फिल्म- मिर्जिया
कलाकार- हर्षवर्धन कपूर, सयामी खेर, अनुज चौधरी, अंजलि पटेल, आर्ट मलिक, केके रैना, ओमपुरी आदि।
निर्देशक- राकेश ओमप्रकाश मेहरा
अवधि- 2 घंटे 15 मिनट
रेटिंग- 1.5/ 5
फिल्म 'मिर्जिया' एक आलसी किस्म की फिल्म है, जिसमें दृश्यों और संगीत का घालमेल है और ये एक ऐड फिल्म ज्यादा लगती है, जिसमें कोई आत्मा नहीं है। न तो प्रेम कहानी आपसे संबंध बना पाती है न ही किरदार या कलाकार। ये राकेश ओमप्रकाश मेहरा की सबसे कमजोर फिल्म है।
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कहानी:
फिल्म 'मिर्जिया' की कहानी के तीन छोर हैं- लोककथा का हिस्टॉरिकल पास्ट, गुजर रहा वर्तमान और साथ में वर्तमान का भी एक बीता हुआ समय। लोककथा में मिर्जा और साहिबां की प्रेम कहानी है। इसमें आपको लद्दाख की वादियों में कुछ लड़ाकों से मिर्जा और साहिबा घोड़े पर भागते ही दिखाई देंगे। दूसरी ओर वर्तमान है, जो जोधपुर में सेट है। यहां मोनिश और सुचित्रा नाम के दो बच्चों के बीच का प्यार दिखाया गया है।
यह भी पढ़ें...VIDEO: फिल्म ‘मिर्जिया’ का ट्रेलर रिलीज, हर्षवर्धन करेंगे डेब्यूएक घटना घटती है, जिसमें मोनिश, सुचित्रा के कमिश्नर पिता यानि कि आर्ट मलिक की रिवॉल्वर चोरी कर अपने स्कूल टीजर की इसलिए हत्या कर देता है क्योंकि उसने सुचित्रा को छड़ी से पीटा था। अब मोनिश को बाल सुधारगृह भेजा जााता है, तो सुचित्रा और उसका परिवार भी जोधपुर छो़ड़ देता है। मोनिश कैद से भाग निकलता है और लोहारों की बस्ती में उसका लालन-पालन एक मिर्जा यानि कि ओमपुरी करते हैं। जो उसकी नौकरी राजघराने के अस्तबल में लगवा देते हैं।
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मोनिश का नाम अब आदिल मिर्जा हो चुका है और बरसों बाद जब सुचित्रा पढ़ाई करके लौटती है। तो उसकी शादी राजघराने के करण यानि कि अनुज चौधरी से होने वाली होती है। सुचित्रा मोनिश को घुड़सवारी सीखने के दौरान पहचान लेती है और फिर कैसे येे प्यार सभी के लिए कांटा बन जाता है। पूरी फिल्म पास्ट और प्रजेंट के बीच आपको घुमाती रहती है, जिसमें कोई दम दिखाई नहीं देता है। स्क्रीनप्ले सुस्त है, डायलॉग्स थके हुए और किरदार भी प्रभावहीन हैं। बची-खुची कसर फिल्म के गाने पूरी कर देते हैं। दलेर मेहंदी की आवाज़ में गाने चीख सरीखे लगते हैं, जो फिल्म को फायदा नहीं नुकसान ज्यादा पहुंचाते हैं।
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फिल्म में अगर एक्टिंग की बात की जाए, तो दोनों ही मेन लीड हर्षवर्धन कपूर और सैयामी खेर काफी फ्लैट हैं। कई जगह तो हर्ष की आवाज़ ही आपको सुनाई ही नहीं देगी कि वो क्या कह रहे हैं? सैयामी ने कोशिश की है, मगर उन्हें और मेहनत करनी होगी। बाकी के कैरेक्टर आर्टिस्ट अनुज चौधरी भी फीके लगे हैं। ओमपुरी साहब के कैरेक्टर ने तो जैसे फ़ालतू में रखा गया है।
तकनीक और वर्डिक्ट: फिल्म 'मिर्जिया' की स्टोरी भले कमजोर हो, लेकिन इसकी तकनीक से कमाल दिखाती है। गजब की सिनेमैटोग्राफी है। बेहतरीन एडिटिंग फिल्म की जान हैं। लेकिन कहानी ही बेमजा हो, तो ये सब बेकार हैं। संगीत सुनने में अच्छा है, मगर ये फिल्म को नुकसान पहुंचाता है। ये हर्षवर्धन कपूर का कमजोर डेब्यू है, उन्होंने वही गलती कि है, जो रिफ्यूजी के साथ अभिषक बच्चन ने की थी। 17 सालों बाद गुलजार की कलम कमाल नहीं कर पाई और राकेश ओमप्रकाश मेहरा, जिन्हें हम 'रंग दे बसंती' और 'भाग मिल्खा भाग' से पहचानते हैं। वो भी इस फिल्म को भूलना चाहेंगे।