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Mrs Chatterjee Vs Norway: फ़िल्म जो दो देशों के बीच बनी है विवाद का सबब
Mrs Chatterjee Vs Norway: भारतीय कलाकार रानी मुखर्जी, नीना गुप्ता, अनिर्बान भट्टाचार्य, जिम सरभ और बाला जी गौरी ने इस फ़िल्म में अभिनय किया है।
Mrs Chatterjee Vs Norway: आप ने देश में विवाद खड़ी करने वाली व विवाद से जुड़ी फ़िल्में बनाने व उनके प्रदर्शन की वारदातें ज़रूर सुनी होगी। पठान, कश्मीर फ़ाइल्स, ब्रहमास्त्र ,लक्ष्मी, कनतैरा, लाल सिंह चड्ढा और काली फ़िल्में हाल फ़िलहाल इसी कोटि में आती हैं। पर यह पहली बार हुआ है कि कोई फ़िल्म दो देशों के बीच के रिश्तों को ख़राब करने का कारण बन रही हो। वह फ़िल्म है- ‘ मिसेज़ चटर्जी वर्सेंज नार्वे।’ भारतीय कलाकार रानी मुखर्जी, नीना गुप्ता, अनिर्बान भट्टाचार्य, जिम सरभ और बाला जी गौरी ने इस फ़िल्म में अभिनय किया है। फ़िल्म वैसे तो एक सच्ची कहानी पर आधारित है। पर यह सच्ची कहानी नार्वे के पैरेंटिंग की पोल खोलती है।लिहाज़ा नार्वे की और से नाराज़गी ज़ाहिर करना स्वाभाविक था। परंतु इस फ़िल्म के असली किरदार अभी भी जीवित है, लिहाज़ा नार्वे के दावों पर पलीता लगता है। फ़िल्म भारत व नार्वे के सांस्कृतिक अंतर पर आधारित है।
बीते सत्रह मार्च को प्रदर्शन के लिए जारी इस फ़िल्म को देश विदेश में खूब पसंद किया जा रहा है। फ़िल्म अब तक पंद्रह करोड़ रुपये से ज़्यादा का व्यापार कर चुकी है। फ़िल्म को लेकर नार्वे की नाराज़गी उसके राजदूत हैंस जैकब फ्रायडेलैंड द्वारा लिखे एक लेख में पढ़ी जा सकती है। इतना ही नहीं, हैंस ने इस लेख को अपने ट्विटर अकाउंट पर सबसे ऊपर पिन भी कर रखा है। अपने लेख में उन्होंने इस फ़िल्म की कई विसंगतियों का ज़िक्र किया है। इसी आधार पर फ़िल्म के कथानक को झूठा साबित करते हैं। पर साफ्टवेयर इंजीनियर सागरिका चक्रवर्ती जिनके जीवन पर यह फ़िल्म बनी है, वह हैंस के तर्कों को ग़लत बताती हैं। वह कहती हैं इस फ़िल्म को लेकर झूठी अफ़वाह फैलाई जा रही है।
कहानी यह है कि भारतीय मूल के एक परिवार के तक़रीबन छह साल के बच्चे के साथ माता पिता द्वारा हिंसक व्यवहार की शिकायत हुई। बच्चे को माँ बाप से अलग कर एक संस्था में डाल दिया गया। नार्वें में बच्चे के लालन पालन से जुड़े क़ानून भारत से अलग और कठोर है?नार्वे का चाइल्ड वेलफ़ेयर एक्ट वहाँ रह रहे हर बच्चे और बड़ों पर लागू होता है। नार्वे ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सहमति पत्र ‘कन्वेंशन ऑन द राइट ऑफ द चाइल्ड’ पर हस्ताक्षर कर रखा है। 53 लाख की आबादी वाले इस देश में 53 हज़ार बच्चों को चाइल्ड केयर सर्विसेज़ सुविधा दी जाती है। यहाँ बीस हज़ार भारतीय रहते हैं।
2008-2015 के बीच भारतीय महिलाओं के बीस बच्चों को देखभाल के लिए नार्वे चाइल्ड वेलफ़ेयर सर्विसेज़ ने अपने साथ ले लिया। तेरह बच्चों को अपने घर से बाहर रखना पड़ा। तेरह दिसंबर,2016 को जब यह पता चला कि पाँच साल के आर्यन की माँ बाप पिटाई करते हैं, तो उसे अधिकारियों ने अपने साथ ले लिया।आर्यन के पिता नार्वे के हैं। माँ भारतीय हैं। इस घटना के दो महीने बाद परिवार की दौड़ धूप और तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की कोशिशों के बाद बच्चा परिवार को सौंप दिया गया।
पहला बच्चा सामान्य नहीं
