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महाभारत के युद्ध की तरह इस जंग को भी जीतेंगे : सुरेन्द्र पाल सिंह

लखनऊ। ' ये समय बहादुरी दिखाने का नहीं, घरों में दुबक के बैठे रहने का है। कोरोना महामारी हमारे देश के लोगों के अंधकार में ले जाना चाहती है। जिस प्रकार रामायण और महाभारत में असत्य पर सत्य की विजय हुई थी। ठीक ऐसा ही भारत भी कोरोना पर जीत दर्ज करेगा।'

राम केवी
Published on: 14 April 2020 7:25 AM GMT
महाभारत के युद्ध की तरह इस जंग को भी जीतेंगे : सुरेन्द्र पाल सिंह
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संदीप पाल

लखनऊ। ' ये समय बहादुरी दिखाने का नहीं, घरों में दुबक के बैठे रहने का है। कोरोना महामारी हमारे देश के लोगों के अंधकार में ले जाना चाहती है। जिस प्रकार रामायण और महाभारत में असत्य पर सत्य की विजय हुई थी। ठीक ऐसा ही भारत भी कोरोना पर जीत दर्ज करेगा।'

ये कहना है प्रसिद्ध एक्टर और 'महाभारत' सीरियल के द्रोणाचार्य, सुरेन्द्र पाल का। 'अपना भारत' के लिए फोन पर एक विशेष बातचीत में सुरेन्द्र पाल ने कहा, हमारे डाक्टर, पुलिस, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, सामाजिक संगठनों के अलावा प्रशासनिक योद्धा अपनी जान की परवाह न करते हुए कोरोना से लोहा ले रहे हैं। हमारी चिकित्सा व्यवस्था यूरोपीय देशों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई है, इसके बावजूद वह सब डटे हुए हैं।

निश्चय ही हम विजयी होंगे लेकिन...

सुरेंद्रपाल ने कहा, विश्वास है कि निश्चय ही हम विजयी होंगे लेकिन यह तभी मुमकिन है जब आप और हम अपने घरों में रहेंगे। हमें अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व सरकार पर विश्वास करना चाहिए। जब वह देश के आर्थिक नुकसान की परवाह न करते हुए देश व देशवासियों के बारे में चिन्तित हैं। ऐसे में हमारा भी फर्ज बनता है कि हम उनकी बात, अपील पर अमल करें और देश हित, अपने तथा अपने परिजनों के हित में घरों में रहें।

सुरेन्द्र पाल ने कहा कि योगी लोग जब जब कमान संभालते हैं तब तब विजयीश्री उनके कदम चूमती है। इसलिए डरने के बजाय धैर्य दिखाने की जरूरत है। यह मान लें कि हम रामायण के राम, सीता और लक्ष्मण तथा महाभारत के पाण्डवों की तरह वनवास पर हैं। रामायण में 14 वर्ष का तथा महाभारत में 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास दिया गया था। हमें तो बस 21 दिनों या 42 दिनों तक ही घरों में परिजनों के साथ रहना है।

लखनऊ में हुआ था जन्म

एक्टर/प्रोड्यूसर सुरेंद्र पाल सिंह हैं तो मूलतः राजस्थानी लेकिन उनका जन्म लखनऊ में वर्ष 25 सितम्बर 1953 को हुआ था। सुरेन्द्र पाल ने 1984 में एक्टिंग कॅरियर की शुरुआत की थी। वो खुदा गवाह, शहर, जोधा अकबर आदि दर्जनों फिल्में कर चुके हैं। दूरदर्शन पर इन दिनों दिखाये जा रहे सीरियल महाभारत के अलावा वह शक्तिमान में भी प्रमुख भूमिका में हैं।

सुरेन्द्र पाल ने डायरेक्शन के क्षेत्र में भी अपनी किस्मत आजमाई और एक भोजपुरी फिल्म ‘भऊजी की सिस्टर’ बनाई लेकिन सुरेन्द्र को जल्द ही यह बात समझ में आ गई कि डायरेक्शन उनके बस की बात नहीं है। अतः उन्होंने अपनी एक्टिंग की दुनिया में ही रहना ज्यादा उचित समझा।

प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश :

आपकी किस खेल में रूचि है?

- मेरी पढ़ाई में विशेष रुचि नहीं थी लेकिन खेलकूद का शौक मुझे बचपन से ही था। आज भी मैं शूटिंग पर जाने से पहले बैडमिंटन या स्विमिंग करता हूं। मुझे भारतीय होने पर गर्व है और मैं सोचता हूं कि प्रत्येक व्यक्ति को खेल को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए। मुझे खेल प्रतियोगिताओं में जाना व देखना अच्छा लगता है।

आजकल की हिन्दी फिल्मों पर आपका क्या विचार है?

- अब हिन्दी फिल्मों में वेस्टर्न कल्चर ज्यादा दिख रहा है। हॉलीवुड की नकल हो रही है। हाँ, बाहुबली हिट हुई, क्योंकि वह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है। मैं मूलतः राजस्थानी हूँ। राजस्थानी फिल्में अब बन नहीं रहीं, इसलिए लोगों का रुझान कम हो गया है।

आपको फिल्म इंडस्ट्री में पैर जमाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा था?

