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Lata Mangeshkar: जब लता मंगेशकर की मोहम्मद रफ़ी से हुई थी लड़ाई, 4 साल तक साथ नहीं गाया
Lata Mangeshkar: लता मंगेशकर पर समय-समय पर तरह-तरह के आरोप लगते रहे हैं। एक बार उनका भारत के सबसे मृदुभाषी और सौम्य गायक, महान मोहम्मद रफी के साथ झगड़ा हुआ था।
Lata Mangeshkar: भारत रत्न से सम्मानित बॉलीवुड की दिग्गज गायिका लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar passed away) ने अपने लंबे करियर में कई सुपरहिट गाने गाए हैं। 92 साल की (Lata Mangeshkar age) स्वर कोकिला लता दी की आवाज का दीवाना भारत ही नहीं विदेश भी है। लता ने बॉलीवुड में दशकों तक काम किया है। लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) का आज निधन हो गया है। निमोनिया और कोरोना से जंग लड़ रही थीं। लता दी से जुड़े कई पुराने किस्से हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक बार मृदुभाषी और मृदुल गायक महान मोहम्मद रफी साहब के साथ स्वर नाइटिंगेल का झगड़ा हो गया था।
लता मंगेशकर पर समय-समय पर तरह-तरह के आरोप लगते रहे हैं। एक बार उनका भारत के सबसे मृदुभाषी और सज्जन गायक, महान मोहम्मद रफ़ी साहब से झगड़ा हुआ था। कहानी ऐसी थी कि 60 के दशक तक आते-आते लता का रुतबा काफी बढ़ चुका था। हर संगीतकार चाहता था कि लता उनके साथ गाए। यह सच भी था क्योंकि वो जिस भी फिल्म में किसी म्यूजिक डायरेक्टर के साथ गाती थीं, वो फिल्म हिट हो जाती थी या म्यूजिक हिट हो जाता था। इस समय तक, संगीत कंपनियों ने संगीतकारों को रॉयल्टी देना शुरू कर दिया था। संगीतकार विदेशों की तर्ज पर हर साल हजारों रुपये की रॉयल्टी कमाते थे और गायकों को एक पैसा भी नहीं मिलता था।
रफ़ी साहब पैसे के मामले में फकीर किस्म के आदमी थे
लता मंगेशकर ने एक अभियान शुरू किया कि अगर संगीतकारों को रॉयल्टी मिलेगी तो गायकों को भी रॉयल्टी मिलनी चाहिए। संगीत कंपनियों और संगीतकारों ने इसका कड़ा विरोध किया। लता के साथ किशोर कुमार, मुकेश साहब, मन्ना डे, तलत महमूद जैसे कई दिग्गज कलाकार थे। लता ने इस संबंध में मोहम्मद रफ़ी साहब से भी बात की क्योंकि वे प्रमुख पार्श्व गायक थे। रफ़ी साहब पैसे के मामले में फकीर किस्म के आदमी थे। उनका मतलब कला सेवा था। उन्होंने सोचा कि जब गायक ने गाना गाया और निर्माता ने उसका पारिश्रमिक दिया, तो उसका अब गाने पर कोई अधिकार नहीं।
रफी साहब ने क्रोधित होकर लता के साथ गाने से मना किया
लता की बहन आशा के भी कुछ ऐसे ही विचार थे। इस मामले को लेकर गायकों की एक बड़ी बैठक हुई। जब बहस हुई तो रफी साहब जो कि बहुत ही सरल स्वभाव के थे, ने भी क्रोधित होकर कहा कि आज के बाद वे लता के साथ गाने नहीं जाएंगे। लता का क्रोध तीव्र था। वो भी बोल पड़ी, "तुम क्या नहीं गाओगे, आज से मैं तुम्हारे साथ कोई गीत नहीं गाऊंगी। " इसके बाद लता ने सभी संगीतकारों को बुलाया और रफ़ी के साथ कोई भी युगल गीत करने से साफ इनकार कर दिया।
अब सिंगर और लिरिक्स राइटर दोनों को रॉयल्टी मिलती है
रफ़ी साहब भी नाराज़ थे। इसलिए उन्होंने भी मामले को सुलझाने के लिए कोई पहल नहीं की। उन्होंने नए गायकों के साथ गाना शुरू किया। 1963 से 1967 तक यानी 4 साल तक लता और रफी ने एक साथ एक भी गाना नहीं गाया। लता मंगेशकर के मुताबिक संगीतकार जयकिशन के कहने पर रफी साहब ने पत्र लिखकर लता से माफी मांगते हुए मामला खत्म करने को कहा। फिर 1967 में संगीतकार एसडी बर्मन के लिए एक संगीत समारोह का आयोजन किया गया। दादा बर्मन ने दोनों को एक साथ गाने के लिए मंच पर भेजा। दोनों ने दादा बर्मन की सुपरहिट फिल्म ज्वेल थीफ का सुपरहिट गाना 'दिल पुकारे आ रे आ रे' गाते हुए प्रवेश किया, जो उस साल रिलीज हुई थी और इस तरह लता और रफी की रॉयल्टी की लड़ाई के साथ समाप्त हुई। वैसे अब सिंगर और लिरिक्स राइटर दोनों को रॉयल्टी मिलती है।