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B'DAY:देशभक्ति फिल्मों के सरताज मनोज कुमार, जिसने उठाया था बिग बी का भी करियर

suman
Published on: 24 July 2018 4:52 AM GMT
BDAY:देशभक्ति फिल्मों के सरताज मनोज कुमार, जिसने उठाया था बिग बी का भी करियर
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जयपुर: फिल्म इंडस्ट्री के भारत कुमार यानी कि मनोज कुमार का 24 जुलाई को 81वां जन्मदिन मना रहे है। मनोज कुमार ने फिल्म जगत में न केवल एक्टिंग, बल्कि डायरेक्शन में भी अपना हाथ आजमाया। मनोज कुमार ने ज्यादातर देशभक्ति वाली फिल्मों में ही काम किया। उनकी सुपरहिट फिल्मों में हरियाली और रास्ता, हिमालय की गोद में और दो बदन फिल्मों के नाम शुमार हैं।

मनोज कुमार के जन्मदिन पर उनकी कुछ अनसुनी बाते करते हैं। मनोज कुमार का कद बहुत ऊंचा है। कहा जाता है कि फ्लॉप फिल्मों से परेशान होकर जब अमिताभ बच्चन मुंबई छोड़कर वापस जा रहे थो तो मनोज कुमार ने अमिताभ को अपनी फिल्म 'रोटी, कपड़ा और मकान' में काम दिया था।1970 के मध्य में मनोज की एक के बाद एक तीन हिट फिल्में आईं। जीनत अमान के साथ सामाजिक मुद्दों पर बनी ‘रोटी कपड़ा और मकान’ (1974) के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का दूसरा फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया। इसी दौरान उन्होंने हेमामालिनी के साथ ‘संन्यासी’ (1975) और ‘दस नंबरी’ (1976) रिलीज हुई जो बॉक्स ऑफिस पर सफल रही।

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देश भक्ति और समाज से जुड़ी फिल्मों के चलते मनोज कुमार को 'भारत कुमार' नाम दिया गया। ज्यादातर फिल्मों में मनोज कुमार के किरदार का नाम भारत था, इस वजह से लोग उन्हें 'भारत कुमार' भी कहने लगे। मनोज कुमार शुरुआती समय से एक्टिंग में दिलचस्पी थी।बचपन से दिलीप कुमार, अशोक कुमार और कामिनी कौशल उनके पसंदीदा कलाकारों में से एक थ।स्कूल में पढ़ाई के दौरान मनोज, दिलीप कुमार की फिल्म 'शबनम' देखने गए और फिर उनके किरदार से इतने प्रभावित हो गए कि उसी किरदार के नाम पर उन्होंने अपना नाम मनोज कुमार रख लिया।.मनोज कुमार की पहली फिल्म 1957 में आई फैशन थी. इस फिल्म से मनोज कुमार पर सबकी निगाह नहीं पड़ी लेकिन इसके तीन साल बाद मनोज को बतौर लीड एक्टर उनकी पहली फिल्म बनी. कांच गुड़िया नाम से आई इस फिल्म में मनोज कुमार के साथ सादिया खान थी.सादगी पसंद मनोज कुमार ने बड़े बाल और कान में बालियां भी फिल्मों पहनी है। मनोज कुमार को फिल्म 'उपकार' के लिए नेशनल अवॉर्ड से भी नवाजा गया।मनोज कुमार ने ज्यादातर देशभक्ति वाली फिल्में ही की। मनोज कुमार ने देशभक्ति फिल्में बनाकर ये साबित किया कि ऐसी फिल्मों से भी पैसा कमाया जा सकता है।

फिल्म में मनोज की परफार्मेंस से खुश हुए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें फिल्म उपकारबनाने की प्रेरणा दी, जिसे बॉलीवुड में आज भी देशप्रेम पर बनी खूबसूरत फिल्मों में गिना जाता है। इस फिल्म ने उन्हें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार दिलाने के साथ ही 'मेरे देश की धरती' गाने से नई पहचान भी दिलाई।

