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Munawwar Sultana: डॉक्टर बनते-बनते अदाकारा बन गई 40 के दशक की ये मशहूर अभिनेत्री....’

Munawwar Sultana: 12 साल के फिल्मी करियर में 26 फिल्मों में किया लीड रोल, मधुबाला थी साइड एक्ट्रेस, जानिए कौन हैं ये अभिनेत्री

Jyotsna Singh
Published on: 16 Nov 2024 7:38 AM IST
Munawwar Sultana
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Munawwar Sultana: पल भर में कोई हो गया दीवाना किसी का, आंखों में रंग भर के ... चालीस और सत्तर के दशक में कई अदाकाराओं ने अपने हुस्न का जादू सिल्वर स्क्रीन पर चलाया था, जिनमें से कुछ अभिनेत्रियां ऐसी भी थीं जिन्होंने अपनी खूबसूरती और मनमोहक अदाओं से लंबे समय तक न जाने कितने नवजवान दिलों को अपना दीवाना बना कर रख दिया था। लेकिन अचानक ही ये फिल्मी परदे से पूरी तरह से गायब हो गईं और गुमनामी के अंधेरों में अपनी जिंदगी की आखिरी सांसें लीं। ऐसी ही एक अभिनेत्री की कहानी यहां हम आपको बताने जा रहें हैं जो अपने दौर की मशहूर अभिनेत्री सुरैया, श्यामा, नर्गिस आदि के बीच अपने अदाकारी के बलपर मजबूत पहचान बनाने में सफल हुईं साथ ही कई हिट फिल्में देने के साथ खूबसूरत नगमों के जरिए आज भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराती हैं।

जी हां यहां हम आपका ताल्लुक उस मशहूर अभिनेत्री से करवाने जा रहें हैं जिन्हें सब मुनव्वर सुल्ताना के नाम से जानते हैं। ये अभिनेत्री 40 के दशक में फिल्मी परदे पर जमकर अपना जादू बिखेरती और सिने प्रेमियों को बार बार सिनेमा घर तक लाने को मजबूर कर देती थीं। लेकिन अपनी बुलंदियों के बीच ही इस अभिनेत्री का शादी का निर्णय धीरे-धीरे इन्हें इनकी लोकप्रियता से दूर करता चला गया। इनकी 1945 में रिलीज हुई फिल्म “पहली नजर“, 1947 की दर्द, ऐलान और कनीज 1950 की बाबुल जैसी इनकी कई फिल्मों के नाम गिने जाएं तो एक बाद एक सुपर हिट देने वाली फिल्मों की लंबी लिस्ट मौजूद है।


आज के दौर में नई पीढ़ी के बीच शायद ही लोगों की जबान पर इस अदाकारा का नाम आता होगा । लेकिन अपने वक्त की इस होनहार अभिनेत्री का देवानंद, दिलीप कुमार जैसे दिग्गज अभिनेताओं को सिनेजगत में पहचान दिलाने में अपना योगदान दिया है।उन्होंने पृथ्वीराज कपूर , दिलीप कुमार , सुरेंद्र , मोतीलाल , त्रिलोक कपूर , महिपाल आदि जैसे युग के प्रमुख नायकों के साथ फिल्मों में अभिनय किया। उनकी कुछ सफल फिल्में पहली नज़र , दर्द (1947), एलान (1947) कनीज़ (1947), और बाबुल (1950) थीं।

आरंभिक जीवन

Early life of Munawwar Sultana

मुनव्वर सुल्ताना का जन्म 8 नवंबर, 1924 को लाहौर , पंजाब , ब्रिटिश भारत में एक कट्टर पंजाबी मुस्लिम परिवार में हुआ था। इनके पिता उस वक्त आल इंडिया रेडियो में उद्घोषक थे। मुनव्वर का जन्म पाकिस्तानी गायक मुनव्वर सुल्ताना के जन्म के दिन ही हुआ था और उनका नाम भी वही है, लेकिन दोनों के बीच कोई संबंध नहीं है।ये महज एक इत्तिफाक है।


