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लखनऊ : पराधीन भारत में आजादी की अलख जगाने में नवजात सिनेमा का भी बड़ा योगदान रहा है। आज भले ही हमारा बॉलीवुड तकनीक और रिसर्च के मामले में अपने को पड़ोसी देशों से आगे मानता हो। लेकिन सच ये है कि हमारे देश में फिल्मों का कंटेंट मार्केट के हिसाब से चलता है। जबकि पड़ोस के देशों में आज भी समसामयिक विषयों पर फ़िल्में थोक के भाव में बनती हैं और उन्हें पसंद भी किया जाता है।
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पहले हमारी फिल्में आम आदमी के लिए उनके मुद्दों को सामने लाने के लिए बनती थी। देशभक्ति और जनजागरण इनकी स्क्रिप्ट का मजबूत हिस्सा होता था। आज हम आपको बताएंगे कि कौन सी फिल्म और कौन से गाने थे जिन्होंने आज भी हमें झकझोरने में कोई कमी नहीं की है।
आनंदमठ 1952 में रिलीज हुई। साहित्यकार बाबू बंकिमचंद्र चटर्जी के 'आनंदमठ' उपन्यास पर आधारित इस फिल्म का निर्माण फिल्मीस्तान कंपनी ने किया इसमें पृथ्वीराज कपूर, गीता बाली, भारत भूषण, प्रदीप कुमार, अजीत व मुराद ने शानदार अभिनय किया था।
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आनंदमठ फिल्म फ्लॉप हुई थी, लेकिन गीत-संगीत अमर है। आपको बता दें, 'वंदे मातरम्' और 'जय जगदीश हरे' इसी फिल्म के गाने हैं। इस गीत को बंकिमचंद्र ने लिखा था। इसे लता मंगेशकर ने गाया था।
आनंद मठ में बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने वंदे मातरम गीत का उपयोग किया था। बंकिम ने यह गीत 1876 में लिखा था। उपन्यास प्रकाशन का समय 1880-82 माना गया। संस्कृतनिष्ठ शब्दावली से सजी इस रचना की लोकप्रियता का पहला उदाहरण वर्ष 1902 में सामने आया। जब कवि रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने इसका संगीत बनाया और सस्वर पाठ किया। फ्रांस की किसी ‘पाथे’ ग्रामोफोन कंपनी ने रिकॉर्ड प्रसारित किया जिसके बाद यह प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया।
ग्रेस की स्थापना वर्ष 1885 में हो गई थी, इसके अधिवेशनों एवं सम्मेलनों में वंदे मातरम् नियमित रूप से गाया जाने लगा था। कभी इसे रवीन्द्र नाथ ने गाया तो कभी विष्णु दिगम्बर पुलुस्कर ने। पुरानी ‘देवदास’ फिल्म के संगीत निर्देशक ‘तिमिर बरन भट्टाचार्य’ ने इसकी धुन सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज के लिए बनाई थी। इस धुन को ब्रिटिश बैंड ने भी बजाया और आजाद हिन्द फौज की रेडियो सर्विस सिंगापुर से नियमित प्रसारण होता था।
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वर्ष 1940 में एक फिल्म बनी ‘बंधन’, जिसमें कवि प्रदीप का लिखा गीत चल-चल रे नौजवान बहुत लोकप्रिय हुआ। स्वतंत्रता से पहले बनी फिल्मों में मात्र यही गीत ऐसा मिलता है, जिससे ब्रिटिश सरकार हैरान हो गई थी। प्रदीप ने इसे बाम्बे टाकीज के अहाते में एक पेड़ की छांव में बैठकर लिखा और इस आग उगलने वाले ओजस्वी गीत को फिल्म की संगीत निर्देशक जोड़ी सरस्वती देवी एवं रामचंद्र पाल को धुन बनाने के लिए दे दिया। दोनों मिलकर कई दिनों तक सिर खपाते रहे पर कोई नतीजा नहीं निकला। एक दिन फिल्म के नायक अशोक कुमार ने स्टूडियो में हारमोनियम उठाया और पहली पंक्ति स्वरबद्ध हो गई।
