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किस तरह एक फौजी बना एक मशहूर गीतकार, जानिए गीतकार आनंद बक्शी की जिंदगी की कहानी

Anand Bakshi Biography: अनगिनत हिन्दी गीतों के लिए 41 बार फिल्मफेयर पुरस्कार हेतु नामित और चार बार फिल्मफेयर पुरस्कार विजेता आनंद बक्शी को नहीं आती थी अच्छी हिंदी, जानिए ऐसे कई रोचक किस्से।

Jyotsna Singh
Published on: 15 Nov 2024 12:20 PM IST
Anand Bakshi Biography
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Anand Bakshi Biography (social media) 

Anand Bakshi Biography: "एक था गुल और एक थी बुलबुल"...19 के दशक में रफी की आवाज में गाया गया ये गीत उस समय के दौर में तहलका मचा रहा था। 1965 में भारतीय सिने पर्दे पर सुपर हिट हुई फिल्म "जब जब फूल खिले" के लिए आनंद बख्शी का लिखा यह सुपरहिट गाना आनंद बक्शी के करियर की सुनहरी शुरुआत लेकर आया। कल्याणजी आनंदजी की मशहूर जोड़ी ने इस गीत को संगीत दिया है। इस के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अंग्रेजों के जमाने में फौज की नौकरी करने वाले आनंद बक्शी मुंबई आए तो थे गायक बनने । लेकिन किस्मत ने उन्हें गीतकार बना दिया। उनके लिखे गाने हिंदुस्तानियों के हर हौसले की मिसाल बन चुके हैं। आनंद बक्शी बॉलीवुड इंडस्ट्री का बड़ा नाम थे। उन्होंने इंडस्ट्री को कई हजार बेहतरीन गानों का तोहफा दिया है। उनके जरिए लिखे गए गाने आज भी लोगों की जुबान पर चढ़े रहते हैं।

आनंद बक्शी के लिरिक्स की नजाकत और खूबसूरती के चलते लोग उन्हें शब्दों का बाजीगर भी कहा करते थे। इन्होंने अपने सात दशक के करियर में बॉलीवुड को करीब 4000 से अधिक गाने दिए। गीतकार तो बहुत हुए हैं, लेकिन आनंद बख्शी के गीतों की खासियत उनकी सादगी ही रही। इनके लिखे गीतों के बोल इतने सरल और भावना प्रधान होते थे कि आम आदमी की रूह को छू लेते थे। हर मानवीय संवेदनाओं के ऊपर अलग अंदाज के साथ इनके लिखे गीत सुनने को मिल जाते हैं। यही वजह रही है कि उन्हें लोगों का भरपूर प्यार मिला। यह उनके लिए लोगों का प्यार ही है जिसकी वजह से उन्हें सबसे ज्यादा 41 बार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामित किया गया। चार बार के फिल्मफेयर पुरस्कार विजेता रहे। आनंद बख्शी भले ही हमारे बीच न हों। लेकिन उनके गानों के जरिए वह हमेशा संगीत प्रेमियों के दिल में जिंदा रहेंगे। गायक बदलते गए और संगीतकार भी बलदते गए, लेकिन आनंद बख्शी ने अपनी कलम का तिलिस्म बरकरार रखा।


आरंभिक जीवन

आनंद बक्शी का जन्म रावलपिंडी में एक ब्राह्मण परिवार में 21 जुलाई, 1930 को हुआ। जब वह सिर्फ छह साल के थे, तब उनकी मां की मृत्यु हो गई। भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय उनके पूरा परिवार भारत आ गया और दिल्ली में रहने लगा।