- मुझे फिल्म इंडस्ट्री में ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा, क्योंकि जब मैं मुम्बई आया तो पास ही में पृथ्वी थियेटर था और हम थियेटर करते थे। वहीं मेरी मुलाकात सुनील दत्त जी से हुई, उन्होंने कहा कि तेरी आवाज में दम है और कुछ-कुछ अमिताभ बच्चन से मिलती है। उन्होंने यह भी कहा कि अमिताभ बच्चन मेरे पास इंदिरा गांधी का लेटर लेकर आया था। खैर उसके बाद अपनी दुकान चल पड़ी। उस समय थियेटर में कुछ काम मिल जाता था और तेरह, चौदह रुपये मिलते थे। हम उसी में खुश हो जाया करते थे। फिल्म इंडस्ट्री में सुनील दत्त साहब ने मेरी मदद की।

आज के एक्टरों के बारे में क्या राय है?

- सुनील दत्त, अशोक कुमार (दादा मुनी), धर्मेन्द्र, प्राण, अजीत, विनोद खन्ना, शुत्रहन सिन्हा जैसे सज्जन, सरल, नेक दिल इंसान अब फिल्म इंडस्ट्री में नहीं रहे। मैंने हमेशा इनके जैसा ही बनना चाहा। आज के एक्टरों के लिए रुपया-पैसा ही माई-बाप रह गया है और सभी उसके पीछे भाग रहे हैं। पुराने एक्टर जैसी बात फिल्म इंडस्ट्री में दिखाई नहीं पड़ती। बाउंसर रखकर चलने का चलन काफी आगे निकल आया है लेकिन मुझे बाउंसर का शौक नहीं। आज मैथेड एक्टिंग का दौर समाप्त हो चुका है और नेच्यूरल एक्टिंग/स्वाभाविक मंचन हो रहा है। नये-नये कलाकार इंडस्ट्री में आ रहे हैं लेकिन वही टिकेगा जो मेहनत करेगा। सिफारिश के दम पर आने वालों का हाल वैसा होगा।

क्या आपको लखनऊ याद आता है?

- मुम्बई हमारी कर्मभूमि बनकर रह गई है। मैं लखनऊ पैदा हुआ। मेरे पिता जी नवाबों के शहर में डीएसपी थे। उस दौरान उनका तबादला हुआ करता था और हम कभी कानपुर, बरेली तो कभी मुरादाबाद में उनके साथ रहते थे। हमारे पूर्वज राजस्थान में पाली के मडवार के थे। ब्रिटिश काल में वहां से वो सब माइग्रेट कर गये थे। मुझे लखनऊ की तहजीब और वहां का खानपान हमेशा आकर्षित करता है। अब तो बस शूटिंग व सामाजिक कार्यां से ही लखनऊ आना जाना होता है। बनारस में आज भी हमारी पैतृक सम्पति है जिसे हमारे रिश्तेदारों में बांट दिया गया था। वह लोग अब खेतीबाड़ी करते हैं।

फिल्म इंडस्ट्री में आवाज और सुन्दरता का कितना महत्व है?

- कहते हैं कि इंसान रहे न रहे लेकिन उसकी आवाज अमर रहती है और यही उसकी पहचान है। इंडस्ट्री में भी आवाज का जादू भी लोगों के सिर चढ़कर बोलता है। चाहे वह आवाज अमिताभ बच्चन, अम्बरीशपुरी, ओम पुरी, रजा मुराद, शाहरूख खान, मुकेश खन्ना, हरिश भिमानी (महाभारत में मैं समय हूं), व मुझे डबिंग के लिए बुलाया जाता है। फिल्म इंडस्ट्री में तमाम ऐसे कलाकार भले ही देखने में स्मार्ट नहीं थे लेकिन उनकी आवाज में वह जादू था। जिसकी बदौलत आज भी लोग उन्हें याद करते हैं। अगर चेहरा सुन्दर है और आवाज में दम है तो फिर सोने पर सुहागा, लेकिन आज के दौर में हम कलाकारों की आवाज की जरूरत कार्टून में जान डालने के लिए भी पड़ती है।

ऐसा कोई किरदार जिसे निभाने की हसरत अभी बाकी है?

- मैंने लगभग 200 फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाये हैं। ऐसा कोई किरदार बचा नहीं जिसे निभाने की मेरे अन्दर हसरत बाकी हो। मैं कभी भूमिकाओं में नही बंधा यही कारण है कि मैं सनी, रितिक, बॉबी जैसे कलाकारों के साथ बिना किसी असहजता के काम कर सका। टी वी सीरियल एक फुलटाइम जॉब है और मैं इसके चलते ज्यादा फिल्मे नहीं कर सका। लेकिन काम की मेरे पास कमी नहीं और मैं लगभग 500 से अधिक सीरियल में काम कर चुका हूं।

लॉकडाउन में आपका समय कैसे पास होता है?

- खाली समय में मैं किताबें पढ़ने और अपनी संस्कृति, सभ्यता से जुड़े प्रोग्राम के अलावा कॉमेडी विद कपिल शर्मा देखना पसंद करता हूं तथा योगा व अन्य कसरतें कर समय को मुस्कुराते हुए व्यतीत कर रहा हूं। मैं अपने परिवार के साथ घर में बहुत खुश हूं। मेरे दो बेटे और एक बेटी है। बड़ा बेटा एक्टर बनेगा और छोटा अभी पढ़ाई कर रहा है जबकि बेटी फिटनेस एक्सपर्ट है।

राम केवी

राम केवी

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