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सनी देओल के '17 डायलॉग', जिन्हें सुनकर खून में आ जाता है उबाल

Rishi
Published on: 14 Oct 2018 7:41 PM IST
सनी देओल के 17 डायलॉग, जिन्हें सुनकर खून में आ जाता है उबाल
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मुंबई : सनी देओल का हैप्पी वाला बड्डे आने वाला है, 19 अक्टूबर को। सनी 1956 में पंजाब के साहनेवाल में जन्मे थे। स्क्रीन पर सनी जितने जबर डायलॉग मारते हैं असल जिंदगी में तो हद दर्जे के शर्मीले हैं। आज संडे के दिन हम ने सोचा आपको उनके कुछ धांसू डायलॉग याद दिला दें।।। जिनको सुनकर हमारे गुर्दे तक हिल चुके हैं।

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तो इरशाद फरमाइए..

  1. ये मज़दूर का हाथ है कात्या, लोहा पिघलाकर उसका आकार बदल देता है! ये ताकत ख़ून-पसीने से कमाई हुई रोटी की है। मुझे किसी के टुकड़ों पर पलने की जरूरत नहीं।

घातक

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2. चड्‌ढा, समझाओ।। इसे समझाओ। ऐसे खिलौने बाजार में बहुत बिकते हैं, मगर इसे खेलने के लिए जो जिगर चाहिए न, वो दुनिया के किसी बाज़ार में नहीं बिकता, मर्द उसे लेकर पैदा होता है।। और जब ये ढाई किलो का हाथ किसी पर पड़ता है न तो आदमी उठता नहीं, उठ जाता है।

दामिनी

अशरफ अली! आपका पाकिस्तान ज़िंदाबाद है, इससे हमें कोई ऐतराज़ नहीं लेकिन हमारा हिंदुस्तान ज़िंदाबाद है, ज़िंदाबाद था और ज़िंदाबाद रहेगा! बस बहुत हो गया।

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गदर: एक प्रेम कथा

3. हलक़ में हाथ डालकर कलेजा खींच लूंगा हरामख़ोर।। उठा उठा के पटकूंगा! उठा उठा के पटकूंगा! चीर दूंगा, फाड़ दूंगा साले!

घातक

4. चिल्लाओ मत, नहीं तो ये केस यहीं रफा-दफा कर दूंगा। न तारीख़ न सुनवाई, सीधा इंसाफ। वो भी ताबड़तोड़।

दामिनी

5. आ रहा हूं रुक, अगर सातों एक बाप के हो तो रुक, नहीं तो कसम गंगा मइय्या की, घर में घुस कर मारूंगा, सातों को साथ मारूंगा, एक साथ मारूंगा, अरे रूक!!

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घातक

6. समझाओ, समझाओ मुझे। आखिर ये राजनीति होती क्या है? ये कुर्सी का नशा होता कैसा है? जिसे पाने के लिए इंसानियत से इतना नीचे गिर जाते हो तुम लोग। कि दोस्त के हाथों दोस्त का घर जला देते हो। भाई के हाथों, भाई का ख़ून करवा देते हो। कभी हड़ताल, कभी दंगा-फसाद, कभी मंदिर-मस्जिद के नाम पर लाशें बिछा देते हो तुम लोग। बोलो ऐसा क्यों करते हो?

अंगरक्षक

7. ओए तू गुलाम दस्तगीर है ना? लहौर दा मशहूर गुंडा! गंदे नाले दी पैदाइश! ऐ तां वक्त इ दस्सेगा कि मेरी अंतिम अरदास हूंदी ए या तेरा इना इलाही पढ़ेया जांदा ए। हुण तू इन्ना चेत्ते रख कि तू इक कदम वी बाहर निकलेया तां मैं तैन्नू ओही गंदे नाले दे विच्च मार सुट्‌टांगा जिस्सों तूं आया सी। ओए चोप्प क्यों हो गया!

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बॉर्डर

8. डरा के लोगों को वो जीता है जिसकी हडि्डयों में पानी भरा हो। इतना ही मर्द बनने का शौक है न कात्या, तो इन कुत्तों का सहारा लेना छोड़ दे।

घातक

9. किन हिंदुस्तानियों को गोली से उड़ाएंगे आप लोग, हम हिंदुस्तानियों की वजह से आप लोगों का वजूद है। दुनिया जानती है कि बंटवारे के वक्त हम लोगों ने आप लोगों को 65 करोड़ रुपये दिए थे तब जाकर आपके छत पर तरपाल आई थी। बरसात से बचने की हैसियत नहीं और गोलीबारी की बात कर रहे हैं आप लोग!

