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Birthday Special: शायर कैफ़ी आज़मी की कायल दुनिया, जानें जिंदगी से जुड़ी ये बातें
गीतकार और शायर कैफी आजमी का जन्म आज ही के दिन (14 जनवरी1919) यूपी के आजमगढ़ जिले में हुआ था। उनका असली नाम अख्तर हुसैन रिजवी था। उन्हें बचपन से गीत गुनगुनाने का शौक था।
श्रीधर अग्निहोत्री
मुम्बई: हिन्दी फिल्मी गीतों में जितना योगदान उत्तर प्रदेश का रहा है उतना किसी प्रदेश का नहीं। अधिकतर गीतकार इसी प्रदेश से मुंबई पहुंचे और वहां पर उन्होंने अपनी रचनाओं से ऐसे सहित्य की रचना की जो आज भी पूरी दुनिया में पढ़ा और सुना जाता है। इन्ही में से एक गीतकार हुए कैफी आजमी जिन्होंने हिन्दी उर्दू को मिलाकर ऐसे गीतों की रचना की जो अपने आप में अतुलनीय है।
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गीतकार और शायर कैफी आजमी का जन्म यूपी के आजमगढ़ जिले में हुआ था
गीतकार और शायर कैफी आजमी का जन्म आज ही के दिन (14 जनवरी1919) यूपी के आजमगढ़ जिले में हुआ था। उनका असली नाम अख्तर हुसैन रिजवी था। उन्हें बचपन से गीत गुनगुनाने का शौक था। उन्होंने अपनी 11 साल की उम्र में अपनी पहली कविता लिख डाली।
kaifi azmi (PC: social media)
कैफी ने उर्दू जर्नल ‘मजदूर मोहल्ला’ का संपादन किया
1921 में कैफी लखनऊ छोड़ कर कानपुर आ गए। यहाँ उस वक्त मजदूरों का आन्दोलन जोरों पर था। कैफी उस आंदोलन से जुड़ गए, कैफी को कानपुर की फिजा बहुत रास आई। यहाँ रहकर उन्होंने मार्क्सवादी साहित्य का गहराई से अध्ययन किया। 1943 में साम्यवादी दल ने मुंबई कार्यालय शुरू किया और उन्हें जिम्मेदारी देकर भेजा। यहां आकर कैफी ने उर्दू जर्नल ‘मजदूर मोहल्ला’ का संपादन किया।
उस दौर देश में आजादी की लड़ाई के लिए गीतकार अपने गीतों से लोगों को जागरूक कर रहे थें। इस बीच उनका रूझान साम्यवाद से हो गया और उन्होंने इसकी सदस्यता ग्रहण कर ली। इसके बाद वह बड़े हुए और मुशा'यरे में जाना शुरू कर दिया। प्रगतिशील साहित्यकारों के संपर्क ने उनके लेखन को और व्यक्तित्व को खूब मांजने का काम किया। साल 1942 में कैफी आजमी उर्दू और फारसी की उच्च शिक्षा के लिये लखनऊ और इलाहाबाद भेजे गये। जहां उन्होंने कैफी ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की सदस्यता ग्रहण करके पार्टी कार्यकर्ता के रूप मे कार्य करना शुरू कर दिया और फिर भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गये।
कैफी आजमी ने 1951 में पहला गीत बुजदिल फिल्म के लिए लिखा
कैफी आजमी ने 1951 में पहला गीत बुजदिल फिल्म के लिए लिखा। उन्होंने अनेक फिल्मों में गीत लिखें जिनमें कागज के फूल हकीकत, हिन्दुस्तान की कसम, हंसते जख्म आखिरी खत और हीर रांझा जैसे कई मशहूर गीत लिखे। हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे वो जवानी जो खूं में नहाती नहीं। कैफी आजमी की यह पंक्ति उनके जीवन की सबसे बड़ी पंक्ति है और इसी लाइन के आस-पास उन्होंने पूरा जीवन जिया। ये दुनिया, ये महफिल मेरे काम की नहीं।
kaifi azmi (PC: social media)
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1975 कैफी आजमी को आवारा सिज्दे पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से सम्मानित किये गये। 1970 सात हिन्दुस्तानी फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। इसके बाद 1975 गरम हवा फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ वार्ता फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। कैफी आजमी को कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। उन्हें तीन फिल्मफेयर अवार्ड, साहित्य और शिक्षा के लिए प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार भी मिला। दस मई 2002 को कैफी अपना यही गीत गुनगुनाते हुए इस दुनिया से चल दिए।
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