कुछ ऐसी थी मोहन राकेश की प्रेम कहानी-रेहान फजल की कलम से

suman
Published on: 1 July 2017 11:29 AM GMT
कुछ ऐसी थी मोहन राकेश की प्रेम कहानी-रेहान फजल की कलम से
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रेहान फजल

लखनऊ: अपनी पत्नी अनीता राकेश के साथ स्वभाव से मोहन राकेश शुरू से ही फक्कड़ थे। जब वो अपनी पहली शादी के लिए इलाहाबाद पहुंचे थे तो उनके साथ कोई बारात नहीं थी। लगभग यही उन्होंने अपनी दूसरी शादी के वक्त भी किया था। न किसी को खबर की और न ही किसी को बुलाया। दोनों ही शादियां नहीं चलीं। फिर उनकी मुलाकात अनीता औलख से हुई। दिलचस्प बात ये थी कि अनीता की मां चंद्रा मोहन राकेश की मुरीद थीं। वो उनको खत लिखा करती थीं। उन्होंने ही उनसे एक बार अनुरोध किया कि वो मुंबई से दिल्ली जाते हुए बीच में ग्वालियर रुकें। मोहन ने वो निमंत्रण स्वीकार कर लिया। ग्वालियर में उनके रुकने के दौरान अनीता ने महसूस किया कि मोहन की निगाहें हमेशा उनका पीछा करती हैं।

अनीता बताती हैं, एक दिन पूरा परिवार ‘दिल एक मंदिर’ फिल्म देखने सिनेमा हॉल गया। मैं मोहन के बगल में बैठी। फिल्म के दौरान कितनी बार एक हत्थे पर दो बांहें टकराईं। तभी मेरा रुमाल जमीन पर गिर गया। मैं रुमाल उठाने के लिए झुकी तो अनजाने में ही मेरा हाथ उनके पैरों से छु गया। मैं खामोश रही और उस खामोशी का जवाब भी उसी तरीके की एक खामोशी से दिया गया। मैंने अनीता से पूछा कि आप दोनों में से किसने पहले अपने इश्क का इजहार किया? अनीता का जवाब था, प्यार का इजहार उन्होंने कभी नहीं किया। मैंने एक बार उनसे कहा भी था कि तुम मुझसे प्यार का इजहार क्यों नहीं करते। क्या मन की बात कहने से आदमी छोटा हो जाता है? उन्होंने ‘लहरों के राजहंस’ को समर्पित करते हुए लिखा- उस एक को जिसे लगता है कि मन की बात कहने से आदमी छोटा हो जाता है। एक बार अनीता को निमोनिया हो गया। राकेश उन्हें देखने ग्वालियर पहुंचे। वो रजाई में बिस्तर पर लेटी हुई थीं। उनकी मां चाय बनाने रसोई में चली गईं। राकेश ने अचानक उनके होठों को चूमकर कान में फुसफुसाया, आई लव यू।

जब अनीता ने पहली बार अपनी मां से कहा कि वो मोहन से शादी करना चाहती हैं। उनकी मां अवाक रह गई। उनकी मां ने उनको मुंह पर दो थप्पड़ रसीद किए और बोलीं, तू समझती है वो तुझसे प्यार करता है। वो तेरे ऊपर थूकेगा भी नहीं। तू समझती है वो तुझसे शादी करेगा। कुछ दिनों बाद अनीता का पूरा परिवार दिल्ली आ गया। उनके प्रति उनके परिवार की हिंसा जारी रही। एक अच्छी बात ये हुई कि उनको चावड़ी बाजार के एक कॉलेज से बीए करने की अनुमति मिल गई। अब वो कम से कम चार घंटे तक अपने घर से बाहर निकल सकती थीं। पहले ही दिन कॉलेज के गेट पर अनीता की राकेश से मुलाकात हुई। वो रोज सुबह पौने सात बजे टैक्सी ले कर करोल बाग से चावड़ी बाजार आते। पास की हलवाई की दुकान पर जाते और अनीता के साथ बातें करते।

एक दिन राकेश-अनीता को अपने घर ले गए। दरवाजा बंद कर चिटकनी लगाई। उनका दिल तेजी से धडक़ने लगा। तभी उन्होंने देखा मेज पर फूलों की दो मालाएं रखी हुई थीं। इस तरह अनीता और राकेश की शादी हुई। तारीख थी 22 जुलाई, 1963। इस शादी के बारे में सिर्फ दो लोगों को पता था, राकेश की मां और उनके सबसे करीबी दोस्त कमलेश्वर को। अनीता बताती हैं, एक बार मैं राकेश से मिलने गई। मैं उन्हें बताना चाहती थी कि मेरी मां ने मेरे लिए एक लडक़ा ढूंढ लिया है। तभी वहां कमलेश्वर के साथ घबराए परेशान मोहन पहुंचे। उनके साथ एक हादसा हो गया था। एक गुंडा उनके पीछे पड़ गया था जो उन्हें जान से मार देना चाहता था। कमलेश्वर ने कहा कि उन्हें तुरंत दिल्ली छोड़ देना चाहिए। बाद में राकेश ने इसी घटना पर एक कहानी लिखी जिसका नाम था- एक ठहरा हुआ चाकू।

