता दिखता है। बात अगर 2016 से 2020 के बीच में की करें तो इस दौरान देशभर में कुल 300 से अधिक नेताओं ने पार्टी बदल कर चुनाव लड़ा था। उसमें से लगभग 50 फ़ीसदी ने चुनाव जीत लिया।
2020 में आए एक एडीआर रिपोर्ट की माने तो इन 5 सालों में ज्यादातर पार्टी बदलने वाले नेता भाजपा में शामिल हुए थे। उसमें से करीब 80 फ़ीसदी नेताओं ने जीत हासिल की थी। लेकिन ऐसा परफारमेंस केवल विधानसभा चुनाव में ही देखने को मिला लोकसभा चुनाव में दल बदलने वाले नेताओं का हाल बुरा हो गया। लोकसभा चुनाव में दल बदलने वाले नेताओं में लगभग 95 फ़ीसदी नेता चुनाव हार गए। दल बदलने के बाद राज्यसभा चुनाव की बात करें तो इसमें दल बदलने वाले ज्यादातर नेता सांसद बनने में सफल रहे।