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ओपी नैयर: जिनके संगीत में घोड़े की टापों और तालियोें की गूंज झलकती थी
फिल्मी दुनिया में ओपी नैयर एक ऐसे संगीतकार हुए हैं जिनके गीतों में घोडो की टाप और तालियोें की गूंज की पूरी झलक दिखती थी। ओ पी नैयर का संगीतबद्ध किया दिलीप कुमार की फिल्म नया दौर का गाना ‘ये देश है वीर जवानों का’ गीत हिंदी सिनेमा का कालजयी गीत है।
लखनऊ: फिल्मी दुनिया में ओपी नैयर एक ऐसे संगीतकार हुए हैं जिनके गीतों में घोडो की टाप और तालियोें की गूंज की पूरी झलक दिखती थी। ओ पी नैयर का संगीतबद्ध किया दिलीप कुमार की फिल्म नया दौर का गाना ‘ये देश है वीर जवानों का’ गीत हिंदी सिनेमा का कालजयी गीत है। यह गाना आज छह दशक बाद भी उत्तर भारत में होने वाली तमाम शादियों में बजाया जाता है।
बचपन से ही थे विद्रोही स्वभाव के
उनका पूरा नाम ओंकार प्रसाद नैयर था और वह अपने नाम के संक्षिप्त रूप ओ पी नैयर से लोकप्रिय हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। आज ही के दिन उनका जन्म लाहौर में हुआ था। बचपन से ही वह विद्रोही स्वभाव के थें और हर गलत बात का विरोध किया करते थें। इसलिए वह घर छोडकर चले गए थें। वह पहले अभिनेता बनना चाहते थें। लेकिन बाद में संगीत के प्रति दिलचस्पी बढ़ गई। नैयर साहब अपने विशेष प्रकार के संगीत के कारण जाने जाते थें। जब देश का विभाजन हुआ तो उन्हें सब कुछ छोड़ कर अमृतसर आना पड़ा। लेकिन उनका संगीत का सफर रुका नहीं बल्कि उन्होंने दिल्ली के आकाशवाणी केंद्र में नौकरी करना शुरू कर दिया और अपने फिर संगीत के करियर को एक बार संवारने में लग गए।
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फिल्म अंदाज अपना अपना के एक गीत में घोड़ों की टापों के साथ संगत करती गाने की धुन सुनकर लोगों को लगा कि फिल्म के संगीतकार ओपी नैयर का है। पर बाद में पता चला कि संगीत तुषार भाटिया का है जिन्होंने नैयर की शैली की नकल इस गाने में की। पचास और साठ के दशक में आर-पार , नया दौर, तुमसा नहीं देखा और कश्मीर की कली जैसी फिल्मों में नायाब संगीत देने वाले ओ. पी. नैयर ने अपना संगीत १९४९ में कनीज फिल्म में पार्श्व संगीत के साथ दिया। इसके बाद उन्होंने आसमान (1952 ) को संगीत दिया। गुरुदत्त की आरपार (1954 ) उनकी पहली हिट फिल्म थी।
इस फिल्म से अपने संगीत को एक नयी ऊंचाईयों पर ले गए
इसके बाद गुरुदत्त के साथ इनकी बनी जोड़ी ने मिस्टर एंड मिसेज 55 तथा सी आई डी जैसी फिल्में दीं। नैयर ने मेरे सनम में अपने संगीत को एक नयी ऊंचाईयों पर ले गए जब उन्होंने जाईये आप कहाँ जायेंगे तथा पुकारता चला हूं मैं जैसे गाने दिये। उन्होंने गीता दत्त, आशा भोंसले तथा मोहम्मद रफी को लेकर उन्होंने कई गीतों की रचना की। नैयर अपने जमाने के सबसे महंगे संगीतकार थे। वह सिर्फ एक ही फिल्म के लिए एक लाख रुपये फीस के तौर पर लेते थे। जोकि उस जमाने में बहुत ही बड़ी रकम थी।
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उनके हिट गीतों में बाबूजी धीरे चलना प्यार में जरा संभलना, ये लो मैं हारी पिया, कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना, लेके पहला पहला प्यार, ये देश है वीर जवानों का, उड़े जब जब जुल्फें तेरी, रेशमी सलवार कुर्ता जाली का, इक परदेसी मेरा दिल ले गया, मेरा नाम चिन चिन चू, दीवाना हुआ बादल, इशारों इशारों में दिल लेने वाले ये चांद-सा रोशन चेहरा, चल अकेला, ये है रेशमी जुल्फों का अंधेरा ना घबराइये, आपके हसीन रूख़ पे आज नया नूर है, मेरा बाबू छैल छबीला ,दमादम मस्त कलंदर मुख्य रूप से शामिल हैं।
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उनके समकालीन संगीतकारों में नौशाद साहब उनकी तारीफ करते नहीं थकते थे। नौशाद साहब का मानना था कि ओपी नैयर ने बतौर संगीतकार जो भी काम किया वो लाजवाब था।संगीतकार ओपी नैयर अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर गुमनामी की गहराई में भी चले गए। 28 जनवरी 2007 को 81 वर्ष की आयु में ओपी नैयर ने अंतिम सांस ली।