जयदेव की संगीत में भारतीयता का था पूरा भाव, ऐसे की थी करियर की शुरुआत

हिन्दी फिल्म संगीत में जयदेव की अपनी अलग पहचान है। “अभी ना जाओ छोड़ के कि दिल अभी भरा नहीं, मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, नदी नारे ना जाओ श्याम पंइयां पड़ूं, आपकी याद आती रही रात भर।” ये गीत आज भी कहीं न कहीं बजते मिल जाते हैं।

Monika
Published on: 6 Jan 2021 3:05 AM GMT
जयदेव की संगीत में भारतीयता का था पूरा भाव, ऐसे की थी करियर की शुरुआत
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जिनके संगीत में भारतीयता का पूरा भाव था

मुंबई: हिन्दी फिल्म संगीत में जयदेव की अपनी अलग पहचान है। “अभी ना जाओ छोड़ के कि दिल अभी भरा नहीं, मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, नदी नारे ना जाओ श्याम पंइयां पड़ूं, आपकी याद आती रही रात भर।” ये गीत आज भी कहीं न कहीं बजते मिल जाते हैं। जयदेव के संगीत में भारतीयता की सुगंध है, चाहे वो गमन की गजलें हों, या फिर घरोंदा के लिए स्वरबद्ध किये हुए, तरो-ताजा कर देने वाले गीत हों।

फिल्मों में करना चाहते थे काम

नैरोबी में 3 अगस्त 1919 को जन्मे जयदेव की परवरिश लुधियाना में हुई। पिता नैरोबी में व्यवसाय कर रहे थे। तब जयदेव की जिम्मेदारी उनके फूफा ने उठायी। वह जब केवल 15 साल थें तभी वह फिल्मों में काम करने के लिए घर से भागकर मुम्बई आ गए थें। जयदेव पहले अभिनेता बनना चाहते थें इसलिए वह 15 साल की उम्र में मुम्बई आ गए थें। यहां आकर उन्होंने कुछ फिल्मों में काम भी किया पर बाद में वहषास्त्रीय संगीत सीखने के लिए लखनऊ आ गए। वहां से दिल उचाट हुआ तो लखनऊ में विख्यात सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान से संगीत की तालीम लेनी शुरू कर दी।

8 फिल्मों में किया अभिनय

मुंबई में उन्हें वाडिया मुवी टोन की फिल्मों में किशोर कलाकार के रूप में जगह मिलने लगी। उन्होंने 8 फिल्मों में अभिनय किया। फिर साल 1936 में जयदेव के फूफा की मौत हो गयी। वे सब कुछ छोड़ कर लुधियाना लौट आए। फिर जयदेव अल्मोड़ा जाकर उदय शंकर की नृत्य मंडली में शामिल हो गए। अगस्त 1947 से जयदेव ने रेडियो पर गाना शुरू कर दिया।

एक बार फिर किया मुंबई का रुख

इस बीच उस्ताद अली अकबर खान ने नवकेतन की फिल्म ‘आंधियां’ और ‘हमसफर’ में संगीत देने का जिम्मा संभाला तब वे जयदेव को अपना सहायक बना कर मुंबई ले गए। दो फिल्में कर उस्ताद अली अकबर खां तो वापस लौट आए लेकिन जयदेव नवकेतन की ही फिल्म ‘टैक्सी ड्राइवर’ में संगीतकार सचिन देव वर्मन के सहायक बन गए। नवकेतन की फिल्म ‘हम दोनों’ में उनका संगीतबद्ध हर गाना खूब लोकप्रिय हुआ। चाहे वह अभी न जाओ छोडकर ” हो या “मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया” या फिर “कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया” हो।

इन गायकों को दिया गाने का मौका

इसी फिल्म के लता मंगेशकर के गाए एक भजन “अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नामश्श् ने जयदेव को फिल्म संगीत में अमर बना दिया। जयदेव ने अपने संगीत के दौरान परवीन सुल्ताना, हीरा देवी मिश्र, छाया गांगुली, भूपेन्द्र, सरला कपूर, रूना लैला, शर्मा बन्धु, राजेन्द्र मेहता, दिलराज कौर, मधु रानी, यशुदास, फय्याज, हरिहरन, मीनू पुरुषोत्तम, पीनाज मसानी, लक्ष्मी शंकर और नीलम साहनी जैसे गायकों को उन्होंने गाने के मौके दिये। साल 1977 में ऋषि कपूर और रंजीता की फिल्म ‘लैला मजनूं’ में तीन गीतों की धुन तैयार करने का मौका जयदेव को मिला। फिल्म की बाकी धुनें मदनमोहन ने तैयार की थीं।

इसके अलावा ‘घरौंदा’, ‘मुझे जीने दो’, ‘गमन’ और ‘प्रेम पर्वत’ में जयदेव के तैयार किये गीत निकाल दिये जाएं तो फिल्म संगीत का इतिहास पूरा नहीं हो सकेगा। फिल्म ‘रेश्मा और शेरा’, ‘गमन’ और ‘अनकही’ के लिए उन्हें तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

श्रीधर अग्निहोत्री

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पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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