उनकी माँ (सुमित्रा) उन्हें प्यार से ‘नंद’ पुकारती थीं और पिता उन्हें प्यार से ‘अज़ीज़’ या ‘अज़ीज़ी’ और रिश्तेदार ‘नंदो’ कहते थे। उस वक्त नंद छह बरस के थे जब पेट में एक और बच्चा के होते सेहत बिगड़ने के कारण उनकी मां चल बसी थीं। बख़्शी परिवार चिट्टियाँ-हट्टियाँ, मोहल्ला कुतुबुद्दीन, रावलपिंडी में एक तीन मंजिला घर में रहता था। इस घर को ‘दरोगा जी का घर’ या ‘दरोगा जी की कोठी’ के नाम से जाना जाता था। नंद का नाम रावलपिंडी के उर्दू मीडियम स्कूल और उसके बाद कैंब्रिज कॉलेज में लिखा दिया गया। कैंब्रिज कॉलेज में, जहां वे उर्दू मीडियम से पढ़ाई कर रहे थे उनका नाम आनंद प्रकाश था। हिंदी उन्होंने कभी नियमित रूप से ना लिखी और ना पढ़ी। 14 साल की उम्र में आनंद बख्शी कराची में ‘रॉयल इंडियन नेवी’ में शामिल हो गए थे। वे 1944 में रॉयल इंडियन नेवी में कराची बंदरगाह पर बॉय के रूप में भर्ती हुए और 5 अप्रैल, 1946 तक वहां रहे। लेकिन आनंद को किन्हीं कारणों से नेवी से निकाल दिया गया। इसके बाद वह आर्मी में शामिल हुए। वह 2 अक्तूबर, 1947 का दिन था, जब भारतीय उपमहाद्वीप के बंटवारे की त्रासदी का शिकार यह परिवार रातों-रात ‘रिफ्यूजी’ की तरह भारत पहुंचा। बख्शी परिवार एक डकोटा विमान से रावलपिंडी से सुरक्षित दिल्ली आ गया था, क्योंकि आनंद के बाऊजी पुलिस के सुप्रिंटेन्डेन्ट के साथ पंजाब की जेलों, लाहौर और रावलपिंडी के इंचार्ज थे। उनके खानदान में सारे लोग पुलिस में थे या फौज में या जमीदार थे।

कविताओं से शुरू हुआ गीतकार बनने का सफर

नंद की उम्र सत्रह बरस की थी जब 12 अप्रैल साल 1950 को वह मुंबई आ गए थे और इसी साल उन्होंने गायक और लिरिसिस्ट के तौर पर गाना और लिखना शुरू कर दिया। भारत पहुंचने के बाद वह भारतीय फौज में बतौर ‘आनंद प्रकाश’ शामिल हो गए। जब 1947 से 1950 के बीच फौज में नौकरी करते हुए आनंद प्रकाश ने पहली बार कविताएं लिखना शुरू किया, तो उन्होंने कविताओं के नीचे दस्तख़त किए, ‘आनंद प्रकाश बख़्शी’। आनंद प्रकाश फिल्मों में बतौर गायक अपनी पहचान बनाने की हसरत रखते थे पर दुनियां ने उनके लिखे गीतों की इस कदर पसंद किया कि वो एक मशहूर गीतकार बन गए हालांकि उन्होंने अपने लिखे कई गीतों को अपनी आवाज भी दी है। जगत मुसाफिर खाना ,लगा है आनाजाना और बागों में बहार आई गीत इन्हीं की आवाज में फिल्माया गया है।


मुंबई में अपना अपने नाम का सिक्का जमाने की ली दृढ़ प्रतिज्ञा

27 अगस्त, 1956 को आनंद प्रकाश बख़्शी ने अपनी मर्जी से फौज छोड़ दी। अब उनकी आंखों में बस फिल्मी दुनियां में अपने नाम की पहचान कायम करने की एक जिद सी सवार हो चुकी थी। गीतकार बनने की इस जिस के साथ भूतपूर्व फौजी के रूप में उनके पास कैप्टन वर्मा की सिफारिश की चिट्ठी, करीब साठ कविताओं का संग्रह और उनके उनके गुरु बिस्मिल सईदी के साथ के तौर पर एक मजबूत हौसला भी था। बख़्शी साहब का इरादा पक्का था। उन्होंने तय कर लिया था या मैं एक कलाकार बन जाऊंगा या फिर मैं टैक्सी चलाऊंगा, पर मैं खाली हाथ यहां से वापस घर नहीं लौटूंगा। उस वक्त तक उनकी उनकी शादी कमला से हो चुकी थी। कमलेश शादी के बाद करीब चार साल तक अपने ससुराल दिल्ली में रहने के बाद सन 1958 में पहली बेटी के जन्म के बाद वो अपने मायके लखनऊ आ गई थीं।