मोहन राकेश, अनीता से शादी कर उन्हें बंबई ले जाना चाहते थे। तब शायद अनीता के बालिग होने में कुछ दिनों की देर थी। सवाल था कि कानून और परिवार की साजिशों से कैसे बचा जाए। राकेश के सबसे करीबी दोस्त कमलेश्वर आपनी आत्मकथा ‘धारसिलाएं’ में लिखते हैं, राकेश चाहता तो सब कुछ था पर वो घबराता बहुत था। आखिर राकेश ने एक तरकीब निकाली। अनीता राकेश के साथ खुलेआम सफर कर सके, इसके लिए उसने अखबार में विज्ञापन दिया-एक प्रख्यात लेखक के लिए जरूरत है एक ऐसी महिला सेक्रेट्री की जो युवती हो, हिंदी और अंग्रेजी की अच्छी ज्ञाता हो, जो डिक्टेशन ले सके, और भारत और भारत से बाहर लेखक के साथ सफर कर सके। पोस्टबाक्स नंबर इतने पर आवेदन आमंत्रित हैं। इस विज्ञापन को राकेश ने अखबार से काट कर अपने पर्स में रख लिया। अब सारी तैयारियां पूरी थीं। आठ दस दिन बाद अनीता को राकेश के साथ दिल्ली छोड़ देनी थी। अनीता के मन में कहीं ये शंका थी कि राकेश दो शादियां कर चुके थे। उनके साथ उनकी निभ भी पाएगी या नहीं। मोहन राकेश ने अनीता का मन मजबूत करने की जिम्मेदारी मशहूर उपन्यासकार मन्नू भंडारी पर छोड़ी। भंडारी बताती हैं, राकेश मुझसे बोले मैं तुम्हें अनीता के पास ले कर जाऊंगा। ये ध्यान रखना कि बात बिगड़े नहीं। मन्नू भंडारी बताती हैं, मैं जब वहां गई तो दंग रह गई, क्योंकि अनीता तो बिल्कुल बच्ची जैसी थी। अनीता मुझे पकड़ कर बैठ गई और उसने सवालों की झड़ी लगा दी। बताइए, उन्होंने दो-दो शादियां कीं। क्यों छोड़ा उन्होंने अपनी पत्नियों को? मन्नू आगे बताती हैं, मैंने उसे बताया कि इन दोनों के व्यक्तित्व बिल्कुल अलग थे। इसलिए उनका साथ अधिक समय तक नहीं रह पाया। अनीता ने पूछा कि अगर मैं राकेश से शादी कर लूं तो कोई गलत बात तो नहीं करूंगी। मैंने कहा शादी का फैसला बहुत निजी होता है। अगर तुम्हारा दिल कहता है तो उनसे शादी कर सकती हो।

