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स्मृति शेष शारदा सिन्हा: पग पग लिए जाऊं तोहरी बलइयां...

Sharda Sinha: शारदा सिन्हा ने लोकगीतों को जो ऊंचाई दी है वह भोजपुर और मिथिला की संस्कृति को समझने और उनके अध्ययन में हमेशा एक दीप का काम करेगी।

Raj Kumar Singh
Published on: 6 Nov 2024 12:50 PM IST (Updated on: 6 Nov 2024 2:49 PM IST)
Sharda Sinha
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Sharda Sinha (social media) 

Sharda Sinha: साल 1989, एक फिल्म आई थी- मैंने प्यार किया। टीन एजर लड़के-लड़की की प्रेम कहानी। प्रेम और सुमन की प्रेम कहानी। सलमान खान और भाग्यश्री की इस सुपर हिट फिल्म में ना जाने कितने युवाओं ने अपनी प्रेम कहानियों को जिया। लेकिन यहां बात इस फिल्म की नहीं हो रही है। यहां बात हो रही है इस फिल्म के एक गाने की-

कहे तोसे सजना ये तोहरी सजनियां

पग पग लिए जाऊं तोहरी बलइयां...

यहीं से मेरा पहला परिचय हुआ था भोजपुरी गीतों से, शारदा सिन्हा से और सच कहूं तो भोजपुरी और मैथिल संस्कृति से। मैं मध्य उत्तर प्रदेश और बृज के बीच के जिस इलाके से आता हूं वहां पूर्वांचल और बिहार की मिट्टी और संस्कृति की सुगंध उतनी नहीं पहुंची थी। इसलिए शारदा सिन्हा के लोकगीतों ने मुझे इस सुंदर और मीठे अंचल से पहली बार परिचित कराया। इसके बाद हम आपके हैं कौन फिल्म के एक बेटी के विदाई गीत ने मुझे सम्मोहित कर दिया-

बाबुल जो तुमने सिखाया, जो तुमसे पाया

सजन घर ले चली, सजन घर ले चली..

संस्कृति से परिचित कराती हैं शारदा सिन्हा

शारदा सिन्हा के गीतों की खासियत थी उनके गीतों में लोक की मिठास और मिट्टी की महक। उनके गीतों को सुनते हुए अकसर ऐसा हुआ कि आंखें न सिर्फ नम हुईं बल्कि बह भी निकलीं। यही तो भाषा की सुंदरता है कि वह सिर्फ संप्रेषण तक ही सीमित नहीं रहती आपको एक पूरी संस्कृति से भी परिचित कराती है। ना सिर्फ भाषा की बल्कि कला की भी यही खासियत होती है वह उन स्थानों की संस्कृति को भी हम तक पहुंचाती है जहां हम सदेह नहीं पहुंच पाते फिर वह चाहे भोजपुर हो मिथला हो या फिर असम। इस संदर्भ में हम भूपेन हजारिका को कैसे भूल सकते हैं जिनके गीतों को सुनकर पहाड़ों, गंगा और कहार मजदूरों की एक अलग ही छवि बनती है। कैसा संयोग है कि 5 नवंबर को भारत रत्न भूपेन हजारिका की पुण्य तिथि पर ही मां सरस्वती की पुत्री पद्म भूषण शारदा सिन्हा भी अपनी आवाज़ को हमारे पास छोड़कर ईश्वर के पास चली गईं।


लोकगीतों को दी ऊंचाई

लोक कलाएं किसी भी संस्कृति की आत्मा होती हैं। हिन्दू धर्म में जैसे आत्मा अजर और अमर है वैसे ही लोक कलाएं भी। वह चाहे लोकगीत हों, चित्रकारी हो या फिर शिल्पकारी हो, आने वाली पीढ़ियां इन्हीं से अपने अतीत की संस्कृति का अध्ययन करती है। शारदा सिन्हा ने लोकगीतों को जो ऊंचाई दी है वह भोजपुर और मिथिला की संसकृति को समझने और उनके अध्ययन में हमेशा एक दीप का काम करेगी। एक ऐसे समय में जब भोजपुरी लोकगीतों के नाम पर तमाम सतही गानों ने लोगों को भ्रमित कर दिया है तब शारदा सिन्हा के गीत हमें बताएंगे कि दरअसल बिहार और पूर्वांचल की वास्तविक संस्कृति आखिर है क्या।


मृत्यु का असाधारण संयोग

मैं अकसर देखता हूं कि असाधारण प्रतिभा से युक्त लोगों के जीवन में असाधारण संयोग भी बनते हैं। अब छठ महापर्व पर ही छठी मैया की बेटी का उनके ही आलोक में समा जाना एक संयोग नहीं तो और क्या है। हां हमारे लिए तो लोकगीतों की स्वर कोकिला शारदा सिन्हा अपने गीतों के माध्यम से सदैव हमारे पास रहेंगी, कभी विदाई के गीतों में, कभी प्यार के गीतों में और कभी छठ के गीतों के जरिए हमें हमारी आत्मा से मिलाती रहेंगी।



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Sonali kesarwani

Sonali kesarwani

Content Writer

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