मुंबई नगरी में इस तरह बनाया अपना ठिकाना

आनंद बक्शी मुंबई में काम की तलाश में आ तो गए लेकिन यहां रहने के लिए उनके पास कोई मुकम्मल जगह नहीं थी। इसलिए सबसे पहले वे दादर रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम को ठिकाना बनाया। कुछ ही दिन बाद उन्होंने दादर गेस्ट हाउस, तुलसी पाइप रोड में एक कमरा किराए पर ले लिया। इसके बाद वह खार पश्चिम के ‘होटेल एवरग्रीन’ में रहने लगे। इन दिनों वे सारा दिन बस गाने ही लिखते रहते थे। उनके इस आशियाने में आस पास कई उस वक्त के नामचीन संगीत कलाकारों के भी घर थे। जिसमें से सचिन देव बर्मन खार में रहते थे, रोशन सांताक्रूज़ में रहते थे। जबकि बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और उनकी पत्नी उसी होटल एवरग्रीन में ही रहते थे। काम की तलाश में भटक रहे आनंद बक्शी अपनी कविताएं और गाने गाकर अपने आसपास के लोगों को अपनी कला से कायल कर दिया करते थे।

केवल आठ मिनट में ही लिख देते थे सुपर हिट गानें

शब्दों के जादूगर आनंद बख्शी को मां सरस्वती से विशेष आशीर्वाद मिला था यही वजह थी कि केवल मात्र आठ मिनट में सुपर हिट हुए गानों को लिख दिया करते थे। आनंद कभी लिरिसिस्ट बनना ही नहीं चाहते थे। दरअसल, वह गायक बनने का सपना लिए अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे। हालांकि, उनकी मंजिल कहीं और ही थी। उन्होंने गाने लिखने शुरू किए और अपने शब्दों का जादू चलाकर करोड़ों लोगों का दिल जीता।


भगवान दादा को दिया अपनी सफलता का श्रेय

गीतकार एवं गायक आनंद बख़्शी अपनी सफलता का पूरा श्रेय भगवान दादा को देते हैं। उनका इस बारे में कहना था कि- “जब मैंने पहली बार परदे पर अपना नाम देखा तो खुशी के मारे मेरी आँखें भर आईं थीं। आज अगर मैं एक कामयाब गीतकार माना जाता हूं तो वो भगवान दादा की वजह से है।” उन्हें अपना पहला ब्रेक भगवान दादा द्वारा अभिनीत बृजमोहन की फ़िल्म भला आदमी (1958) में गीत लिखने से मिला। उन्हें चार गानों के लिए 150 रुपये का भुगतान किया गया था। उन्होंने इस फ़िल्म में संगीत निर्देशक निसार बज़्मी के लिए चार गाने लिखे । इस फ़िल्म में उनका पहला गाना “धरती के लाल न कर इतना मलाल“ था जिसे 9 नवंबर, 1956 को ( ऑल इंडिया रेडियो इंटरव्यू में उनकी अपनी आवाज़ में) रिकॉर्ड किया गया था ।

इस तरह नाम हुआ बख्शी से बक्सी

इस फिल्म के पोस्टर में उनका नाम गलती से बख्शी की जगह बक्शी लिख दिया गया था और इस तरह वे फिल्म इंडस्ट्री में हमेशा के लिए आनंद बख़्शी की जगह आनंद बक्शी हो गए।


बचपन में शरारती हुआ करते थे आनंद

आनंद बक्शी ने 1962 से लेकर 2002 तक करीब 600 से ज्यादा फिल्मों के लिए तकरीबन 3300 से ज्यादा गाने लिखे हैं। उनके गानों के बोल में जो जादू है वो आज भी लोगों के दिमाग पर चढ़ा हुआ है। आनंद बख्शी के गानें में भले ही खूब सादगी हो लेकिन वो असल जिंदगी में बहुत ही शरारती हुआ करते थे। एक दिन उन पर उनकी शरारत काफी भारी पड़ गई थी।