यूं रहा डॉक्टर से अभिनेत्री बनने का सफर

बचपन से मुनव्वर का सपना था कि वो एक डॉक्टर बनें । लेकिन उनकी किस्मत में कुछ और ही बनना लिखा था। इसके पीछे भी एक बड़ा रोचक किस्सा है। असल में जिस वक्त मुनव्वर सुल्ताना अपनी मेडिकल की पढ़ाई की तैयारियों में मशगूल थीं उसी समय उनकी मुलाकात लाहौर स्थित पंचोली पिक्चर्स के मालिक दिलसुख पंचोली से हुई। मुनव्वर को देखते ही दिलसुख पंचोली ने अपनी आगामी फिल्म खजांची में काम करने के लिए इनके सामने प्रस्ताव रख दिया, इस फिल्म में इन्हें बार गर्ल का किरदार निभाया था।1941 की इस फिल्म का गाना जिसे मुनव्वर पर फिल्माया गया था “पीने के दिन आए“ उस वक्त का सुपर हिट गीत साबित हुआ। अपनी इस पहली फिल्म में ही दर्शकों से मिले प्यार को देखकर उन्होंने तय कर लिया कि वो अब मेडिकल की पढ़ाई छोड़ कर फिल्म लाइन में अपनी पहचान बनाएंगी। जिसके उपरांत मुनव्वर ने लाहौर छोड़ कर मुंबई की ओर अपना रुख किया। फिल्म खजांची से हीं मशहूर पार्श्व गायिका शमशाद बेगम ने भी अपनी फिल्मी दुनिया के सफर की शुरुआत की थी। ‘खजांची’ का ‘सावन के नज़ारे हैं आ हा आ हा’ नवयुवतियों के लिए अपनी नई शैली के साथ घर-घर का गीत बन गया था।


मुंबई आते ही मिला फिल्मी करियर को बड़ा ब्रेक

मुंबई आते ही मुनव्वर अब्दुल रशीद कारदार की फिल्म शाह जहां में लीड रोल मुमताज महल का हासिल करने में सफल रहीं। लेकिन उसी समय मुंबई टाकीज में हुए एक बम धमाके से दर्शकों के बीच सिनेमा देखने को लेकर दहशत का माहौल बन चुका था। ऐसे में मुनव्वर सुल्ताना के परिवार ने उन्हें वापस लाहौर लौट आने को मजबूर किया। मायूस मुनव्वर ने दोबारा से अपनी मेडिकल की पढ़ाई जारी कर दी। इसी बीच एक दिन उनके घर उस वक्त के मशहूर फिल्मकार मजहर खान का आना हुआ। मुनव्वर से मुलाकात कर उन्होंने कहा कि तुम्हारी जगह फिल्म जगत में हैं । तुम मेरे साथ मुंबई वापस लौट चलो। जिसके बाद मुनव्वर एक बार फिर सिल्वर स्क्रीन पर अपनी किस्मत को आजमाने मुंबई लौट आईं। यहां से उन्होंने एक लंबी पारी खेलने की शुरुआत की।

मुनव्वर राना उस समय की सबसे महंगी और सफल अभिनेत्रियों में हुईं शुमार

1945 में निर्माता-अभिनेता-निर्देशक मज़हर खान को अपनी अगली फिल्म के लिए एक नए चेहरे की तलाश थी, यही वजह है कि इन्होंने लाहौर जाकर मुनव्वर सुल्ताना से मुलाकात की और उन्हें 4000 रुपये मासिक शुल्क और एक अपार्टमेंट के प्रस्ताव पर राजी कर उन्हें बॉम्बे ले आए। मज़हर के साथ मुनव्वर की पहली फ़िल्म ‘पहली नज़र’ थी , जिसमें उन्हें अभिनेता मोतीलाल के साथ कास्ट किया गया था।जिसके बाद 1945 में इनकी फिल्म ’ पहली नजर ’ परदे पर जबरदस्त हिट साबित हुई। दिल जलता है तो जलने दे ’ बेहद मशहूर गीत को मोतीलाल के लिए गायक मुकेश द्वारा प्लेबैक किया गया था। जिसमें, खान ने फिल्मांकन के दौरान मुनव्वर के क्लोज-अप पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित किया।


इस फिल्म के पश्चात फिल्म मेकर कारदार साहब ने मुनव्वर को 1947 की ‘दर्द’ फिल्म में एक जबरदस्त रोल ऑफर किया, जिसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। इस फिल्म का बेहद लोकप्रिय गीत ’ अफसाना लिख रहीं हूं दिले बेकरार का ’ युवा दर्शकों के दिलों पर राज कर गया। उमा देवी यानी टुनटुन का गाया पहला गीत ’अफसाना लिख रही हूं बेकरार का’ मुनव्वर सुल्ताना पर ही फिल्माया गया था। जिसके बाद लाजवाब अभिनय, मधुर संगीत और दिलों को छू लेने वाली कहानी पर शानदार अदायगी से भरपूर ‘अंधों की दुनियां’ और ‘ऐलान’ जैसी सुपर हिट फिल्मों ने इनके फिल्मी करियर को जैसे चार चांद लगा दिए। लगातार कई हिट फिल्में देने के बाद मुनव्वर राना उस समय की सबसे महंगी और सफल अभिनेत्रियों में शुमार हो चुकीं थीं।

