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Bollywood Horror Movies: बॉलीवुड के वो सात भाई जिन्होंने अपने भूतिया अंदाज से दर्शकों को दशकों तक डराया
Bollywood Horror Movies: बॉलीवुड कभी हंसाकर, कभी रुलाकर, तो कभी डराकर अपने दर्शकों का मनोरंजन करते आया है। ऐसे में फिल्म उद्योग में सात ऐसे भी भाई हैं, जिन्होंने दशकों तक दर्शकों को डराने का काम किया है।
Bollywood Horror Movies: सभी फिल्म प्रेमियों की अपनी - अपनी पसंद होती है। किसी को एक्शन फिल्म पसंद आती है, तो किसी को रोमांटिक। वहीं कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें कॉमेडी फिल्म पसंद आती है, तो वहीं किसी को हॉरर। हॉरर फिल्म की बात करें तो सिर्फ एक ही नाम जुबान पर आता है 'रामसे ब्रदर्स' का। 70 से 80 के दशक में रामसे ब्रदर्स (Ramsay Brothers) का दर्शकों में ऐसा खौफ था कि यह नाम हॉरर फिल्मों का पर्याय बन गया था। यहां तक कि रामसे ब्रदर्स का नाम सुनते ही लोगों को समझ आता था कि यह पक्का कोई भूतिया फिल्म होगी। रामसे ब्रदर्स का नाम सुनते ही लोग सिहर जाते थें।
रामसे ब्रदर्स के बैनर के बनने और कामयाब होने में रामसे ब्रदर्स के पिता फतेहचंद रामसिंघानी का सबसे बड़ा योगदान है। आजादी से पहले ही फतेहचंद जी का लाहौर और कंराची में रेडियो का कारोबार था। जब देश का विभाजन हुआ, वे अपने परिवार को साथ लेकर मुंबई आ गएं। यहीं पर उन्होंने अपने रेडियो की दुकान खोल ली। फतेहचंद जी के सात बेटे थें, जो इस काम में अपने पिता का हाथ बंटाते - बंटाते उसे बनाने में निपुण हो गएं। इसके अलावा उनकी टेलरिंग और कपड़ो की दुकान भी थी। हालांकि फतेहचंद जी नहीं चाहते थें कि उनके बेटे इस कारोबार तक सीमीत रहें। दरअसल फतेहचंद जी को फिल्मों का बेहद शौक था।
फतेहचंद जी ने निर्णय लिया कि वो अपने बेटों को फिल्म बनाने की ट्रेनिंग देंगे
फिल्मों से जुड़ने के लिए उन्होंने फिल्मों में फाइनेंस करने के बारे में सोचा। वर्ष 1954 में रिलीज हुई शहीद -ए-आजम भगत सिंह सहित कुछ फिल्मों को फतेहचंद जी ने फाइनेंस किया। और फिल्म निर्माण का काम सीखकर बतौर निर्माता वर्ष 1964 में फिल्म रुस्तम सोहराब बनाकर पूरी तरह से फिल्म निर्माण की क्षेत्र में सक्रिय हो गएं। हालांकि अनुभव की कमी होने से इस ऐतिहासिक फिल्म को बनने में समय लगा और पैसे भी ज्यादा लगें। उन्होंने निर्णय लिया कि वो अपने बेटों को ट्रेनिंग देंगे और उनके काम सीख जाने के बाद अपने हिसाब से एक फिल्म बनाएंगे।
रामसे ब्रदर्स ने फिल्म मेकिंग सीखने के लिए 5 सी ऑफ सिनेमेटोग्राफी नामक पुस्तक को पढ़ा
फतेहचंद जी ने अपने बेटों को 5 सी ऑफ सिनेमेटोग्राफी नामक एक किताब पढ़ाई और फिल्म मेकिंग की जानकारी के साथ - साथ फिल्मों में संगीत के सही इस्तेमाल के बारे में भी बताया। उसके बाद मुंबई वापस आकर प्रैक्टिकली इसे सीखने के लिए उन्होंने एक फिल्म की शुरुआत की। इस प्रयोग में उन्होंने सिंधी भाषा की एक फिल्म 'नकली शान' पर काम करना शुरु कर दिया। इस फिल्म में उनके सातों बेटों ने काम किया। गंगू रामसे कैमरामैन बनें। तुलसी रामसे और श्याम रामसे को निर्देशन का काम सौंपा गया। लेखन का काम संभाला कुमार रामसे ने। साउंड इंजीनियर बनें किरण रामसे और एडिटिंग की कमान अर्जुन रामसे ने संभाली। फतेहचंद जी ने अपने बेटों की इस ट्रेनिंग के बाद दूसरे टेक्नीशियनों की कभी मदद नहीं ली।
रासमे ब्रदर्स के साढ़े तीन लाख की फिल्म ने बॉक्सऑफिस पर 40 लाख की कमाई की
इसके बाद रामसे ब्रदर्स ने मिलकर एक फिल्म बनाई, जिसका नाम था 'नन्ही मुन्नी लड़की।' हालांकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल तो नहीं हो पाई, लेकिन इसके एक डरावने दृश्य को खूब पसंद किया गया था। जो पृथ्वीराज कपूर जी पर एक भूत का मास्क पहनाकर फिल्माया गया था। इस सीन की हुई तारीफ से रामसे ब्रदर्स को यह अंदाजा हो गया था कि अगर पूरी तरह से कोई हॉरर फिल्म बनाई जाए, तो उसे दर्शक जरुर पसंद करेंगे। अपनी इसी सोच के साथ पूरे आत्मविश्वास से उन्होंने अगली फिल्म बना भी डाली। फिल्म का नाम था "दो गज जमीन के नीचे(Do Gaj Jameen Ke Niche)" जो पूरी तरह से हॉरर फिल्म थी। महज 40 दिनों की शूटिंग में तैयार हुई साढ़ें तीन लाख की छोटे से बजट में बनी इस फिल्म ने रिलीज होते ही बॉक्सऑफिस पर तहलका मचा दिया। और लगभग 40 लाख रुपए की कमाई कर डाली। इस फिल्म की कामयाबी के बाद रामसे ब्रदर्स ने निर्णय लिया कि वो अब और किसी बैनर की फिल्म नहीं बनाएंगे। इस फिल्म के बाद से रामसे ब्रदर्स ने अपने भूतिया अंदाज से दर्शकों को दशकों तक डराया।