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Lata Mangeshkar: 1962 में चीन से युद्ध हारने के बाद सभी गायकों ने देशभक्ति गाना गाने से मना कर दिया था, फिर लता ने ऐ मेरे वतन के लोगों गाया

लता मंगेशकर को ऐतिहासिक देशभक्ति गीत ऐ मेरे वतन के लोगों गाने का मौका कैसे मिला इसकी कहानी जानें।

Priya Singh
Written By Priya Singh
Published on: 27 Jan 2022 11:14 AM GMT
Lata Mangeshkar: 1962 में चीन से युद्ध हारने के बाद सभी गायकों ने देशभक्ति गाना गाने से मना कर दिया था, फिर लता ने ऐ मेरे वतन के लोगों गाया
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फोटो साभार : इंस्टाग्राम

Lata Mangeshkar: हिंदी सिनेमा में एक ऐसा दौर था जब माना जाता था कि युद्ध पर गीत नहीं गाए जाते। युद्ध में हार के बाद तो बिल्कुल भी नहीं। वर्ष1962 में, भारत को चीन के विरुद्ध हार का सामना करना पड़ा था। इस हार की वजह से सभी देशवासियों के जज्बा और आत्मबल को ठेस पहुंची। कुछ समय बाद गणतंत्र दिवस आने वाला था। सरकार की तरफ से अगले गणतंत्र दिवस समारोह के लिए कोई गीत तैयार करनी की घोषणा की गई। फिल्म इंडस्ट्री के पास यह प्रस्ताव आया, जिसने उन्हें उलझन में डाल दिया। सभी संगीतकारों ने हाथ खड़े कर दिए। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार इस हार को स्वीकार करते हुए, कैसे कोई गाना बनाएं।

आशा भोसले ने गीत गाने से मना किया

जब एक से एक दिग्गज संगीतकारों ने मना कर दिया तो हरफनमौला सी. रामचंद्र को जिम्मेदारी सौंपी गई। वो इंडस्ट्री में अण्णा के नाम से मशहूर थें। बड़ी मुश्किल से उन्होंने कवि प्रदीप को गीत लिखने के लिए तैयार किया। कई रातों की नींद उड़ाकर कई धुनें रची गईं। एक धुन पर सहमति बनी। तय हुआ कि गीत लता मंगेशकर और आशा भोसले गाएंगी। दोनों सी. रामचंद्र की पसंदीदा गायिकाएं थीं। लेकिन ऐन वक्त पर आशा भौसले ने गीत गाने से इनकार कर दिया। आखिरकार नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में 27 जनवरी, 1963 को हुए समारोह में लता मंगेशकर ने यह गीत गाया।

सी. रामचंद्र को हल्के - फुल्के गीतों के लिए जाना जाता था

इससे पहले और इसके बाद एक से बढ़कर एक देशभक्ति गीत रचे गए लेकिन यह आज भी सिरमौर है। किसी दूसरे गैर-फिल्मी गीत को ऐसी बेहिसाब लोकप्रियता हासिल नहीं हुई। 'ए मेरे वतन के लोगो' की धुन ने सी. रामचंद्र के आलोचकों के विचारों को बदलकर रख दिया। इन आलोचकों की शिकायत रहती थी कि रामचंद्र हल्के - फुल्के गीतों से लोगों की रुचि बिगाड़ रहे हैं। रामचंद्र के हल्के - फुल्के गीतों में 'शाम ढले खिड़की तले तुम सीटी बजाना छोड़ दो', 'आना मेरी जान संडे के संडे' आदि को आलोचक हल्का गाना मानते थे। सी. रामचंद्र ने कभी आलोचकों की परवाह नहीं की। अगर करते तो भारतीय फिल्म संगीत कई नए प्रयोगों से वंचित रह जाता।

सिर्फ चौथी क्लास पास थें सी. रामचंद्र

संगीत में पाश्चात्य रंग घोलने का सिलसिला सी. रामचंद्र ने ही शुरू किया था। उनका 'शोला जो भड़के' पहला फिल्मी गीत है। जिसमें क्लारनेट, बोंगो, ट्रम्पेट और सेक्साफोन जैसे पश्चिमी वाद्यों का बड़ी सूझ-बूझ से इस्तेमाल किया गया। 'ईना मीना डीका' में उन्होंने रॉक एंड रॉल के रंग बिखेरे। प्रयोगों से इतर सी. रामचंद्र भारतीय शास्त्रीय संगीत से कभी विमुख नहीं हुए। 'जिंदगी प्यार की दो चार घड़ी होती है', 'धीरे से आ जा री अंखियन में', 'महफिल में जल उठी शमा परवाने के लिए', 'मोहब्बत ऐसी धड़कन है', 'ये जिंदगी उसी की है' जैसे दर्जनों गीत सनद हैं कि सिर्फ चौथी क्लास तक पढ़े-लिखे सी. रामचंद्र की भारतीय रागों पर कितनी जबरदस्त पकड़ थी।

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