वेस्ट बंगाल की राजधानी कोलकाता के बाहरी क्षेत्र के रहने वाली साफ्टवेयर इंजीनियर सागरिका व भू भौतिकविद अनुरूप भट्टाचार्य नार्वें गये। जहां उनके 2008 में दोनों ने दो बच्चों-तीन साल का अभिज्ञान व एक साल का ऐश्वर्य को जन्म दिया। लेकिन बहुत जल्द उनको पता चल गया कि उनका पहला बच्चा सामान्य नहीं है। उसमें ऑटिज्म के लक्षण दिखने शुरू हो गए थे। किसी भी मां-बाप के लिए यह किसी त्रासदी से कम नहीं होता है कि उसका बच्चा इस तरह की लाइलाज बीमारी का शिकार हो जाए। दोनों बच्चे की देखभाल में लग गए। साल 2010 में सागरिका एक बार फिर गर्भवती हो गई. इस बार उसने एक बच्ची ऐश्वर्या को जन्म दिया।
दोनों बच्चों के उम्र में दो साल का अंतर था। इसलिए दोनों की एक साथ देखभाल करना उनके लिए चुनौती बन गई। इधर अभिज्ञान की बीमारी गंभीर हो गई थी। नाराज होने पर वो अक्सर अपना सिर जमीन पर पटकने लगता था।अभिज्ञान का यह व्यवहार सागरिका को परेशान कर देता था। यही वजह है कि वो गुस्से में उसे कई बार थप्पड़ भी मार देती थी। नार्वे में बच्चों को बेड पर सुलाने व चम्मच व हाथ से खिलाने का तौर तरीक़ा नहीं है। ये बातें भी वहाँ की पेरैंटिंग के खिलाफ जाती हैं। लिहाज़ा अधिकारियों ने अपने पास ले लिया। दो महीने तक रोज नार्वे के अधिकारी पूछताछ के लिए सागरिका व अनुरूप के घर नियमित आते थे। यह अनुभव दोनों के लिए बहुत हृदय विदारक रहा। सागरिका की दिक़्क़त यह है कि वह नार्वे की भाषा नहीं जानती थी। वह कहती हैं कि मेरे गोद से बच्चेको ज़बर्दस्ती खींचने को लेकर किसी ने कोई खेद नहीं जताया।
नार्वे की अदालत में सुनवाई, तत्कालीन विदेश मंत्री एम एस कृष्णा के ससंद में इस घटना के ज़िक्र ने इसे सुर्खियों दे दी।विदेश मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद नार्वे सरकार ने बच्चों की कस्टडी उनके चाचा अरुनाभास भट्टाचार्य को सौंपने का फैसला किया। साल 2012 में दोनों बच्चे अपने चाचा के साथ दिल्ली चले आए। इधर इस केस की वजह से सागरिका और उसके पति अनुरुप के रिश्तों में खटास आ गयी। जिसकी वजह से दोनों ने तलाक ले लिया। ऐसी स्थिति में सागरिका का संघर्ष एक बार फिर शुरू हो गया, क्योंकि बच्चे उसके पति के भाई के पास थे। सागरिका ने वेस्ट बंगाल के बर्दवान चाइल्ड केयर कमिटी के सामने अपने बच्चों को स्थानांतरित करने के लिए एक याचिका दायर की। उसने अपने पति के माता-पिता पर आरोप लगाया कि वे उसे अपने बच्चों से मिलने नहीं दे रहे हैं। इतना ही नहीं बच्चों की सही से देखभाल नहीं की जा रही है। लंबी सुनवाई के बाद, सागरिका को नवंबर 2012 में अपने बच्चों को पालने के लिए अनुमति दे दी गई। इस तरह लंबे संघर्ष के बाद सागरिका की जीत हो गई।
सागरिका के संघर्ष व दुख, नार्वे के इस क़ानून के चलते होने वाली परेशानियों व दोनों देशों के बीच इस क़ानून को लेकर शुरू हुए सांस्कृतिक टकराव व एक माँ कीं संवेदनाएं फ़िल्म के केंद्र में है। इस फ़िल्म के निर्माता निखिल आडवाणी हैं। नार्वे के राजदूत का बचाव पक्ष में खडे होना, उनके किसी काम नहीं आ रहा है। क्योंकि हैंस जैकब के लिए इस फ़िल्म की विशेष स्क्रीनिंग का इंतज़ाम किया गया था। पर कोई आपत्ति जताने की जगह उन्होंने फिल्म ख़त्म होने के बाद फ़िल्म से जुड़ी दो महिलाओं के साथ धमकी भरे शब्दों में बात की। यही नहीं, फ़िल्म सच्ची घटना पर आधारित है। इसके सभी पात्र जीवित हैं।
असिमा छिब्बर द्वारा निर्देशित यह फिल्म
आपको हिलाकर कर रख देगी। फिल्म एक मां की जिंदगी पर आधारित है, जो अपने बच्चों की कस्टडी पाने के लिए सभी हदों को पार कर जाती है। यह फिल्म 2022 में रिलीज हुई सागरिका चक्रवर्ती की आत्मकथा 'द जर्नी ऑफ ए मदर' पर आधारित है।