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पाकिस्तान में बसने की पेशकश ठुकरायी थी जिगर मुरादाबादी ने, जानिए अनसुने तथ्य

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Published on: 9 Sept 2017 2:19 PM IST
पाकिस्तान में बसने की पेशकश ठुकरायी थी जिगर मुरादाबादी ने, जानिए अनसुने तथ्य
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Vinod Kapoor

लखनऊ : पाकिस्तान बनने के बाद वहां की सरकार ने जिगर मुरादाबादी को ताजिंदगी कुछ रकम बतौर वजिफे की पेशकश करते हुए पाकिस्तान आ जाने को न्यौता दिया था। जिसे ठुकराते हुए यह शेर कहा था- उनका जो फर्ज है वो एहले सियासत जाने। मेरा पैगाम मुहब्बत है जहां तक पंहुचे।। नामचीन शायर जिगर मुरादाबादी की आज 57वीं बरसी है।

यूं तो सर जमीन-ए-मुरादाबाद में कई शायर पैदा हुए लेकिन जो इज्जत व शोहरत जिगर मुरादाबादी ने हासिल की। उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। अली सिकंदर उर्फ जिगर मुरादाबादी की पैदाइश 16 अप्रैल 1890 को मुरादाबाद की सरजमीं पर और तालीम मदरसा शाही में हुई।

जिगर साहब की शुरुआती तालीम मदरसा जामिया कासमिया, मदरसा शाही और इमदादिया में हुई। बीवी की बेवफाई से जिगर गमगीन हो गए। इस घटना ने ही जिगर को शायर बना दिया। उनको शायरी से काफी शोहरत मिली। इसके बाद वह गोंडा चले गए। 9 सितंबर 1960 को उनका इंतकाल हो गया और वहीं पर उनको सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। गोंडा मे उनके नाम से एक कॉलेज भी संचालित है। जिगर साहब को अच्छा शायर बनाने में उनके वालिद अली नजर की बड़ी भूमिका थी। वालिद के कारण ही जिगर साहब को भी शायरी शौक लग गया। जिगर अल्हड उम्र में गजलों के माध्यम से अपने जमाने के मशहूर शायर दाग देहलवी की तारीफ पा चुके थे।

जिगर साहब ने हुश्न और इश्क की ऐसी मिसाल पेश की जो जमाने के लिए नजीर बन गई। वह ऐसी जुगलबंदी के माहिर थे। उन्होंने अपनी गजलों को और प्रभावशाली बनाने के लिए उर्दू और फारसी के लफ्जों का बेहतरीन नमूना पेश किया। उन्होंने लिखा- कहते हैं कि इश्क नाम के गुजरे थे एक बुजुर्ग। हम लोग भी मुरीद उसी सिलसिले में है।

दुनिया भर मे पीतलनगरी के नाम से विख्यात मुरादाबाद का नाम रोशन करने वाले हरदिल अजीज जिगर साहब की शायरी की धूम हिंदुस्तान में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में थी।

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एक गजल में उन्होंने कहा-

“इश्क को बेनकाब होना था। आप अपना जवाब होना था।” जिगर मुरादाबादी के कई मजमुआ-ए-कलाम प्रकाशित हुए। इसमे दागे जिगर 1928 में आजमगढ से प्रकाशित हुआ। शोला-ए-तेल 1934 में प्रकाशित हुआ। आतिशे अमल 1954 मे अलीगढ से प्रकाशित हुआ। उन्होंने लिखा-फिर ये जुदाइयां हैं क्या, फिर ये दहाइयां हैं क्या। इश्क से तो अलग नहीं, हुश्न से जुदा नहीं। जिगर की शायरी का अंदाज मिर्जा गालिब की तरह फलसफाना था। यह अंदाज जिगर ही दिखा सकते थे जब वह लिखते हैं कि “फलक के जोर जमाने के गम उठाए हुए हैं। हमें बहुत न सताओ कि हम हैं सताए हुए।“

उनकी याद में बने जिगर मुरादाबादी फाउंडेशन ने आज शाम उनकी बरसी पर याद किया। उनके प्रशसंकों ने जिगर फाउडेंशन का गठन किया गया था, लेकिन एक बरस में उनकी याद करने मात्र से ज्यादा और कोई बडी उपलब्धि नहीं है। आने वाली पीढी अपने शायर से अनभिज्ञ है। फाउंडेशन के पदाधिकारी जिगर के नाम पर आडिटोरियम,डाक टिकट व किसी सुपर फास्ट ट्रेन चलाने व युवकों को तालिमी इंस्टीट्यूट खोलने की मांग करते रहे हैं। फिर वही मांग आज फिर दोहराने की रस्म अदायगी के बाद अगले 9 सिंतबर तक भूल जाते हैं।

उन्होंने लिखा है- मेरा कमाले शेर बस इतना है जिगर। वो मुझ पे छा गए मैं जमाने पे छा गया।। ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजे। इक आग का दरिया है और डूब के जाना है।



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