अर्श से फर्श पर आने का देखा दौर
Saw the phase of coming from the ass to the floor

सफलता की चोटी पर अपना मुकाम हासिल कर चुकी इस अभिनेत्री की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आया जब फिल्मकार उनसे फिल्में साइन करवाने के लिए लंबे समय तक इंतजार करते थे। मुनव्वर के ऊपर एक साल के भीतर ही कई फिल्में करने का दबाव बढ़ता जा रहा था। यही वजह है कि साल 1948 से 1950 के दौरान उन्होंने कुल 15 फिल्मों में काम किया था, जिनमें ‘मजबूर’, ‘कनीज’, ‘मेरी कहानी’, ‘बाबुल’ जैसी कई सुपर हिट फिल्मों में बतौर सह अभिनेत्री काम किया था। वहीं 1950 का फिल्मी दौर खत्म होते होते कई मधुबाला, देविका रानी जैसी कई नई अभिनेत्रियों ने हिंदी फिल्मी दुनियां में प्रवेश किया। यहीं वजह कि मुनव्वर कभी लीड किरदार निभाती फिल्मों में नजर आती तो कभी सेकंड लीड रोल में, लेकिन मुन्नवर की चेहरे की मासूमियत और बेजोड़ अभिनय के सामने जल्दी कोई भी टिक नहीं पाता।


ओपी नैय्यर का पहला गीत इन्हीं पर फिल्माया गया

OP Nayyar's first song was filmed here

साल 1950 की फिल्म ‘बाबुल’ में शमशाद बेगम और तलत मेहमूद की आवाज में दिलीप कुमार और मुनव्वर सुल्ताना पर फिल्माया गया गीत “मिलते ही आंखें दिल हुआ दीवाना किसी का“ अपने दौर के सुपरहिट गीतों में शामिल है। साल 1949 की फिल्म को इसलिए भी जाना जाता है क्योंकि मशहूर संगीतकार ओपी नैय्यर ने इस फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक तैयार करके अपना फिल्मी सफर शुरू किया था।

फर्नीचर व्यवसाई शारफ अली के साथ लिए सात फेरे

Seven rounds with furniture businessman Sharaf Ali

इसी दौरान फर्नीचर व्यवसाई शारफ अली से उन्हें इश्क हुआ, इसी मुहब्बत के चलते शारफ अली ने मुनव्वर को 1948 में अपनी फिल्म ‘मेरी कहानी’, 1950 में ‘प्यार की मंजिल’ फिल्म का निर्माण कर उन्हें इसमें लीड रोल ऑफर किया। इस बीच दोनों की शादी हुई और परंपरा के अनुसार मुनव्वर सुल्ताना ने फिल्मी दुनियां से संन्यास ले लिया। उनकी आखिरी फिल्म ‘जल्लाद’ थी जो 1956 में रिलीज हुई थी। जिसमें दिलीप कुमार के छोटे भाई नासिर खान ने उनके साथ काम किया था। जिसके बाद वो इस रुपेहली स्क्रीन पर कभी नजर नहीं आईं, न ही उस वक्त के मीडिया के बीच भी उनकी कोई चर्चा रही। जिसके बाद कई तरह की अफवाहों के चलते लोगों को लगने लगा कि शायद मुनव्वर सुल्ताना का देहांत हो चुका है।

पर 1966 में पति की आकस्मिक मौत के बाद मुनव्वर एक बार फिर मीडिया के बीच चर्चा का मुद्दा बनीं। मुनव्वर इस घटना से पूरी तरह से टूट चुकीं थीं। अपनी शादी के सिनेमा को अलविदा कह चुकी मुनव्वर को फिल्मी दुनियां ने भी अब भुला दिया था। ऐसे ने अपने 7 बच्चों की परवरिश उनके सामने एक बड़ी चुनौती बन कर खड़ी हो चुकी थी। चार बेटे और तीन बेटियों की जिम्मेदारी उन्होंने अकेले ही उठाई। हालाँकि, फर्नीचर का एक बड़ा व्यवसाय होने के कारण मुनव्वर का परिवार पति की मौत के बाद भी आराम से चल रहा था क्योंकि मुनव्वर सुल्ताना और उनके पति दोनों ने अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाए रखने में कामयाबी हासिल की थी।

12 सालों के अपने करियर के दौरान मुनव्वर सुल्ताना ने कुल 26 फ़िल्मों किए लीड रोल

Munawwar Sultana did lead roles in a total of 26 films.

