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Mughal-e-Azam: कहानी फिल्मी परदे के पीछे की 'मुग़ल-ए-आज़म' की
Mughal-e-Azam: अपने सुमधुर गीतों और बेहतरीन संगीत के चलते ही इस फिल्म के एक दर्जन गाने आज भी सुपरहिट हैं। उस दौर में फिल्म के गानों पर लाखों रुपए का खर्च आया था।
Mughal-e-Azam: हिन्दी फिल्मों के इतिहास में के. आसिफ निर्देशित मुग़ल-ए-आज़म एक ऐसी फिल्म है जो हिन्दी फिल्मों के 100 साल से अधिक के पुराने इतिहास में आज भी मील का पत्थर है। जिसका जिक्र किए बिना फिल्मी चर्चा अधूरी है। अपने सुमधुर गीतों और बेहतरीन संगीत के चलते ही इस फिल्म के एक दर्जन गाने आज भी सुपरहिट हैं। उस दौर में फिल्म के गानों पर लाखों रुपए का खर्च आया था। भव्य फव्वारों और महलों पर फिल्माए गए ऐसे गीतों ने दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचने का काम किया। लता मंगेशकर, मो रफी, शमशाद बेगम और बडे़ गुलाम अली ने इस फिल्म के गीतों को बड़ी ही शिद्दत से अपने स्वर दिए।
पांच अगस्त, 1960 को रिलीज हुई मुग़ल-ए-आज़म फिल्म ने बाक्स आफिस पर सफलता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए थे। शोले फिल्म के आने के पहले तक मुग़ल-ए-आज़म का रिकार्ड कायम था। उस दौर में इस फिल्म को एक राष्ट्रीय और तीन फिल्मफेयर पुरस्कारों से नवाजा गया था। हालांकि फिल्म की कहानी असली नहीं थी और जिसे लेकर इतिहासकारों के मतभेद भी सामने आए। फिल्म में ऐतहासिक अशुद्धियों के बावजूद अपने जबरदस्त कथानक के चलते फिल्म हिट हुई। बाद में बड़ी व्यावसायिक सफलता को भुनाने के लिए वर्ष 2004 में इसे रंगीन किया गया।
फिल्म को रंगीन बनाने में साफ्टवेयर इंजीनियरों को 18 महीने से अधिक का वक्त लगा। भारतीय फिल्म इतिहास में यह पहली ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म थी, जिसे रंगीन किया गया। भले ही असली प्रीमियर में अभिनय सम्राट दिलीप कुमार शामिल न हो पाए हों पर फिल्म के रंगीन होने पर जब मुम्बई के इरोज सिनेमाघर में इसे फिर से रिलीज किया गया तो दिलीप साहब वहां मौजूद थे।
निर्माण में लगा 14 सालों का वक्त
निर्माण में लगे 14 सालों के वक्त के बाद जब फिल्म रिलीज हुई तो बम्बई के मराठा मंदिर के बाहर एक लाख दर्शकों की भीड़ थी। यहां तक कि दर्शक टिकट के लिए चार पांच दिन पहले से ही घर से भोजन लेकर टिकट विंडो के बाहर जमा हुए थें। देश के 150 सिनेमाघरों में एक साथ रिलीज हुई मुगले आजम उस दौर में डेढ़ करोड़ रुपए से बनकर तैयार हुई थी । जिसकी आज की कीमत लगभग 60 करोड़ रुपए कही जाएगी।
बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस फिल्म को अभिनेत्री जीनत अमान के पिता अमानुल्लाह खान ने लिखा था। जिसमें उनका सहयोग कमाल अमरोही, वजाहत मिर्जा और अहसान रिजवी ने किया था। यही नहीं, मुगले आजम की शूटिंग आजादी के पहले यानी 1946 के आसपास शुरू हो चुकी थी । लेकिन अचानक भड़के दंगों के कारण फाइनेंसर सिराज अली पाकिस्तान चले गए । जिसके कारण शूटिंग को पैसे के अभाव में रोकना पड़ा। बाद में टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री के परिवार के लोग फाइनेंसर बनने के लिए तैयार हुए।
गाना ‘‘प्यार किया तो डरना क्या’’ 105 बार लिखा गया
दिलचस्प बात यह है कि फिल्म का गाना ‘‘प्यार किया तो डरना क्या’’ जब रिकार्ड हुआ तो संगीतकार नौशाद के मन मुताबिक लता इस गीत को स्वरबद्ध नहीं कर पा रही थीं, जिसके कारण गीत को 105 बार लिखा गया। यही नहीं, उस दौर में अत्याधुनिक रिकार्डिग रूम न होने के कारण और गाने में गूंज पैदा करने के लिए लता मंगेशकर को एक अंतरा बाथरूम में गाना पड़ा। फिल्म के निर्देशक के आसिफ ने शीशमहल की तर्ज पर भव्य सेट मोहन स्टूडियो मुम्बई में तैयार करवाया था। इसकी शूटिंग पर उस दौर में 10 लाख रुपए खर्च हुए थे। इसे बनाने मे दो वर्ष लगे थें । निर्माण के लिए कांच बेल्जियम से मंगाया गया था।
एक बात और है कि फिल्म की जब योजना बनी तो पहले सलीम की भूमिका के लिए अभिनेता चंद्रमोहन और अनारकली की भूमिका के लिए नरगिस और अकबर की भूमिका के लिए डीके सप्रू का चयन किया गया था। पर चंद्रमोहन की अचानक हुई मौत के कारण पूरी कास्ट को बदल दिया गया। फिर दिलीप कुमार और मधुबाला को लिया गया। यह भी कहा जाता है कि अभिनेत्री नरगिस ने दिलीप कुमार के साथ काम करने से साफ मना कर दिया था। इसके पीछे का कारण राजकपूर और नरगिस की मां जद्दनबाई को कहा गया। दिलीप कुमार और के आसिफ की काफी गहरी दोस्ती थी। उन्होंने जानबूझकर कुछ इंटीमेट सीन डालने की योजना बनाई जिसकी खबर नरगिस की मां को हो गयी तो उन्होंने इस फिल्म के लिए के आसिफ को साफ मना कर दिया।
कपड़ों को दिल्ली में सिलवाया जाता था
सबसे महंगी फिल्मों में शुमार मुगले आजम की शूटिंग में इस्तेमाल किए गए कपड़ों को दिल्ली में सिलवाया जाता था। इसके बाद सूरत में इनकी नक़्काशी की जाती थी फिर हैदराबाद में ज्वैलरी तैयारी की जाती थी। जूतों के लिए स्पेशल आगरा में आर्डर दिया गया था। एक बात और सलीम और अकबर के बीच हुए युद्ध के फिल्मांकन के लिए भारतीय सेना के जवानों की मदद लेकर जयपुर में इसकी शूटिंग की गयी। जिसमें 2000 ऊंटों 400 घोड़ों और 5000 सैनिकों के साथ इन दृश्यों को फिल्माया गया।
फिल्म के 60 साल पूरे होने पर के आसिफ के बेटे अकबर आसिफ ने इस फिल्म की स्क्रिप्ट को आस्कर लाइब्रेरी को सौंप दिया है, जो हिन्दी अंग्रेजी और रोमन में है। फिल्म पर एक किताब दास्तान ए मुगले आजम भी लिखी गयी है। अकबर आसिफ के कहने पर लंदन में प्रख्यात पेंटर एम एफ हुसैन ने पेंटिग्स की एक सीरीज भी तैयार की थी।