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Bhediya Movie Review: फिल्म "रूही" के नक्शे कदम पर जा रही है वरुण धवन की फिल्म "भेड़िया"

Bhediya Movie Reviews: राजकुमार राव और जाह्नवी कपूर की 2021 में आयी बॉलीवुड फिल्म रूही की राह पर जा रही है वरुण धवन और कृति सेनन की फिल्म भेड़िया। जानिए क्या है पूरी खबर

Anushka Rati
Published on: 25 Nov 2022 3:55 AM GMT
Bhediya Movie Review: फिल्म रूही के नक्शे कदम पर जा रही है वरुण धवन की फिल्म भेड़िया
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Movie Review (image: social media)

Bhediya Movie Review: आपको बता दें कि नेचर है तो प्रोग्रेस है और आज जिस तरह से नेचुरल रिसोर्सेस का दोहन हो रहा है। यह उसी का रिजल्ट है कि कहीं भूकंप तो कहीं बाढ़ जैसी आपदा होती ही रहती है। तो साथ ही ऐसी लाइलाज बीमारियां भी हो जाती हैं जिनका इलाज खोजने में सालों लग जाते हैं। बॉलीवुड फिल्म 'भेड़िया' की बैकग्राउंड अरुणाचल प्रदेश का जंगल है। जहां जब भी उस जंगल को कोई नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तब ऐसा वायरस आ जाता है कि लोगों को कुछ पता ही नहीं चलता है कि अब उस वायरस से छुटकारा कैसे मिले। वहीं बात आसान सी है लेकिन बात कर के समझाने में थोड़ी परेशानी इसलिए भी हो जाती है क्योंकि फिल्म 'भेड़िया' की दिक्कत भी कुछ ऐसी ही है। बता दें कि इसे परदे तक पहुंचाने के लिए इस बार निर्देशक अमर कौशिक के पास फिल्म 'स्त्री' में उनके जोड़ीदार रहे राज और डीके नहीं है। लेकिन इस बार निरेन भट्ट की इमेजिनेशन पावर पर पूरा दारोमदार है और एक हॉरर यूनिवर्स की ये कहानी 'रूही' जैसे अंजाम को जाती दिख रही है।

इसके साथ ही इस फिल्म 'भेड़िया' की कहानी दिल्ली के रहने वाले एक लड़के भास्कर की है। भास्कर बग्गा (सौरभ शुक्ला) के लिए काम करता है और बग्गा के कहने पर ही वो अपने चचेरे भाई जनार्दन (अभिषेक बनर्जी) के साथ सड़क बनाने अरुणाचल प्रदेश पहुंचता है। जहां उसकी मुलाकात जोमिन (पॉलिन कबाक) और पांडा (दीपक डोबरियाल) से होती है और दोनों भास्कर की मदद करते हैं मगर जंगल के आदिवासी लोग अपनी जमीन छोड़ने और पेड़ों को काटने देने के लिए तैयार नहीं हैं। नहीं नहीं अगर आप ये सोच रहें है की ये फिल्म कांतरा की तरह है तो बता दें कि यहां 'कांतारा' जैसा कुछ भी नहीं है। फिल्म का हीरो भास्कर आदिवासियों को मानने की अपनी कोशिशें जारी रखता है और एक दिन वापस लौटते समय उस पर हमला हो जाता है। मामला जानवरों की डॉक्टर अनिका (कृति सेनन) के पास पहुंच जाता है और यहां से कहानी में ट्विस्ट आता है, वही असल 'भेड़िया' है।


वहीं फिल्म 'भेड़िया' में भास्कर यानी के वरुण धवन पूनम की रात को वैसे ही भेड़िया बन जाता है, जैसे महेश भट्ट की 1992 में रिलीज हुई फिल्म 'जुनून' का हीरो जानवर बनता है। साथ ही उस एक फिल्म जुनून ने फिल्म 'आशिकी' से स्टार बने राहुल रॉय के करियर पर ताला लगा दिया था। वैसा कुछ वरुण धवन के साथ तो नहीं होने वाला है लेकिन 'भेड़िया' की कहानी काफी हद तक फिल्म 'जुनून' से मिलती जुलती है। इस फिल्म के सारे मामले यहां जंगल और जमीन को बचाने से जुड़ा हुआ है। जहां भास्कर मानता है कि जीवन में सब कुछ पैसा ही है और पैसे से कुछ भी खरीदा जा सकता है। उसके किरदार की ये सोच वरुण धवन को हीरो नहीं बनने देती और कहानी के तमाम ट्विस्ट एंड टर्न्स ऐसे हैं कि फिर कहानी में न तो हिमेश रेशमिया के गाने स्पीड ला पाते हैं और न ही गुलजार का गाना चड्ढी पहनाकर फूल ही खिला पाता है।


बता दें कि फिल्म 'भेड़िया' की सबसे कमजोर कड़ी इसका स्क्रिप्ट है। साथ ही फिल्म भेड़िया इंटरवल से पहले बहुत धीमी चलती रहती है। इसके साथ ही अभिषेक बनर्जी और दीपक डोबरियाल अपनी कोशिशों से कहानी में थोड़ी जान फूंकने की कोशिश करते नजर आ रहे है और उनके डायलॉग पर हंसी भी आती है। लेकिन इंटरवल के बाद कहानी थोड़ी रफ्तार पकड़ती है और क्लाइमेक्स से पहले कहानी में एक नया ट्विस्ट आता हैं और यह फिल्म की हीरोइन कृति सेनन की कलाकारी से दर्शक हैरान रह जाते हैं। जहां कृति सेनन ने अपने इस अनोखे किरदार के जरिये फिल्म 'भेड़िया' को बचाने की पूरी कोशिश किया है पर उनका रूप और लावण्य हिंदी सिनेमा में उनको नंबर वन की अभिनेत्री बनाने में मददगार साबित हुआ है, बस उनको फिल्मों का चयन बेहतर करना चाहिए और कम से कम ऐसे गानों पर तो बिल्कुल कमर नहीं मटकानी चाहिए, जिनके बोलों के कोई मायने ही न होते हों।


इसके अलावा अगर हम फिल्म के टेक्नीशियन टीम का काम देखें तो खुद निर्देशक अमर कौशिक इस बार थोड़े से कमजोर पड़ गए हैं और फिल्म का सब्जेक्ट तो उन्होंने बहुत अच्छा उठाया। एनवायरमेंट की बात भी सामने रखी लेकिन उन्हें कहानी पर थोड़ा ध्यान और काम ज्यादा करने की जरूरत थी। निरेन भट्ट ने फिल्म को कुछ हल्के-फुल्के और मजाकिया पलों के साथ जीवंत करने की कोशिश तो की है लेकिन ये बकरा भी किस्तों में कटा है। फिल्म की सबसे कमजोर पहलू फिल्म का म्यूजिक है। बता दें कि न अमिताभ भट्टाचार्य के बोल यहां असरदार साबित हुए हैं और न ही सचिन जिगर की म्यूजिक। हां, बैकग्राउंड स्कोर में उनकी मेहनत दिखती है। फिल्म का हीरो इसका पर्यावरण यानी कि अरुणाचल प्रदेश है और इसे बेहतरीन तरीके से दिखाने में जिष्णु भट्टाचार्जी की सिनेमैटोग्राफी ने कमाल किया है और एक स्टार फिल्म को इसके वीएफएक्स के लिए भी दिया जा सकता है।

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