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बॉलीवुड का बड़ा नाम: निर्देशक ओपी दत्ता की पुण्यतिथि आज, जानें फिल्मी सफर
फिल्म प्यार की जीत (1948) से 2006 में उमराव जान तक कई फिल्में लिखी हैं। आज उनकी पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 9 फरवरी 2012 को उनका निधन हुआ था।
श्रीधर अग्निहोत्री
मुम्बई: ओपी दत्ता फिल्मी दुनिया का ऐसा नाम हैं जिसने इस क्षेत्र में देश की आजादी के बाद से लगातार लेखन से लेकर निर्देशन तक का एक लम्बा सफर तय किया। उनके बेटे जेपी दत्ता ने भी अपने पिता के रास्ते पर चलते हुए राजस्थान पृष्ठभूमि पर आधारित एक से एक बड़कर फिल्में दी हैं। फिल्म प्यार की जीत (1948) से 2006 में उमराव जान तक कई फिल्में लिखी हैं। आज उनकी पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 9 फरवरी 2012 को उनका निधन हुआ था।
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फिल्म वर्ष 2006 में आई उमराव जान की रीमेक थी
निर्देशक और लेखन ओपी दत्ता ने सूरजमुखी 1950, एक नजर 1951, मालकिन 1953, आंगन 1959 और अन्य फिल्मों का निर्देशन किया। बाद में ओपी दत्ता ने अपने बेटे जेपी दत्त की फिल्में जैसे गुलामी 1985 हथियार 1989 बॉडर 1997 रिफ्यूजी 2000ए एलओसी कारगिल 2003 के लिए पटकथा लिखी। उनकी अंतिम लिखी हुई फिल्म वर्ष 2006 में आई उमराव जान की रीमेक थी।
op dutta (PC: social media)
ओपी दत्ता के बेटे जेपी दत्ता के अलावा एक भाई है
ओपी दत्ता के बेटे जेपी दत्ता के अलावा एक भाई है, जो इंडियन एयरफोर्स में स्क्वाड्रन लीडर थें जिनका नाम था दीपक दत्ता। उन्होंने फ्लाइंग लेफ्टीनेंट के तौर पर खुद भी एक 1971 का युद्धा लड़ा था। उनके भाई ने एक दिन जेपी को 1971 की लोंगेवाला की लड़ाई के बारे मे बताया कि कैसे केवल 120 सैनिकों ने ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी की अगुवाई में पाकिस्तान के 3000 सैनिकों को मात दे दी थी, उसके बाद उन्हे 25 साल तक इंतजार करना पड़ा।
अपने शहीद भाई को श्रद्धांजिल देने के लिए 'बॉर्डर' मूवी बनाई
लेकिन दिक्कत ये थी ऑफीशियल सीक्रेट एक्ट के तहत किसी भी जंग के बारे में 25 साल तक कोई बाहर नहीं बता सकता। यानी अगले 25 साल जेपी दत्ता ने इंतजार किया। इसी बीच उनके भाई की भी मिग विमान क्रैश होने से मौत हो गई। अब जेपी दत्ता ने अपने शहीद भाई को श्रद्धांजिल देने के लिए 'बॉर्डर' मूवी बनाई, जो उन दिनों ब्लॉक बस्टर साबित हुई।
1955 में उन्होंने भी 'लगान' नाम की फिल्म डायरेक्ट की थी
हालांकि एक जमाने में उनके पिता ओपी दत्ता भी फिल्में डायरेक्ट किया करते थे. शुरूआत अभिनेत्री सुरैया की मूवी 'प्यार की जीत' से 1948 में, 1959 तक आते आते वो 9 फिल्में डायरेक्ट कर चुके थे। 1955 में उन्होंने भी 'लगान' नाम की फिल्म डायरेक्ट की थी। फिर उन्होंने केवल लिखना शुरू कर दिया। कहानी, स्क्रीनप्ले और कभी कभी डायलॉग्स भी लिखे। यहां तक कि अपने बेटे के जीवन पर आधारित बार्डर फिल्म भी लिखी।
op dutta (PC: social media)
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इसके अलावा रणधीर कपूर की 'जीत', महमूद और विनोद खन्ना की 'मस्ताना', सुनील दत्त की 'चिराग', राजेश खन्ना की 'दो रास्ते' जैसी फिल्मों की कहानियां लिखने के बाद ओपी दत्ता ने अपने बेटे जेपी दत्ता की फिल्मों की कहानियां लिखनी शुरू कीं। फिर तो 'बॉर्डर' से लेकर 'क्षत्रिय' तक, 'उमराव जान' से लेकर 'गुलामी' तक, 'यतीम' से लेकर 'रिफ्यूजी' और 'एलओसी कारगिल' तक, कहानी होती है पिता ओपी दत्ता की और डायरेक्शन होता है बेटे जेपी दत्ता का. ये सिलसिला 9 फरवरी 2012 को उनकी मौत के साथ ही थमा।
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