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KGF 2 देखने से पहले जानिए कोलार गोल्ड फील्ड्स की असली 121 साल पुरानी खूनी True Story
Film KGF Chapter 2: आज हम बताने जा रहे हैं कि उस खदान की कहानी जिस पर बनी है ये केजीएफ 2।
Film KGF Chapter 2: घनघोर खून खराबे, जबर डायलोग और झौवा भर एक्शन वाली केजीएफ का सेकंड पार्ट (Film KGF 2) सिल्वर स्क्रीन पर आग लगाने को तैयार है। पहला पार्ट स्क्रीन प्ले कास्ट और... और क्या पूरी फिलम ही गदर काटे हुए थी। फैंस दीवाने हुए पड़े हैं। फर्स्ट डे फर्स्ट शो के लिए कार्यालय में अभी से छुट्टी वाली अर्जी के लिए दिमाग खपाया जाने लगा है कि इस बार साहेब से क्या बहाना बनाया जाएगा। तो ऐसे में लगे हाथ हम भी ले आए हैं आपके लिए उस खदान की कहानी जिसपर बनी है ये केजीएफ... पहली फुर्सत में पढ़ लीजिये, दोस्तों में भौकाल मारने के लिए काम आएगी।
जानिए क्या है उस खदान की कहानी
कथा आरंभ करते हैं! कर्नाटक के दक्षिण पूर्व इलाके में स्थित कोलार गोल्ड फील्ड्स यानि की हमारी केजीएफ में सोने की खुदाई (Gold Digging) का इतिहास 121 साल पुराना है। दावा है कि इस खादान से अभी तक 900 टन सोना निकाला जा चुका है। और अभी भी बड़ी मात्रा में खान के अंदर सोना मौजूद है। काफी समय पहले खदान के बारे में एशियाटिक जर्नल के एक आर्टिकल में कोलार के सोने के बारे में चार पन्ने लिखे गए थे। ये आर्टिकल 1871 में हाथ लगा ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली के। उसने जब इसे पढ़ा तो उसको काफी उत्सुकता हुई।
इसके अलावा लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन ने भी इस खदान पर आर्टिकल लिखा था। इसमें था केजीएफ का इतिहास जो शुरू होता है 1799 से। ये वो समय था जब श्रीरंगपट्टनम के युद्ध में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान की हत्या कर दी थी और कोलार सहित इलाके पर उनका कब्जा हो गया। कुछ समय बाद ये जमीन मैसूर को दी गई लेकिन अंग्रेजों ने कोलार की जमीन का सर्वे करने का हक अपने पास रखा था। वॉरेन का ये भी आर्टिकल लेवेली ने न सिर्फ पढ़ा बल्कि उसके अंदर सोना पाने की लालसा भी बढ़ गई।
वॉरेन ने अपने आर्टिकल में बताया कि कोलार में चोल साम्राज्य का अधिपत्य था और खदान से हाथ से खोदकर सोना निकाला जाता था। वॉरेन ने गांव वालों से सोना निकलवाया लेकिन उसे खास सफलता नहीं मिली।
वर्ष 1804 से लेकर 1860 तक अंग्रेजों खनन के लिए काफी प्रयास किए लेकिन उतना फायदा नहीं मिला जिससे गोरी सरकार खुश होती। इस दौरान कोलार में कई मजदूरों की जान जरुर चली गई। थक हार के गोरी सरकार ने खुदाई रोक दी।
1875 में शुरू हुई सोने की खुदाई
कोई था जिसे चैन नहीं था उसे सोना चाहिए था.. ये कोई और नहीं लेवेली ही था। 1871 में लेवेली साहेब पहुंच गए कोलार। लेकिन उन्हें 1873 में मैसूर के महाराज से सोने के खनन की परमीशन मिली। इसके बाद भी खनन शुरू होने में समय लगा और 1875 में खुदाई शुरू हुई।
खनन जब शुरू हुआ तो रोशनी के लिए मशालों और लालटेनों का प्रोग होता था । इससे काम पर प्रभाव पड़ रहा था। लेवेली ने इस मुसीबत का हल निकले के लिए बिजली का इंतजाम किया गया, और केजीएफ बना गया वो पहला शहर जहां बिजली थी। बिजली मशीनें साथ लाई। 1902 से 1930 तक केजीएफ में सोने का जमकर दोहन हुआ, इस काम में 30 हजार मजदूर लगे थे।
सोने और बिजली ने इस इलाके को ब्रिटिश ऑफिसर्स और इंजीनियर्स का फेवरेट बना दिया। इसका एक कारण ये भी था कि इस इलाके का मौसम भी काफी ठंडा था।
इसके बाद जब देश आजाद हुआ तो 1956 में खदान का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। 1970 में भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड कंपनी (Bharat Gold Mines Limited Company) ने खनन आरंभ किया। शुरुआत में सरकार को सोना मिला। लेकिन 80 के दशक में कंपनी के लिए ये नुकसान का सबब बन गई। मजदूरी देने के भी पैसे नहीं बचे, तो ऐसे में वर्ष 2001 में खुदाई बंद करने का फैसला लिया गया।
इसके साथ ही ये कथा समाप्त होती है नमस्ते।
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