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पहले ऐसे विलेन जिनकी एंट्री पर बजती थीं तालियां, इस चीज पर आज भी है पछतावा
बॉलीवुड एक्टर शत्रुघ्न सिन्हा का नाम जब भी लिया जाता हैं तो उनका फेमस डायलॉग ‘खामोश’ खूद-ब-खूद जुबां पर आ जाता हैं। शत्रुघ्न सिन्हा उन एक्टर में से है जिनका दूर-दूर तक बॉलीवुड से कोई नाता नहीं था।
बॉलीवुड एक्टर शत्रुघ्न सिन्हा का नाम जब भी लिया जाता हैं तो उनका फेमस डायलॉग ‘खामोश’ खूद-ब-खूद जुबां पर आ जाता हैं। शत्रुघ्न सिन्हा उन एक्टर में से है जिनका दूर-दूर तक बॉलीवुड से कोई नाता नहीं था। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने ना सिर्फ अपने मेहनत और बेहतरीन एक्टिंग से अपना करियर बनाया बल्कि बॉलीवुड पर राज भी किया।
दर्शकों ने जितना उन्होंने बतौर हीरो पसंद किया उतना ही विलन के रूप में लोगों ने उन्हें प्यार दिया। आज उनके इस जन्मदिन पर हम उनसे जुड़ी कुछ ख़ास बाते बताने जा रहे हैं। जिसे आप अभी तक अवगत नहीं हुए।
शत्रुघ्न चार भाई
शत्रुघ्न सिन्हा का जन्म 9 दिसंबर को बिहार की राजधानी पटना में हुआ था। शत्रुघ्न सिन्हा के पिता एक डॉक्टर थे और उनके चार बेटे दशरथ के बेटों की तरह राम, लखन, भरत और शत्रुघ्न है। अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह मुंबई पहुंचे। जिसके बाद उन्होंने हिंदी फिल्म सिनेमा में अपने करियर की शुरुआत की।जहा से वह शॉटगन के नाम से मशहूर हुए।
हिट फ़िल्में
शत्रुघ्न को अपना पहला ब्रेक देवानंद की फिल्म प्रेम पुजारी से मिला। इस फिल्म में उन्होए एक पाकिस्तानी मिलिट्री ऑफिसर का किरदार निभाया था। जिसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में काम किया।
उनकी यादगार फिल्मों में मेरे अपने, कालीचरण, विश्वनाथ, दोस्ताना, क्रांति, नसीब, काला पत्थर, लोहा' जैसी फिल्मों का नाम है, जिन्होंने इतिहास रच दिया।
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अभिनेता से राजनेता बने
शत्रुघ्न सिन्हा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं, उन्हें भारतीय जनता पार्टी (बज) द्वारा 2019 के भारतीय आम चुनावों के लिए सीट नहीं दिए जाने के बाद उनके साथ शामिल हो गए थे। वह साल 1991 में बीजेपी में शामिल हुए थे। उन्होंने राजेश खन्ना के साथ उपचुनाव में चुनाव लड़कर राजनीति में प्रवेश किया था।
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एक इंटरव्यू के दौरान शत्रुघ्न ने बताया था कि आज तक इस बात का अफ़सोस है कि वह अपने दोस्त राजेश खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़ना था। राजेश खन्ना ने 25,000 मतों से शत्रुघ्न सिन्हा को हराकर चुनाव जीता था। जिसके बाद दोनों ने कभी एक दूसरे से बात नहीं की। शत्रुघ्न ने राजेश खन्ना के साथ अपनी दोस्ती को फिर से बनाने की कोशिश की हालांकि, 2012 में खन्ना की मृत्यु तक ऐसा कभी नहीं हुआ।
एंट्री पर बजती थी तालियां
आपको बता दें , एक विलेन के रोल में भी दर्शकों का प्यार उन्हें बराबर मिलता रहा। जहा उस दौर में विलन को लोग बिलकुल भी पसंद नहीं करते थे वही शत्रुघ्न सिन्हा को विलेन के रूप में देख कर लोग सिनेमा हॉल में सीटिय और तालियां बजाया करते थे।
साथ ही दर्शक उनका सपोर्ट किया करते थे और उल्टा हीरो को पीटने के लिए कहा करते थे, जो उस वक्त नहीं होता था। उस दौरान विलेन होने की बाद भी फिल्म के पोस्टर शत्रुघ्न सिन्हा की फोटो के साथ बनाए जाते थे।
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