इसके बाद अशोक कुमार भी लाचार हो गए। अंत में वह अपनी बहन सती देवी मुखर्जी के पास गए। जिन्होंने उसका पूरा संगीत तैयार किया। कड़ी सेंसरशिप की आंखों में धूल झोंककर यह गीत फिल्म में आ गया और सारे देश में धूम मचाने लगा, देश के युवकों ने इसे अपने मन की आवाज माना। पंजाब और सिंध के युवकों ने तो असेंबली में इसे वंदे मातरम् की जगह राष्ट्रगीत बनाए जाने का प्रस्ताव रखवा दिया। गांधीवादी महादेव भाई देसाई ने इस गीत की तुलना उपनिषद् मंत्रों से की। सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता बलराज साहनी उन दिनों बीबीसी लंदन में कार्यरत थे। उन्होंने इसे वहां से प्रसारित करवाया।
झांसी के श्यामलाल राय, इंदीवर के नाम से फिल्मों में गीत लिखते रहे। वर्ष 1942 में ‘अरे किरायेदार कर दे मकान खाली’ सरकारी विरोध में लिखी कविता मानी गई (इसकी सजा किरायेदार ने मकान मालिक को दी) और उन्हें आगरा जेल में एक साल रखा गया। पैत्रिक संपत्ति राष्ट्र को समर्पित कर बम्बई आये इंदीवर ने शेष जीवन फिल्मी गीतकार के रूप में बिताया। निरंतर योगदान के लिए कवि प्रदीप अपने अन्य साथियों की तुलना में विशिष्ट और अलग दिखते हैं। ‘चल चल रे नौजवान’ (बंधन) गीत धूम तो मचाया लेकिन प्रदीप को फिल्मों में स्थायित्व दिया किस्मत के गीत ने (दूर हटो ऐ दुनिया वालो हिन्दुस्तान हमारा है)। प्रतिष्ठा में थोड़ी बहुत कसर जो बाकी थी, उसे ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ ने पूरी कर दी।
क्रांति
इस फिल्म को दिलीप कुमार, शशि कपूर, हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा, परवीन बॉबी, सारिका, प्रेम चोपड़ा और मदन पुरी ने अपने अभिनय से सजाया था।
शहीद- 1965
भगत सिंह के जीवन पर 1965 में बनी शहीद की कहानी बटुकेश्वर दत्त ने लिखी थी। इस फिल्म में अमर शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' के गीत थे। मनोज कुमार ने इस फिल्म में शहीद भगत सिंह का जीवन्त अभिनय किया था।
उपकार- 1967
उपकार को बनाने का उद्देश्य था ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा बुलंद करना। फिल्म की कहानी राधा (कामिनी कौशल) और उसके दो पुत्रों भारत (मनोज कुमार) व पूरन (प्रेम चोपड़ा) की है।
पूरब पश्चिम 1970
'पूरब और पश्चिम' का निर्देशन मनोज कुमार ने ही किया है। मनोज फिल्म के निर्माता-लेखक भी हैं। फिल्म दुनिया में भारत की उपलब्धियों का बखान करती है।
कर्मा 1986
कर्मा में दिलीप कुमार के साथ नूतन, अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ और अनुपम खेर मुख्य भूमिका में थे। फिल्म की कहानी में दिखाया गया था कि किस तरह से देश में आतंक का साया बढ़ता जा रहा है। दिलीप कुमार कुछ कैदियों के साथ मिलकर आतंक का खात्मा करते हैं।
हकीकत
इस फिल्म का लेखन-निर्देशन चेतन आनंद ने किया था। 1962 के भारत-चीन युद्ध को लेकर बनी थी फिल्म। ये हिंदी में देश की पहली वॉर फिल्म भी है।
इस मौके पर हमने एक वीडियो भी बनाया है उसे भी देखें।
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