बचपन में ही था मुंबई आने का प्लान

आनंद बक्शी का बचपन में ही मुंबई आने का प्लान था। 1943 की आनंद बक्शी अपने रावलपिंडी के दोस्त जो अब पाकिस्तान में है उनके साथ मिलकर खूब शरारत करते थे। उन्हें बचपन से ही गाने बजाने का भी काफी शौक था। एक दिन वो अपने दोस्तों के साथ मिलकर अपनी स्कूल की किताबें बेच कर मुंबई की ट्रेन पकड़ने वाले थे, लेकिन दोस्त नहीं आए। जब परिवार को ये बात पता चली तो आनंद बक्शी की पिटाई हुई और उन्हें जम्मू के बोर्डिंग स्कूल भेज दिया गया।

टीचर ने की थी आनंद बक्शी की पिटाई

आनंद बक्शी के मुक्केबाजी के प्रशिक्षण के दौरान मुक्केबाजी सिखाने वाले टीचर तब तक एक बच्चे को मारते थे जब तक वो बेहोश नहीं हो जाता था। लेकिन आनंद बख्शी का इसमें नंबर ही नहीं आया। आनंद ने एक इंटरव्यू में बताया था कि मैं रोज किसी न किसी तरह टीचर से बच जाता था और एक गिलास दूध पी लेता था। लेकिन एक दिन मैं पकड़ लिया गया और फिर मुझे इतना मारा गया कि मैं बेहोश हो गया था।


आनंद बक्शी ने नुसरत फतेह अली खान के पैर पकड़कर मांगी माफी

1990 के दशक में एक छोटा सा दौर था जब भारत और पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया गया था। भारतीय गायक पड़ोसी देश का दौरा करते थे और भारत को कई मौकों पर कव्वाली गायक नुसरत फ़तेह अली खान की मेज़बानी करने का मौका मिला। नुसरत साहब, जैसा कि वे लोकप्रिय रूप से जाने जाते थे, एक अंतरराष्ट्रीय आइकन थे और भारत में भी उनके संगीत को लोगों ने पसंद किया। उन दिनों, उन्होंने ‘और प्यार हो गया’ और ‘कच्चे धागे’ जैसी कुछ हिंदी फ़िल्मों के लिए भी संगीत दिया था। नुसरत साहब पाकिस्तान से भारत एक म्यूजिक कंसर्ट में शामिल होने आए। उस समय “उनका वजन बहुत ज़्यादा था। इसलिए उनके लिए चलना मुश्किल था। उन्हें चलने के लिए कुछ लोगों की मदद की ज़रूरत पड़ती थी थी। इसीलिए उनकी कार भी आम कारों से अलग थी। मुंबई के एक मशहूर होटल में आनंद बख्शी और खान के लिए एक संगीत सत्र निर्धारित किया गया था, लेकिन बख्शी नहीं आए। उन्होंने कहा, “बख्शी साहब नहीं आए इसलिए सत्र रद्द कर दिया गया। अगले दिन, वे फिर नहीं आए। यह लगातार 4-5 दिनों तक हुआ और बख्शी साहब फिर भी नहीं आए।“

नुसरत साहब को समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है इसलिए उन्होंने बख्शी के घर जाने का फैसला किया। “बख्शी साहब बांद्रा में पहली मंजिल पर रहते थे और उनकी बिल्डिंग में लिफ्ट नहीं थी। नुसरत साहब ने कहा कि अगर बख्शी नहीं आ रहे हैं तो मुझे उनके पास ले चलो। बख्शी साहब अपनी खिड़की से देख रहे थे जब नुसरत साहब की कार आकर रुकी। उन्होंने देखा कि चार लोग उन्हें कार से बाहर निकालने में मदद कर रहे हैं और बड़ी मुश्किल से सीढ़ियां चढ़ रहे हैं। बख्शी साहब फूट-फूट कर रोने लगे। उन्होंने नुसरत साहब के पैर पकड़ लिए और कहा ’मुझे नहीं पता कि मैं इस अहंकार में क्यों जी रहा था कि यह आदमी दूसरे देश से आया है । लेकिन वह उम्मीद करता है कि मैं उसके पास जाऊं ताकि हम साथ काम कर सकें। लेकिन आप मुझे माफ कर दें, मैं आपके घर आऊंगा और हम काम करेंगे’।