ख़जांची’ (1942) के बाद क़रीब 12 सालों के अपने करियर के दौरान मुनव्वर सुल्ताना ने कुल 26 फ़िल्मों, ‘पहली नज़र’ (1945/ नायक-मोतीलाल), ‘अंधों की दुनिया’ (1947/महिपाल), ‘दर्द’ (1947/नुसरत कारदार), ‘ऐलान’ (1947/सुरेन्द्र), ‘नैया’ (1947/मज़हर ख़ान), ‘मजबूर’ (1948/श्याम), ‘मेरी कहानी’ (1948/सुरेन्द्र), ‘पराई आग’ (1948/उल्हास), ‘सोना’ (1948/मज़हर ख़ान), ‘दादा’ (1948/श्याम), ‘दिल की दुनिया’ (1949/मज़हर ख़ान), ‘क़नीज़’ (1949/श्याम), ‘निस्बत’ (1949/याक़ूब), ‘रात की रानी’ (1949/श्याम), ‘सावन भादों’ (1949/रामसिंह), ‘उद्धार’ (1949/देव आनंद), ‘बाबुल’ (1950/दिलीप कुमार), ‘प्यार की मंज़िल’ (1950/रहमान), ‘सबक’ (1950/करण दीवान), ‘सरताज़’ (1950/मोतीलाल), ‘अपनी इज़्ज़त’ (1952/मोतीलाल), ‘तरंग’, (1952/अजीत), ‘एहसान’ (1954/शम्मी कपूर), ‘तूफ़ान’ (1954/सज्जन), ‘वतन’ (1954/त्रिलोक कपूर) और ‘जल्लाद’ (1956/नासिर ख़ान) में बतौर नायिका काम किया। उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने दौर की हरेक टॉप नायिका से मॉडलिंग करवाने के लिए मशहूर ‘लक्स’ साबुन के विज्ञापन के लिए उस ज़माने में उन्होंने भी काम किया था।


अल्जाइमर जैसी घातक बीमारी की हुईं शिकार

अपने जीवन के अंतिम आठ वर्षों में, वह अल्जाइमर रोग से पीड़ित रहीं। 15 सितंबर, 2007 को 82 वर्ष की आयु में अपने घर पर उनकी अपने पारिवारिक जनों की भरपूर देखभाल के बावजूद भी वो इस दुनियां को हमेशा के लिए छोड़ कर चली गईं। चमक दमक की दुनियां में कौन किसको याद रखता है, ऐसा ही कुछ अपने वक्त की इस दिग्गज अभिनेत्री के साथ भी हुआ।गुमनामी के बीच इन्होंने आखिरी सांस ली, लेकिन इन पर फिल्माए गए कई खूबसूरत नगमों के जरिए लोग आज भी इन्हें याद करते हैं। जिनमें से एक बेहद लोकप्रिय गीत है अफसाना लिख लाई हूं दिले बेकरार का आज के दौर की नई पीढ़ी गुनगुनाते हुए अक्सर दिखाई देती है।

मुनव्वर सुल्ताना पर फिल्माए कुछ मधुर गीत -
Some melodious songs filmed on Munawwar Sultana

हेलो बोलो दिल लो मिल लो गायक : शमशाद बेगम, बलबीर, हरीश

फिल्म : अपनी इज्जत

हुस्न यहां इश्क यहां

गायिका :आशा भोसले

फिल्म :जल्लाद

...

मस्ती का समा

मुनव्वर सुल्ताना

फिल्म : एक रोज

...

परदेसी से प्रीत लगाई

गायिका : दिलशाद बेगम

फिल्म : परदेशी बालम

ओ दिल चुराने वाले

गायिका : मुनव्वर सुल्ताना

फिल्म : आबशार

आज गहनों से मुझको

गायक : मुनव्वर सुल्ताना, इनायत हुसैन भट्टी

फिल्म : बसंत पंचमी

...

दिल आने के ढंग निराले हैं

गायिका : गीता दत्त

फिल्म : मेरी कहानी

...

कोई सुनके क्या करेगा

गायिका : मुनव्वर सुल्ताना

फिल्म : आबशार

...

तड़पाएंगे हम दिल को

मुनव्वर सुल्ताना

फिल्म : हिचकोले

( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)



Shalini singh

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