जिस दिन मोहन राकेश और अनीता को दिल्ली जाना था। उस दिन बारिश हो रही थी। मां के मना करने के बावजूद अनीता अपने घर से बाहर निकलीं। उनके पास उनकी किताबें और सर्टिफिकेट थे। कमलेश्वर लिखते हैं, तय यह हुआ कि अनीता को हौजकाजी से मैं लाऊंगा। राकेश मुझे गोल डाकखाने पर इंतजार करता हुआ मिलेगा। अनीता पूड़ी वाली दुकान पर अपनी किताबें पकड़े इंतजार कर रही थी, सलवार कमीज और चप्पलें पहने, जैसे वो कॉलेज जा रही हो। गोल डाकखाने पर दूसरी टैक्सी में बैठा राकेश हमारा इंतजार कर रहा था। उस के पर्स में वो विज्ञापन वाला कागज मौजूद था और जेब में एयर टिकट। अनीता शांत थी जबकि राकेश पसीना-पसीना था और बार-बार सिगरेट सुलगा रहा था। जब हम एयरपोर्ट पर पहुंचे तो राकेश ने कहा, अभी फ्लाइट में समय है, रेस्तरां में बैठना ठीक रहेगा। मुझे तब और भी मजा आया और अनीता भी हंसी, जब हमने देखा कि राकेश हम दोनों से अलग हो कर आगे आगे चलने लगा जैसे हमें पहचानता ही न हो। मुझे भी हंसी आई जब अनीता ने कहा, यही आपका जिगरी दोस्त है, जिसका जिगर इतना कमजोर है। उस समय अनीता की उम्र 21 साल की भी नहीं थी। अनीता याद करती हैं, बंबई उतरते ही राकेश मुझे सन एंड सैंड होटल ले गए। मैं पहली बार हवाई जहाज पर बैठी थी। मुझे उलटियों पर उलटियां हो रही थीं। मेरे सारे कपड़े खराब हो गए थे। जब हम होटल पहुंचे तो मुझे बहुत अजीब सा लग रहा था कि ये लोग कहेंगे कि इसके साथ कौन आई है। राकेश ने अपने मिस अनीता औलक के नाम से कमरा बुक कराया था। कमरे में पहुंच कर जब मैंने खिडक़ी का पर्दा हटाने की कोशिश की तो राकेश ने पर्दा खींच कर कहा कि यहां पर्दा खोलने के जुर्म में कैद कर लिया जाता है। जब उन्होंने कमरे की चिटखनी लगाई तो मुझे लगा कि अब क्या होगा? उन्होंने कहा कि कुछ नहीं होगा। मैंने कहा मुझे घर छोड़ आओ। मुझे बहुत डर लग रहा है। उन्होंने मुझसे पूछा, तुम्हारा दिल करता है यहां से जाने का। मैंने कहा, नहीं। मुंबई में मोहन राकेश अपने दोस्तों में इतना खो गए कि उनके पास अनीता के लिए बहुत कम वक्त रहता था। अनीता बताती हैं, हम न अकेले मिल सकते थे और न ही बातें कर सकते थे। मुझे लगता ही नहीं था कि मेरी शादी हुई थी। उन्होंने मुझे छुआ तक नहीं। हमारे शारीरिक संबंध बहुत दिनों बाद बने। वो मुझे कभी आन तो कभी मिन या टिन कह कर पुकारते थे। उन्होंने मुझसे साफ कह दिया था कि देखो टिन मेरे जीवन में पहले नंबर पर मेरा लेखन है, दूसरे नंबर पर मेरे दोस्त और तीसरे नंबर पर तुम। मैंने कहा ठीक है मैं तीसरे नंबर पर ही ठीक हूं। अनीता राकेश इस समय 75 साल की हैं और दिल्ली में रहती हैं। आजकल वो अपनी किताब ‘अंतिम सतरें’ लिख रही हैं। मोहन राकेश के साथ बिताए गए एक एक क्षण को वो बहुत शिद्दत से याद करती हैं, मोहन को सिगरेट पीने की बहुत आदत थी। लेकिन वो धुएं को इनहेल नहीं करते थे। उन्होंने ही मुझे सिगरेट और शराब की आदत डलवाई। हम लोग दोस्तों के साथ छत पर बैठ कर शराब पिया करते थे। वो किसी की बदजुबानी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे। अपना इस्तीफा अपनी जेब में ले कर चलते थे। ‘सारिका में उन्होंने सिर्फ 11 महीने काम किया। जब शांति प्रसाद जैन ने उनसे पूछा कि तुम इतनी अच्छी नौकरी क्यों छोड़ रहे हो तो उनका जवाब था, मैं एक एयरकंडीशनर खरीदना चाहता था। अब मेरे पास इतना पैसा हो गया है कि मैं एयर कंडीशनर खरीद सकता हूं। इसलिए ये नौकरी छोड़ रहा हूं। इस एयरकंडीशनर का भी एक दिलचस्प किस्सा है।

कमलेश्वर अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, राकेश सारिका छोड़ कर दिल्ली वापस आ गया। हम दोनों ने मिल कर बहुत मकान खोजे। पर दिल्ली में पंजाबियों को मकान देने के लिए पंजाबी ही तैयार नहीं थे। आखिर हमें यूपी वाला कह कर आगे किया गया। वैसे जो मकान मालिक मकान देने के लिए तैयार हो जाता, उसके सामने एक समस्या रखी जाती कि आपके यहां पावर लाइन है या नहीं? दरअसल राकेश ने सारिका के जमाने में एक एयरकंडीशनर खरीदा था और वो अपने एयरकंडीशनर के बिना रह नहीं सकता था। उसे गर्मी बहुत लगती थी। मैं जानबूझ कर उस एयरकंडीशनर को कूलर कह कर पुकारता था, जिससे राकेश को बहुत चोट पहुंचती थी अनीता के साथ रहते हुए राकेश को छह साल ही हुए थे कि उन्होंने उनसे कहा, अब तू मेरा घर छोड़ कर जाएगी या नहीं? दो साल से ज्यादा मैं किसी औरत के साथ नहीं रहा। पहले मैंने सोचा था कि दो तीन साल बाद तुम चली जाओगी। पर अब तो छह-सात साल हो रहे हैं और तुम्हारे जाने के कोई आसार नहीं नजर आ रहे हैं यार तूने मेरा रिकॉर्ड खराब कर दिया। अनीता ने कभी मोहन राकेश को नहीं छोड़ा। लेकिन यह कहने के तीन साल बाद ही राकेश उन्हें छोड़ कर चले गए।

लेखक बीबीसी के वरिष्ठ संवाददाता हैं

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