आरडी बर्मन और आनंद बक्शी की जोड़ी ने दिए कई हिट गानें

आनंद ने इंटस्ट्री के मशहूर और बड़े-बड़े म्यूजिक कम्पोजर्स के साथ काम किया। हालांकि, उनकी जोड़ी आरडी बर्मन के साथ खूब जमीं। उन दोनों ने मिलकर कई शानदार गाने इस बॉलीवुड को दिए। फिल्म ’एक दूजे के लिए’ के गाने ’तेरे मेरे बीच में’, ’ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’, ’ओम शांति ओम’, ’आदमी मुसाफिर है’, ’महबूबा महबूबा’, ’हम तुम एक कमरे में बंद हों’, ’कोरा कागज था’, ’सावन का महीना’ जैसे अनगिनत गीतों को इस जोड़ी ने मिलकर सजाया।


आठवीं कक्षा तक ही की थी पढ़ाई

बक्शी जी का कहना था कि- मैंने सिर्फ़ आठवीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है। इसलिए मुझे हिंदी के बहुत ज़्यादा शब्द पता नहीं थे। ज़ाहिर है कि जो शब्द मेरी बोलचाल के थे उन्हीं के ज़रिये मुझे अपनी बात कहनी पड़ती थी। साथ ही हिंदी को लेकर मेरी जो सीमित जानकारी थी, वहीं उर्दू पर अच्छी पकड़ थी। उसी का मुझे एक गीतकार के रूप में बड़ा फायदा मिला और यही मेरी कामयाबी का आधार बन गया, क्योंकि देश के कोने-कोने के लोगों को मेरे गाने समझ में आए और वो उन्हें गुनगुना सके।

इस तरह मिलती गई मंजिल

1956 में अपने पहले 4 गानों की रिकॉर्डिंग के बाद सन 1959 तक उन्हें काम के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। यह उनकी जिंदगी का सबसे मुश्किल दौर कहा जा सकता है। उन्होंने रेडियो पर अपना पहला गाना सन 1959 में बाजार में सुना था यह गाना था “जमीन के तारे” फिल्म का “चुन्नू पतंग को कहता है राइट, रॉन्ग है या राइट”। उनका पहला लोकप्रिय गीत था “बड़ी बुलंद मेरी भाभी की पसंद, पर कम नहीं कुछ भैया भी, क्या जोड़ी है” (सीआईडी फिल्म) इस के संगीतकार रोशन थे और उनके साथ यह पहला गाना था। यह गाना 4 जुलाई, 1958 को रिकॉर्ड किया गया था और इसे मोहम्मद रफी ने गाया था। “मेरे महबूब कयामत होगी आज रुसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी” यह संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए लिखा बक्शी जी का पहला गाना था और 29 जुलाई, 1963 को रिकॉर्ड हुआ था। किशोर कुमार ने इसे अपने सबसे पसंदीदा गानों में शामिल किया था। पूरे देश में हिट हुई उनकी पहली फ़िल्म थी “जब जब फूल खिले” जो 1965 में आई थी। इसके बाद बॉक्स-ऑफ़िस पर आनंद बक्शी की सुपर हिट फिल्में छाती चली गईं। कुछ फिल्मों के नाम हैं- फ़र्ज़ (1967), राजा और रंक (1968), तक़दीर (1968), जीने की राह (1969), आराधना (1969)- वो फिल्म जिससे राजेश खन्ना के स्टारडम का रास्ता तैयार हुआ, उसके बाद- दो रास्ते (1969), आन मिलो सजना (1970), अमर प्रेम (1971)- एक के बाद एक हिट फिल्में आती चली गईं। इसके बाद गीतकार आनंद बक्शी फिल्मी दुनियां में बतौर गीतकार एक बड़ा नाम बना चुके थे।

