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Bhupinder Singh Passes Away: दिल ढूंढता है गाने वाले गजल गायक भूपेंद्र का निधन
Bhupinder Singh Passed Away: देश के मशहूर गजल गायक भूपिंदर सिंह का आज निधन हो गया। वह 82 वर्ष के थे।
Bhupinder Singh Passed Away: देश के मशहूर गजल गायक भूपिंदर सिंह का आज निधन (Bhupinder Singh Passed Away) हो गया। उनकी पत्नी और गजल गायिका मिताली सिंह ने बताया कि भूपेंद्र सिंह काफी समय से बीमार थे।मुम्बई के क्रिटी केयर अस्पताल (Criti Care Hospital in Mumbai) में उनका निधन हो गया है। वह 82 वर्ष के थें।
भूपिंदर सिंह मुख्य रूप से एक गजल गायक थे। उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में प्लेबैक सिंगिंग की है। भूपिंदर सिंह ने बचपन में अपने पिता से गिटार बजाना सीखा बाद में उन्होंने दिल्ली मेंऑल इंडिया रेडियो गिटारवादक के तौर पर कुछ सालों तक काम किया।
उनके प्रसिद्धि तब मिली जब उन्होंने मदन मोहन के संगीत निर्देशन में मौसम फिल्म के गीत गाए। इसके अलावा सत्ते पे सत्ता", "अहिस्ता अहिस्ता", "दूरियां", "हकीकत" और कई अन्य फिल्मों में उनके यादगार गीतों के लिए याद किया जाता है. उनके कुछ प्रसिद्ध गीत "होके मजबूर मुझे, उसे बुलाया होगा", (मोहम्मद रफी, तलत महमूद और मन्ना डे के साथ), "दिल ढूंढता है", "दुकी पे दुकी हो या सत्ते पे सत्ता" लोगों के जुबान में चढे हुए हैं। उनके हिट गीतों में दिल ढूंढ़ता है फिर वही', 'एक अकेला इस शहर', 'किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है', 'होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा', जैसे ग़ज़लो को भुलाया नहीं जा सकता है।
भूपेन्द्र सिंह का जन्म ब्रिटिश राज के दौरान पंजाब प्रान्त की पटियाला रियासत में 8 अप्रैल 1939 को हुआ था। उनके पिता प्रोफेसर नत्था सिंह पंजाबी सिख थे। यद्यपि वे बहुत अच्छे संगीतकार थे लेकिन मौसिकी सिखाने के मामले में बेहद सख्त उस्ताद थे। अपने पिता की सख्त मिजाजी देखकर शुरुआती दौर में बालक भूपिन्दर को संगीत से नफ़रत सी हो गयी थी। एक वह भी जमाना था जब भूपिन्दर संगीत को बिल्कुल भी पसन्द नहीं करता था।
धीरे-धीरे भूपिन्दर में गज़ल गायन के प्रति रुचि जागृत हुई और वह अच्छी गज़लें गाने लगा। 1968 में संगीतकार मदन मोहन ने आल इण्डिया रेडियो पर उसका कार्यक्रम सुनकर दिल्ली से बम्बई बुला लिया। सबसे पहले उसे फ़िल्म हकीकत में मौका मिला जहाँ उसने "होके मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा" गज़ल गायी। यद्यपि यह गज़ल तो हिट हुई लेकिन भूपेन्द्र सिंह को इससे कोई खास पहचान नहीं मिली। इसके बाद भूपेन्द्र ने स्पेनिश गिटार और ड्रम पर कुछ गज़लें पेश कीं। इससे पूर्व वे 1968 में अपनी लिखी और गायी हुई गज़लों की एलपी ला चुके थे। परन्तु इस नये प्रयोग को जब उन्होंने दूसरी एलपी में पेश किया तो सबका ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ। इसके बाद "वोह जो शहर था" नाम से 1978 में जारी तीसरी एलपी से उन्हें खासी शोहरत मिली। गीतकार गुलज़ार ने इस एलपी के गाने 1980 में लिखे थे।