×

भातखंडे की खोज है BOLLYWOOD की पहली महिला म्यूजिक डायरेक्टर

सरस्वती की इन कलाकारों के साथ की मेहनत रंग लाई। जब अछूत कन्या का गीत ' मैं वन की चिडि़या बन के संग-संग डोलूं रे' सुपर हिट हुआ। इसी साल उनकी दो और फिल्में रिलीज हुई "जन्मभूमि" और "जीवन नैय्या" , लेकिन "अछूत कन्या" एक और कारण से ऐतिहासिक फिल्म बनी...

Newstrack
Published on: 15 Feb 2016 10:00 AM GMT
भातखंडे की खोज है BOLLYWOOD की पहली महिला म्यूजिक डायरेक्टर
X

प्रभु झिंगरन प्रभु झिंगरन

मुंबई: "मैं वन की चिडि़या बन के संग-संग डोलूं रे" गाने को हममें से ज्यादातर लोगों ने सुना हो ।क्या आप जानते है इस गाने को कंपोज करने वाला कौन है? शायद हम में से कम लोग उस महान शख्सियत से परिचित हो। इस गाने को बनाने वाली शख्सियत का नाम सरस्वती देवी है। जैसा नाम वैसा काम , संगीत ही जिसके जीवन की साधना रही। इनका जन्म पारंपरिक पारसी परिवार में 1912 में हुआ था। पहले इनका नाम था खुर्शीद मानेकशा। इनके पिता पारसी समुदाय के प्रतिष्ठित व्यवसायी थे। बेटी के संगीत के प्रति गहरे प्रेम को देखते हुए उन्हें संगीत तालीम दिलवाई। उन्होंने आचार्य पं. विष्णु नारायण भातखंडे़ के इंस्टीट्यूट में गायन का प्रशिक्षण दिलवाया। जो अब भातखंडे डीम्ड म्यूजिक यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है।

12345

खुर्शीद बनी सरस्वती

1920 में मुंबई ऑल इंडि़या रेडि़यो की स्थापना हुई तब खुर्शीद और उनकी बहन मानेक होमजी ने वहां गाना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे इन बहनों का रेडियो पर एक अच्छा श्रोता वर्ग बन गया। खुर्शीद के शास्त्रीय गायन की चर्चा बाॅम्बे टाॅकीज के तक पहुंची । इसके संस्थापक निर्माता - निर्देशक हिमांशु राय ने दोनों बहनों को काम का मौका दिया । खुर्शीद को बाॅम्बे टाॅकीज की फिल्मों के लिए संगीत निर्देशन, और छोटी बहन मानेक को अभिनय के लिए आमंत्रण मिला। ये वो दौर था जहां अच्छे घरों की लड़कियों का फिल्मों में काम नहीं करती थी। दूसरी तरफ मुंबई में पारसी समाज बहुत ही पारंपरिक और सम्मानित वर्ग माना जाता था। इधर बाॅम्बे टाॅकीज के बोर्ड डायरेक्टरों में से कुछ पारसी भी थे। दोनों बहनों का फिल्मों से जुड़ना अच्छा नहीं लगा तो बगावत कर दी । इस मुद्दे पर लंबी बहस के बाद हिमांशु राय की जीत हुई, लेकिन इस शर्त पर इन्हें पारसी पहचान छुपानी होगी। उसके बाद मानेक का नया नाम चंद्रप्रभा, और खुर्शीद मानेकशा का नाम पड़ा सरस्वती देवी। जो आगे चलकर फिल्मी दुनिया की पहली महिला संगीत निर्देशिका भी बनी।

12346789

कैसा रहा सफर?

बतौर संगीत निर्देशिका सरस्वती देवी की पहली फिल्म 1935 में बनी "जवानी की हवा"। इसमें देविका रानी और नजमुल हुसैन मुख्य कलाकार थे। दूसरी सुपर हिट फिल्म "अछूत कन्या" थी। दोनों ही फिल्मों में सरस्वती ने कलाकारों को गाने की ट्रेनिंग दी। उस वक्त देविका रानी,अशोक कुमार और नजमल हुसैन को गाने नहीं आता था। सरस्वती की इन कलाकारों के साथ की मेहनत रंग लाई जब अछूत कन्या का गीत ' मैं वन की चिडि़या बन के संग-संग डोलूं रे' सुपर हिट हुआ, उस समय के एल सहगल, पंकज मलिक जैसे स्थापित गायक थे। इसी साल उनकी दो और फिल्में रिलीज हुई "जन्मभूमि" और "जीवन नैय्या" , लेकिन "अछूत कन्या" एक और कारण से ऐतिहासिक फिल्म बनी। इस फिल्म में पहली बार प्लेबैक गायन का सफल प्रयोग सरस्वती ने मुंबई में किया । हुआ यों कि सरस्वती की बहन चंद्रप्रभा को फिल्म का एक गाना "कित गये हो खेवनहार" गाना था, लेकिन गला खराब होने की वजह से वे नही गा पाई तो सरस्वती पर्दे के पीछे से गाना गाया। ये प्रयोग सफल रहा, और सरस्वती को प्लेबैक तकनीक लागू करने का श्रेय मिला। सरस्वती ने 1941 तक मुंबई टाॅकीज के लिए 20 फिल्में कीं। इसके बाद उनके नाम को फिल्मों की सफलता के लिए गारंटी माना जाने लगा। इनकी फिल्मों के कई गीत जैसे कोई हमदम न रहा और एक चतुर नार..... को वर्षों बाद फिल्मों में दोहराया गया।

सरस्वती देवी सरस्वती देवी

शोहरत के साथ अकेलापन भी

प्रसिद्ध गीतकार प्रदीप को पहला ब्रेक फिल्म बंधन में सरस्वती ने ही दिया। इसी फिल्म का एक गीत 'चल चल रे नौजवान' लोकप्रिय हुआ। झूला, पुर्नमिलन और नया संसार के गानों से सरस्वती की बड़ी पहचान मिली। बाॅम्बे टाॅकीज से अलग होने के बाद सरस्वती ने शोहराब मोदी के लिए अर्से तक काम किया। सरस्वती को सबसे ज्यादा शोहरत एचएमवी के लिए हबीब वली मोहम्मद की गायी दो गजलों से मिली।

इतने शोहरत और सम्मान के बाद भी सुरों की लहरी सजाने वाली सरस्वती को आखिरी वक्त दुश्वारियों में काटना पड़ा। संगीत के प्रति अटूट प्रेम ने उन्हें आजीवन अविवाहित रखा। एक हादसे में वे बस से गिर कर बुरी तरह घायल हो गई, और उनकी कूल्हे की हड्डी टूट गई। इसके बाद वे चलने-फिरने तक के लिए मोहताज हो गई। उनकी मौत पर भी फिल्म इंडस्ट्री एक भी लोग झांकने तक नहीं आए। ना यहां कोई शोक सभा हुई न अखबारों में खबर छपी। जिस इंडस्ट्री में संगीत की शमां बांधी, जब तक उनमें जोश था लोगों ने घेरा, और आखिरी वक्त में सबने मुंह मोड़ लिया। आखिरी वक्त में शायद खुर्शीद होमजी उर्फ सरस्वती देवी के जेहन में अपनी ही धुन " कोई हमदम न रहा, कोई सहारा न रहा" आई हो!

लेखक वरिष्ठ मीडिया समीक्षक है ।

Newstrack

Newstrack

Next Story