इन्होंने रोशन, एस. डी. बातिश, एस. मोहिंदर और नौशाद. और आनेवाले पैंतालीस सालों में तकरीबन 95 संगीतकारों के साथ काम किया। उन्होंने कुल 303 फिल्मे लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ कीं। 99 फिल्में राहुल देव बर्मन के साथ और 34 फिल्में कल्याणजी-आनंदजी के साथ और चौदह फिल्में सचिन देव बर्मन के साथ मिलकर फिल्मों में जमकर अपनी पारी खेली।

मिले कई बड़े सम्मान

आनंद बख्शी को रिकॉर्ड ब्रेकिंग फिल्मफेयर अवॉर्ड्स के 40 नॉमिनेशंस मिले वहीं चार बार इस अवॉर्ड से नवाजा गया। इसके अतिरिक्त 2000 में जी सीने अवार्ड, आईआईंएफए अवार्ड 2000 में मिले।


अपने आखिरी समय में वह दिल की बीमारी से जूझ रहे थे

दरअसल, उन्हें स्मोकिंग की आदत थी, जो उनकी मौत की वजह भी बनी। आनंद बक्शी ने अपना आखिरी गाना फरवरी, 2002 में लिखा, ये गाना निर्देशक सुभाष घई और संगीतकार अन्नू मलिक के लिए था। ये गाना था- ‘बुल्ले शाह, तेरे इश्क़ नचाया, वाह जी वाह तेरे इश्क़ नचाया.’ उस वक़्त वो बुख़ार में थे, बिस्तर से उठ नहीं सकते थे, उन्हें तीन-तीन कंबल ओढ़ाए गए थे। कमज़ोरी और बुखार की वजह से वो कांप रहे थे। अस्थमा की वजह से उनकी सांस तेज-तेज चल रहीं थी। 30 मार्च, 2002 को आनंद बख्शी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया और अपने पीछे छोड़ गए अनगिनत बेहतरीन गाने, जिनके जरिए वह आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं।

आनंद बक्शी के चुनिंदा मशहूर गीत:-

1.जुम्मा-चुम्मा दे- अमिताभ बच्चन की फिल्म हम का ये गाना आज भी लोगों की जुबां पर चढ़ा है। आनंद बख्शी द्वारा लिखित इस गाने को कविता कृष्णमूर्ति और सुदेश भोसले ने गाया था। इस गाने को काफी पसंद किया गया था।

2.एक हसीना थी- कर्ज फिल्म का ये गाना सुपरहिट साबित हुआ था। किशोर कुमार और आशा भोसले ने इसे अपनी आवाजा दी थी।

3.कल की हसीन मुलाकात लिए- इसे गाने को भी किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने गया था। आनंद बख्शी ने इस गाने के लिरिक्स बहुत उम्दा लिखे थे।

4.हम बने-तुम बनेः कमल हासन का ये गाना काफी पॉपुलर था।आनंद बख्शी ने बहुत खूबसूरत तरीके से इस गाने को लिखा था।

5.हम तुम एक कमरे में बंद हो- बॉबी फिल्म का ये गाना बहुत फेमस हुआ था। इस गाने को लता मंगेशकर और शैलेंद्र सिंह ने गाया था।

6.अच्छा तो हम चलते हैं- ये गाना आओ मिले सजना फिल्म का है। आनंद बख्शी ने इसे लिखा था। गाने को किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने आवाज दी और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल म्यूजिक डायरेक्टर थे।

7.सावन का महीना- रोमांटिक गाने लिखने में आनंद बख्शी साहब को महारथ हासिल थी। ना जाने ऐसे ही और कितने ही रोमांटिक गाने आनंद बख्शी साहब ने लिखे हैं इस खजाने को समेट पाना बहुत मुश्किल है।



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Sonali kesarwani

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Content Writer

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