इरफान बोले- इंडियाज़ फाइनेस्ट फिल्म्स में बसे हैं भारतीय सिनेमा के दिल और रूह

इन लोगों के बिना पैरेलल सिनेमा आज इतना विकसित कभी नहीं हुआ होता। इन फिल्मों को इनके हिस्से का श्रेय नही मिला। और अब चूंकि ये फिल्में टेलीविज़न पर आ रही हैं तो दर्शक अब भारतीय सिनेमा के दिल और रूह को महसूस कर सकेंगे।

zafar
Published on: 9 Sep 2016 2:12 PM GMT
इरफान बोले- इंडियाज़ फाइनेस्ट फिल्म्स में बसे हैं भारतीय सिनेमा के दिल और रूह
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लखनऊ: अभिनेता इरफ़ान खान की अदाकारी हमेशा ही दर्शकों के दिलो दिमाग पर गहरी छाप छोड़ती है। इरफ़ान अपने किरदार को इतनी बारीकी से निभाते हैं कि उनका किरदार पर्दे को ज़िंदा कर देता है। इरफ़ान खान को आधुनिक भारतीय फिल्मों की रीढ़ कहा जाए, तो गलत नही होगा। ज़ी क्लासिक पर चल रहे 'इंडियाज़ फाइनेस्ट फिल्म' में उनकी फिल्म 'किस्सा' पहली बार दिखाई जाएगी। इंडियाज़ फाइनेस्ट के तहत 'क़िस्सा' का प्रसारण शनिवार 10 सितंबर को रात 10 बजे होगा। शर्मीले कहे जाने वाले और संजीदा नज़र वाले इरफ़ान से newstrack ने उनके अब तक के करिअर के बारे में बात की।

आगे पढ़िए इरफान खान का इंटरव्यू और देखिए कुछ और फोटो...

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सवाल- आप एक्टिंग में कैसे आए?

जवाब- मेरे परिवार से एक्टिंग में कोई नहीं था। लोग मुझे शर्मीला कहते थे। और मैं लोगों की यही सोच बदलना चाहता था। मैंने कुछ वक़्त तक बिज़नेस में भी हाथ आज़माए। लेकिन फिर मुझे महसूस हुआ की मैं तो कुछ और करना चाहता हूं। मैंने कुछ फिल्में देखीं जिनमें कुछ अभिनेताओं ने बेहतरीन काम किया था। इसे पैरेलल सिनेमा कहा जाता है। मैं उस वक़्त 15 साल का था और यह देख कर हैरान रह गया कि वे अपने दायरे से निकल कर कुछ अलग महसूस कर रहे थे। मैं भी यही करना चाहता था। यही मेरी शुरुआत थी। मैंने ऐसे स्कूल की तलाश की, जहां सभी एक्टर्स निकल रहे थे। मैं जानता था कि मेरे पेरेंट्स इसकी इजाज़त नहीं देंगे। उन्हें खुश करने के लिए मैंने कहा कि मैं ड्रामा टीचर बनने जा रहा हूं। यहां तक कि मैंने स्कूल में दाखिला लेने के लिए झूठ भी बोला।

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सवाल- क्या आपके किरदार में आपकी छाप होती है?

जवाब- मैं अपने किरदार को अपने तरीके से निभाना चाहता हूं और इसमें अपनी मौजूदगी का अनुभव जोड़ता हूं। यही एक तरीका है जिससे मैं किरदार को अपना बना सकता हूं। अगर मेरे पास कहने के लिए कोई कहानी है, जिसे मैं डायरेक्टर की कहानी में दखल दिए बिना जोड़ सकता हूं, तो मैं डायरेक्टर के नज़रिये को प्रभावित किये बिना रोल में अपने रंग घोल देता हूं।

सवाल- भारतीय टेलीविज़न पर पहली बार प्रसारित हो रही फिल्म 'किस्सा' में आपका रोल कैसा है?

जवाब- इस फिल्म में मेरा किरदार ज़िंदगी की निरंतरता के बारे में काफी सोचता है। कि क्या हो अगर मैं मर जाऊं? इसके बाद क्या होगा? कुछ लोग इसके बारे में धार्मिक तरीके से सोचते हैं।(पुनर्जन्म, मोक्ष) और कुछ इसे लड़के के जन्म से जोड़ते हैं। यह फिल्म इन्हीं बातों पर आधारित है। बिलकुल अलग तरीके से कहानी कहती हुई यह फिल्म वैश्विक अपील है।

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सवाल- ज़ी क्लासिक पर शुरू हुए 'इंडियाज़ फाइनेस्ट फिल्म्स' के बारे में आपका क्या कहना है?

जवाब- मुझे याद है वह समय, जब ऐसी फिल्मों का निर्माण सिर्फ एनएफडीसी और नसरुद्दीन शाह ही करते थे। इन फिल्मों के बिना आप यह बता नही सकते कि 1960, 1970 और 1980 में क्या हुआ। इन लोगों के बिना पैरेलल सिनेमा आज इतना विकसित कभी नहीं हुआ होता। इन फिल्मों को इनके हिस्से का श्रेय नही मिला। और अब चूंकि ये फिल्में टेलीविज़न पर आ रही हैं तो दर्शक अब भारतीय सिनेमा के दिल और रूह को महसूस कर सकेंगे।

(फोटो साभार: फिल्मफेयर.कॉम, यूट्यूब.कॉम,वैरायटी.कॉम)

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