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10. अगर अदालत में तूने कोई बद्तमीजी की तो वहीं मारूंगा। जज ऑर्डर ऑर्डर करता रहेगा और तू पिटता रहेगा।

दामिनी

11. तुम्हारी ऊंची शख्सियत और शरीफाना लिबास के पीछे छुपे शैतान को मैं पहचान चुका हूं। ये गीदड़भभकियां किसी और को देना बलवंतराय। अगर मेरे भाई को कुछ हुआ तो मैं तेरा वो हश्र करूंगा कि तुझे अपने पैदा होने पर अफसोस होगा। और तेरे ये पालतू कुत्ते जिन्हें देखकर तूने भौंकना शुरू किया है, ये उस वक्त तेरे आस पास भी नजर नहीं आएंगे।

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घायल

12. बाप बनकर बेटी को विदा कर दीजिए, इसी में सबकी भलाई है, वरना अगर आज ये जट बिगड़ गया तो सैकड़ों को ले मरेगा।

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13. मीलॉर्ड, तारीख़ देने से पहले मैं कुछ अर्ज़ करना चाहूंगा। पहली तारीख में ये कहा गया कि दामिनी पाग़ल है, उसे पाग़लखाने भेज दिया गया जहां उसे पागल बनाने की पूरी कोशिश की गई। दूसरी तारीख से पहले अस्पताल में पड़ी उर्मी का खून कर दिया गया और केस बना ख़ुदकुशी का। जबकि इस अदालत में मैंने साबित कर दिया कि उर्मी ने ख़ुदकुशी नहीं की, उसका ख़ून हुआ है। और शेखर भी उस दिन सारे सच कहने ही वाला था कि चड्‌ढा साब ने फिर से अपनी चाल चल दी। बीमारी का नाटक करके तारीख ले ली। नहीं तो उसी दिन मीलॉर्ड इस केस का फैसला हो जाता। और आज आप फिर से तारीख दे रहे हैं। उस तारीख से पहले सड़क पर कोई ट्रक मुझे मारकर चला जाएगा और केस बनेगा रोड़ एक्सीडेंट का। और फिर से तारीख दे देंगे। और उस तारीख़ से पहले दामिनी को पागल बनाकर पागलखाने में फेंक दिया जाएगा। और इस तरह न तो कोई सच्चाई के लिए लड़ने वाला रहेगा, न ही इंसाफ मांगने वाला। रह जाएगी तो सिर्फ तारीख़।

और यही होता रहा है मीलॉर्ड तारीख़ पर तारीख़, तारीख़ पर तारीख़, तारीख़ पर तारीख़ मिलती रही है मीलॉर्ड लेकिन इंसान नहीं मिला मीलॉर्ड, इंसाफ नहीं मिला। मिली है तो सिर्फ ये तारीख़। कानून के दलालों ने तारीख को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया है मीलॉर्ड। दो तारीखों के बीच अदालत के बाहर ये कानून का धंधा करते हैं, धंधा। जहां गवाह तोड़े जाते हैं, ख़रीदे जाते हैं, मारे जाते हैं। और रह जाती है सिर्फ तारीख। लोग इंसाफ के लिए अपनी जमीन जायदाद बेचकर केस लड़ते हैं और ले जाते हैं तो सिर्फ तारीख। औरतों ने अपने गहने-जेवर, यहां तक कि मंगलसूत्र तक बेचे हैं इंसाफ के लिए और उन्हें भी मिली है तो सिर्फ तारीख। महीनों, सालों चक्कर काटते काटते इस अदालत के कई फरियादी ख़ुद बन जाते हैं तारीख और उन्हें भी मिलती है तो सिर्फ तारीख। ये केस पूरे हिंदुस्तान के कमज़ोर और सताए हुए लोगों का है। आज उन सबकी नजरें आप पर गड़ी हैं, आप पर। कि आप उन्हें क्या देते हैं। इंसाफ या तारीख़? अगर आप उन्हें इंसाफ नहीं दे सकते तो बंद कीजिए ये तमाशा। उखाड़ फेंकिए इन कटघरों को। फाड़ दीजिए, जला दीजिए कानून की इन किताबों को ताकि इंसाफ के ऐसे चक्कर में और तबाह न हों, बर्बाद न हों।

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दामिनी

14. नहीं! तुम सिर्फ मेरी हो, और किसी की नहीं हो सकती। हम दोनों के बीच अगर कोई आया तो समझो वो मर गया। काजल! इन हाथों ने सिर्फ हथियार छोड़े हैं, चलाना नहीं भूले। अगर इस चौखट पर बारात आई तो डोली की जगह उनकी अर्थियां उठेंगी और सबसे पहले अर्थी उसकी उठेगी जिसके सर पर सेहरा होगा। लाशें बिछा दूंगा, लाशें!

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जीत

15. जवानो, दुश्मन सामने खड़ा है। हम 120 हैं, वो पूरे टैंक रेजीमेंट के साथ है। कमांड ने हमें पोस्ट छोड़कर पीछे हट जाने के लिए कहा है। मगर फिर भी आखिरी फैसला मुझ पर छोडा है। और मैंने फैसला ये किया है कि मैं मेजर कुलदीप सिंह, अपनी पोस्ट छोड़कर नहीं जाऊंगा। अब तुम लोगों का फैसला मैं तुम पर छोड़ता हूं। जो लोग ये पोस्ट छोड़कर जाना चाहते हैं, जा सकते हैं।

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बॉर्डर

16. फिर मारूंगा, मैं फिर मारूंगा उन्हें, अगर मेरी आंखों के सामने होगा तो मैं फिर मारूंगा उन्हें। मैं नहीं देख सकता ये सब कुछ। नहीं देख सकता। कल अगर बाजार में भाभी का कोई हाथ पकड़ ले, तब भी आप मुझसे यही कहेंगे।

घातक

17. भैरों सिंह, आज मरने की बात की है, दोबारा मत करना। दुनिया की तारीख़ शाहिद है कि मरकर किसी ने लड़ाई नहीं जीती। लड़ाई जीती जाती है दुश्मन को ख़तम करके।

बॉर्डर

Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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