इसके बाद तो जैसे मनोज कुमार के दिल में बरसों से हिलौरें ले रहा देशप्रेम जाग उठा और जन्म हुआ सुपरहिट फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ का। इस फिल्म में उन्होंने देश प्रेम को नए रंग व रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने ना केवल पूर्व अर्थात भारत व पश्चिम अर्थात पाश्चात्य देशों के मूल्यों को तुलनात्मक रूप से प्रस्तुत किया अपितु, भारतीय सभ्यता व संस्कृति का सुंदर रूप में फिल्मांकन और प्रस्तुतिकरण भी किया। अपने ही देश को भूल कर विदेशी सभ्यता व संस्कृति के रंग में रंगे तथा स्वदेश को तिरस्कार की भावना से देखने वाले अप्रवासी भारतीयों की कहानी को, मनोज कुमार ने अपनी फिल्म के माध्यम से प्रस्तुत कर, एक सन्देश देने का प्रयास किया, जिसे दर्शकों के हर वर्ग ने बेहद सराहा।

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मनोज कुमार ने अब तक बनाई गई सभी फिल्मों के अनुभव का उपयोग करके अपनी अगली फिल्म 'क्रांति' बनाई, जिसने उनके करियर को तो चरम पर पहुंचाया ही साथ ही साथ खराब दौर से गुजर रहे दिलीप कुमार की भी शानदार वापसी करवाई। 19वीं सदी के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कहानी बयान करती फिल्म क्रांति की सफलता का अंदाजा, इस बात से लगाया जा सकता है कि उन दिनों में 1.5 करोड़ की लागत से बनी इस फिल्म ने, बॉक्स ऑफिस पर 10 करोड़ से भी ज्यादा का बिजनेस किया था।

क्रांति के साथ ही अपनी बनाई गई फिल्मों की अभूतपूर्व सफलता का स्वाद चख चुके मनोज कुमार का खराब दौर भी शुरू हो गया था। उनकी 1989 में बनी फिल्म ‘क्लर्क’ फ्लॉप रही और ‘संतोष’, ‘कलयुग की रामायण’ जैसी फिल्मों से उनका करियर ग्राफ नीचे की ओर आता रहा। 1999 में अपने बेटे कुनाल गोस्वामी को लेकर 'जय हिंद' बनाई, जो सुपरफ्लॉप रही। लेकिन यही साल मनोज के लिए खुशी भी लेकर आया, जब उन्हें बॉलीवुड को दिए गए अपने उल्लेखनीय योगदान के लिए फिल्मफेयर के लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा गया। अपने उत्कृष्ट फिल्मी करियर के लिए कई राज्यस्तरीय व राष्ट्रीय अवॉर्ड जीत चुके मनोज कुमार को 1992 में, भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

कुछ ही दिनों पहले एक राष्ट्रीय अखबार को दिए गए इंटरव्यू के दौरान वर्तमान समय में देशभक्ति पर बनी फिल्मों की सार्थकता के सवाल पर उन्होंने कहा कि, आज देशप्रेम पर बनी फिल्मों की सफलता फिल्म के आइडिया पर निर्भर करती है। फिल्मों को लेकर हमारे दर्शकों की पसंद विभिन्न पकवानों से सजी खाने की थाली की तरह है, जिन्हें फिल्मों में भी वैरायटी यानि अलग-अलग तरह की चीजें पसंद आती हैं। जिस फिल्म में यह वैरायटी है वो सफल हो जाती है, भले ही वह देशभक्ति पर बनी फिल्म ही क्यों ना हो। इंडस्ट्री में 50 साल के अपने सफर पर मनोज कुमार ने संतोष जाहिर किया। उन्होंने कहा कि इन वर्षों में मैंने 40 से ज्यादा फिल्मों में काम किया जबकि दूसरों ने सैकड़ों फिल्में की। मैं बहुत विशेष फिल्में किया करता था।

मनोज कुमार ने बॉलीवुड में जल्द ही खास मुकाम हासिल कर लिया था कहा जाता है कि एक कहानीकार के रूप में मनोज कुमार उस वक्त महज 11 रुपए लेते थे।मनोज कुमार ने समय के साथ अपने लुक में ज्यादा बदलाव नहीं किया, लेकिन इतना जरूर है कि उनका रोल हर फिल्म में दमदार ही होता था।मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों के माध्यम से भारतीयता की खोज की। अपनी भावनात्मक फिल्मों की बदौलत उन्होंने मुनाफे से ज्यादा नाम कमाया। यही वजह है कि फिल्म जगत में मनोज कुमार को आज भी उनकी देशभक्ति से परिपूर्ण फिल्मों के लिए जाना जाता है। मनोज कुमार को वर्ष दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

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