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इरफान खान का जयपुर की गलियों से मुंबई तक ऐसा रहा सफर, ऐसे बनाई खास पहचान
बहुमुखी प्रतिभा के धनी इरफान खान किसी परिचय के मोहताज नहीं रहे है उनकी असमय हुई मौत ने उनके बारे में लिखने को मजबूर कर दिया है। आज इरफान इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं, लेकिन थियेटर, टेलीविजन और सिनेमा बॉलीवुड से हॉलीवुड तक का यह चमकता सितारा यूं ही नहीं खास है
जयपुर : रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई।
वैसे तो ये चंद लाइनें अपने समय के बेजोड़ मशहूर एक्टर, निर्देशक गुरूदत्त के लिए कैफी आज़मी ने लिखी थी। लेकिन आज महज़ ५२ साल की छोटी सी उम्र में हमें अलविदा करके चले गये इस समय के बेजोड़ और बड़े कलाकार इरफ़ान खान पर भी एकदम सटीक बैठती हैं। लंबे समय से कैंसर जैसी असाध्य बिमारी से जद्दोजहद करते आ रहे इरफ़ान ने बुधवार को अंतिम साँस ली। मुम्बई के यारी रोड, वर्सोवा के कब्रिस्तान में उन्हें सुपुर्दे खाक कर दिया गया। यह इरफ़ान की लोकप्रियता का ही पैमाना है कि जब देश भर के मीडिया में बीते एक महीने से कोरोना की खबर न केवल सुर्ख़ियाँ बटोर रही है बल्कि ऑन लाइन मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व अख़बारों की हेड लाइन भी बनी है तब इरफान के न होने की खबर ने लीड की जगह पा ली।
बचपन की बात और फिर शुरू हुआ एक्टिंग का सफर
थियेटर, टेलीविजन और सिनेमा बॉलीवुड से हॉलीवुड तक में इरफ़ान अपनी जगह बनाने में यूँ ही नहीं कामयाब हुए।आज जिस मुकाम पर इरफान खान थे, उसे पाना आसान नहीं है। क्योंकि वह जयपुर से तक़रीबन सौ किमी दूर टोंक के एक कारोबारी पठान परिवार से आते हैं। शुरूआती पढ़ाई जयपुर में हुई। पर जिसके मन में कभी आर्ट फ़िल्मों के बेताज बादशाह रहे नसीरुद्दीन शाह बनने का ख़्वाब पल रहा हो उसे पढ़ाई लिखाई कहाँ रास आने वाली थी।
नतीजतन, इरफ़ान ने सारा ध्यान पढ़ाई की जगह अभिनय पर लगा दिया।अभिनय के प्रति उनके इसी लगाव का नतीजा रहा कि वह एक बार मीरा नायर जैसी डायरेक्टर की पहली पसंद बने। इस समय के नामचीन डायरेक्टर तिग्मांशु धूलिया को यह कहना पड़ा, “आज तक इरफान जैसा अदाकार नहीं देखा जो कि आंखों के माध्यम से अभिनय कर देता था।”
संघर्ष का आलम ऐसा था
इरफान का संघर्ष काफी बड़ा रहा। जीवन में उतार को बेहद करीब से देखने वाले इरफान ने अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए एक बार बताया भी था कि किसी धारावाहिक में काम के लिए एक सीन में एक बड़े कलाकार द्वारा किस तरह उनकी बेइज्जती की गयी थी । उनके हिस्से के पैसे भी काट लिये गये थे। संघर्ष का आलम ऐसा था कि कई ऐसी फिल्मों में बेहद उम्दा प्रदर्शन करने के बावजूद वह लोगों की नजर में कम ही आ पाये।’एक डॉक्टर की मौत’,जिसमें वह पहली बार पंकज कपूर के साथ पर्दे पर दिखे, में एक पत्रकार की भूमिका में थे।तपन सिन्हा की इस फिल्म में उनकी छोटी लेकिन सशक्त भूमिका रही।
फ़िल्मों के साथ साथ अपनी जीविका व कैरियर का ख़्याल रंखते हुए छोटे पर्दे के लिए भी उन्होंने कम काम नहीं किया।टेलीविजन में चंद्रकांता धारावाहिक से पहले उन्होंने श्रीकांत, भारत एक खोज, कहकंशा, चाणक्य, द ग्रेट मराठा, बनेगी अपनी बात, जस्ट मोहब्बत, जय हनुमान आदि कई धारावाहिक में काम किया। यही नहीं, क्या कहें, मानो या न मानो जैसे कई कार्यक्रमों को होस्ट भी किया।
उनके साथी और रिश्तेदार बताते हैं कि बचपन से वह काफी शर्मीले थे। लेकिन बगावती फितरत उनके अंदर हमेशा रही। जयपुर से इरफ़ान एक्टिंग की बारीकियां सीखने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी)गये। जहां उन्होंने एक्टिंग को निखारा।हालाँकि नाटक का भूत उनके ऊपर तभी सवार हो गया था जब उन्होंने अपने मामा के साथ जोधपुर में एक थियेटर देखा ।दिल्ली से वह मुंबई चले गए।
