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प्यार में नाकामयाबी ने फिल्मों में बनाया इस गीतकार को कामयाब
लखनऊ: 8 मार्च को पूरी दुनिया वीमेंस डे मनाती है। इसी दिन साहित्य और फिल्मों को बखूबी जोड़ने वाले मशहूर शायर साहिर लुधियानवी का जन्मदिन 8 मार्च 1921 को पंजाब के लुधियाना में हुआ था। वे ऐसे शायर थे, जो आम आदमी की रोजमर्रा की परेशानियों और उनके सब्र के इम्तिहान को कलमबद्ध करते थे। वे हिन्दी फिल्मों के पहले गीतकार जिसने गीतकारों के लिए ज्याद पारिश्रमिक दिए जाने की मांग की थी। प्रेम में असफलता और पारिवारिक परिस्थितियों ने उन्हें शायर बना दिया । वे ऐसे शायर रहे जो उस वक्त औरतों के हक में अपने गीतों से बात रखी थी। उनकी ये नज्म उस वक्त औरतों के पक्ष में लिखी गई थी।
औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया
जब जी चाहा कुचला मसला, जब जी चाहा धुत्कार दिया
जागीरदार घराने में जन्म
उनका जन्म जमींदार चौधरी अफजल मुहमद और मां सरदार बैगम के घर हुआ था। जमींदार होने के कारण उनके पिता आशिक मिजाज थे। उनकी कुल 13 बेगम थी।इस स्वभाव से तंग आकर साहिर की मां ने पति का घर छोड़ भाई के पास चली गई। उसके बाद से उनका बचपन मामा के घर में बीता ।आर्थिक तंगी ने उन्हें शायरी करने को विवश किया। शुरूआत में उनका नाम अब्दुल हमी था। बाद में कॉलेज में शायरी करने के कारण साहिर लुधियानवी बन गए।
अमृता प्रीतम-साहिर
प्यार ने बनाया विद्रोही
जब कॉलेज के दिनो में साहिर शायरी करते थे तो उनकी का तो पूरा कॉलेज दीवाना था। उसमें भी एक लड़की थी जो साहिर की शायरी और उनपर पूरी तरह फिदा था. वो कोई और नहीं अमृता प्रीतम थी। साहिर और उनका प्यार परवान चढ़ा ही था कि अमृता के घर वालों की शिकायत पर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया। इसके बाद उन्होंने शादी न करने का फैसला किया। इसके बाद उनकी जिंदगी में दो और औरते एक वकील की बेटी और गायिका सुधा मंलहोत्रा आई, लेकिन दोनों ही रिश्ते पूरे ना हो पाए। इसके बाद उन्होने ताउम्र अविवाहित रहने का फैसला किया।
फिल्मों से जुड़ने के साथ कई बदलाव
प्यार में बार-बार में मिली असफलता ने उन्हें बगावती नेचर का बना दिया। अपने हक की लड़ाई तो लड़ी साथ दूसरों को भी वाजिब हक दिलाया। कॉलेज के बाद साहिर तखलिया ,सवेरा और शाहकार पत्रिका में लिखना शुरू किया । फिल्मों में उनकी शुरुआत 1948 में आई फ़िल्म ‘आजादी की राह पर’ से हुई। ये फिल्म असफल रही और उसके गीत भी असफल हुए। इसके बाद वे फिल्मों में आ गए। उनकी जो़ड़ी सचिन देव बर्मन के साथ काफी लोकप्रिय रही। दोनों मे 10 फिल्मों में साथ काम किया ।किसी नाइंसाफी को बर्दाश्त नहीं करने का साहिर का जज्बा ही था कि उन्होंने फिल्म कंपनियों से गीतकारों को रॉयल्टी दिलाने की लड़ाई लड़ी और उनसे रॉयल्टी हासिल करने वाले पहले गीतकार बने।
साहिर को प्रसिद्धी मिली 1951 में आई फ़िल्म ‘नौजवान’ के गीत ठंडी हवाएं लहराके आएं से। जिसके संगीतकार थे एस डी बर्मन साहब, मगर जिस फिल्म ने साहिर को इंडस्ट्री में स्थापित किया वो थी गुरुदत्त पहली फ़िल्म बाजी, जिसमें भी संगीत बर्मन साहब का था। इस फिल्म के सभी गीत मशहूर हुए, साहिर और बर्मन साहब की जोड़ी भी चल निकली, ‘ये रात ये चांदनी फ़िर कहां’ , ‘जाएं तो जाएं कहां’, ‘जीवन के सफर में राही जैसे एक से बढ़कर एक गीत साहिर ने लिखे। जिसे आज भी लोग याद करते हैं।
उनके काव्य संग्रह
साहिर ने कई गीत लिखे,ना जाने कितनी शायरी की जिसे लोगों ने पसंद किया। तल्खिया, आओं की कोई ख्वाब बुने और परछाइयां ये उनके काव्य संग्रह है। फिल्मों में उनके लिखे गीत की चंद लाइने..मुझे जीने दो फिल्म की कोई गुलशन ना उजड़े, अपने अंदर जरा झांक मेरे वतन, हमदोनों फिल्म का अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम,अभी ना जाओ छोड़कर की दिल अभी भरा नहीं नीलकमल का आजा तुझको पुरकारे मेरा प्यार रे जैसे अनगिनत गीत लिखे और प्रसिद्ध हुए और आज भी गुनगुनाए जाते है।