एक साक्षात्कार में इरफान ने बताया था, “वह एक दिन जयपुर के रवींद्र मंच के ऑफिस में पहुंच गये। वहां मौजूद लोगों से कहा कि वह नाटक करना चाहते हैं।” जवाब में उन्होंने कहा,”यह तो ऑफिस है। यहां नाटक नहीं होते। आप नाटक मंडली से मिलिए।”फिर उन्होंने नाटक मंडली से संपर्क किया। यहीं से उनके अभिनय का सफर शुरू उनका पहला नाटक 'जलते बदन' था। जयपुर में उनके थियेटर के दिनों के साथी जफर बताते थे कि रंगमंच के दिनों में उनकी अदाकारी लोगों को बेहद पसंद आती थी।
मीरा नायर की पहली पसंद फिर भी कट गया रोल
एनएसडी से पास होने के बाद एक मिनट से भी कम समय के लिए वह मीरा नायर की फिल्म सलाम बॉम्बे में स्क्रीन पर दिखे,।बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि पहले लीड रोल के लिए इरफान मीरा नायर की पहली पसंद थे। लेकिन इसे किस्मत का खेल कहें कि उस किरदार की उम्र कम होने के चलते, इरफान के हिस्से से वह रोल कट गया था।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी फिल्म द वॉरियर को कामयाबी की पहली सीढ़ी माना जा सकता है। ब्रिटिश निर्देशक आसिफ कपाड़िया के निर्देशन में बनी इस फिल्म को देश-विदेश में सराहा गया था। उसी दौर में उभरते हुए कई निर्देशकों के साथ इरफान जुड़ते चले गये।
बाईपास शार्ट फिल्म का निर्देशन करने वाले अमित कुमारआसिफ कपाड़िया के मित्र भी हैं और उनके साथ द वारियर फिल्म में भी सहायक थे। बाईपास में भ्रष्ट पुलिस अधिकारी की कहानी लोगों को काफी पसंद आयी थी। बाईपास फिल्म भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराही गयी है।
एफटीआईआई में नहीं दिखाई अपनी फिल्म
2001 के बाद इरफान की प्रमुख फिल्मों में हासिल, मकबूल जैसी बड़ी फिल्में रही। ऐसी फिल्में जिन्होंने निर्देशक के रूप में तिग्मांशु धुलिया और विशाल भारद्वाज दोनों को ही भारतीय फिल्म उद्योग में स्थापित कर दिया। तिग्मांशु तो अपने कई साक्षात्कारों में कह चुके हैं कि उन्होंने आज तक इरफान जैसा अदाकार नहीं देखा जोकि आंखों के माध्यम से अभिनय कर देता था।
जीवन के मर्म को बखूबी से समझ चुके इरफान, अहंकार को इतना पीछे छोड़ चुके थे कि जब फिल्म एवं टेलीविजन इस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) में वह छात्रों के बीच पहुंचे तो उन्होंने अपनी फिल्म दिखाने की बजाय हॉलीवुड की ‘द मास्टर’ फिल्म दिखायी ,जिसे उन्होंने कमाल का काम बताया था।
साथ पढ़ें दोस्त की जुबानी...
आलोक चटर्जी और इरफान खान 1984 से 1987 तक नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में साथ पढाई किये थे। उन्होंने फोन पर बताया कि एनएसडी में इंटरव्यू के दौरान इरफान ने कहा था कि एफटीआईआई (फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) में अभी एक्टिंग का कोर्स नहीं है, इसलिए वह एनएसडी आए है, क्योंकि उन्हें सिनेमा का एक्टर बनना है। सिनेमा का भी ऐसा एक्टर बनना है कि जिसकी एक्टिंग देखकर डायरेक्टर खुद पास आएं। यह उसका सपना था। जिंदगी में उन्होंने अपने सामने इस मुकाम को हासिल भी किया।
नसीरूद्दीन शाह जैसा बनने की चाहत
इरफान, तब बहुत खुश थे जब उनकी अदाकारी की नसीरूद्दीन शाह ने बहुत तारीफ की थी। कैमरे पर सहजता से एक्टिंग करने वाला एक बेहतरीन अदाकार जो कि सादगी की वजह से भीड़ से अलग था, आज मुश्किल दिनों में भी बेहद सादगी से सुपुर्दे खाक कर दिया गया।
इरफान चले तो गये हैं । लेकिन जिस तरह से सोशल मीडिया से लेकर हर जगह लोगों के बीच में उनकी उपस्थिति दिख रही है तो ऐसा लगता है कि दशकों तक इस सहज कलाकार को लोग अपने दिलों में बैठा कर रखेंगे ।जब भी अदाकारी की बात होगी तो वह मोतीलाल, राजेन्द्र कुमार, राजकपूर, दिलीप कुमार, ओमपुरी के साथ ही इरफान खान की एक्टिंग को भी जरूर याद करेंगे।