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The Sabarmati Report: पीड़ितों का दर्द या राजनीतिक स्टंट? क्या कहती है फ़िल्म "द साबरमती रिपोर्ट" की कहानी?
The Sabarmati Report: फिल्म की कहानी गोधरा दंगों से है जुड़ी, यूपी में टैक्स फ्री हो चुकी है फिल्म
पिछले कई दिनों से खबरों और विवादों में रहने के बाद गोधरा कांड पर आधारित निर्देशक धीरज सरना की 'द साबरमती रिपोर्ट' आखिरकार कई भाजपा शासित राज्यों के बाद उत्तर प्रदेश में भी टैक्स फ्री हो गई। यह गोधरा में साल 2002 में हुई घटना में मारे गए 59 लोगों को न्याय दिलाने की बात तो करती है, मगर निर्देशक धीरज सरना की कमजोर कहानी और स्क्रीनप्ले के कारण फिल्म में ऐसा कुछ नया नहीं है, जो पहले से मीडिया और अखबारों में न हो। यही वजह है कि गोधरा कांड जैसा मुद्दा पर्दे पर संवेदनशीलता नहीं जगा पाता।
गुरुवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस फिल्म को देखने के लिए लखनऊ स्थित प्लासियो मॉल में पहुंचे उनके साथ कई बड़े मंत्रियों सहित भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता मौजूद थे। भाजपा शासित राज्यों में इस फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया गया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि यह फिल्म भारतीय जनता पार्टी के तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं को खूब पसंद आ रही है।
इस फिल्म में हिंदी और अंग्रेजी के दो पत्रकारों के बीच की लड़ाई के बीच अयोध्या के पवित्र राम मंदिर पर फोकस करते हुए निशाने पर विशेष समुदाय को रखा गया है।
निर्देशक धीरज सरना टेलीविजन जगत के निर्देशक रहे हैं और कुछ दृश्यों को छोड़ दिया जाए, तो वे कहानी को एक धागे में पिरोने में सफल नहीं रहे। इंटरवल तक कहानी मुद्दे पर पहुंच ही नहीं पाती। जिस ढंग से फिल्म की शुरुआत होती है, दर्शक को लगता है कि कहानी बढ़ने के साथ-साथ कुछ सनसनीखेज खुलासे होंगे और दर्शक सच को जान पाएंगे, लेकिन फिल्म में ऐसा कुछ भी नया नहीं मिलता, जो लोगों को पहले से पता न हो।
फिल्म की शुरुआत में दो नेताओं को साजिश रचते हुए दिखाया जाता है जो चुनाव जीतना चाहते हैं और तत्कालीन सरकार को गिराना चाहते हैं जिसके लिए वह दंगा करवाने की साजिश रचते हैं। इस फिल्म में गोधरा कांड की चर्चा कम और तत्कालीन गुजरात सरकार का प्रचार ज्यादा नजर आता है। गोधरा कांड की घटना के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरों दिखाते हुए कहा जाता है कि ये नए युग की शुरुआत है। फिल्म में यह भी दिखाया जाता है कि गुजरात में किस तरह से विकास हुआ, किस तरह से वहां पर नए-नए उद्योग लगे।
फिल्म की शुरुआत अयोध्या से होती है और फिल्म के अंत में अयोध्या के पवित्र राम मंदिर को दिखाया जाता है। यूं कह लें कि यह फिल्म पूरी तरह से अयोध्या के राम मंदिर के इर्द-गिर्द घूमती हुई नजर आती है लेकिन यहीं पर कहानी भटक जाती है। फिल्म गोधरा कांड के समय के अंग्रेजी पत्रकारिता पर आरोप लगाते हुए नजर आती है। अंग्रेजी पत्रकारिता को एक विलन के रूप में दिखाया जाता है तो वहीं पर हिंदी पत्रकार को एक पीड़ित के रूप में।
फिल्म की कहानी का केंद्र एक बड़े न्यूज चैनल के लिए काम करने वाला एंटरटेनमेंट हिंदी जर्नलिस्ट समर कुमार है जिसकी भूमिका कलाकार विक्रांत मैसी ने निभाई है। उसे अंग्रेजी के पत्रकार हेय दृष्टि से देखते हैं, वहीं उसी मीडिया हाउस में तेजतर्रार और फेमस न्यूज एंकर मनिका राजपुरोहित है जिसकी भूमिका रिद्धि डोगरा ने निभाया है, जिसकी फर्राटेदार अंग्रेजी ही नहीं बल्कि न्यूज एंकरिंग के स्टाइल का इंडस्ट्री में काफी दबदबा है। मनिका और समर दोनों ही फरवरी 2002 में हुए गोधरा कांड को कवर करने गुजरात पहुंचते हैं। रिपोर्टिंग करते हुए समर के हाथ में कुछ सबूत लगते हैं, जो गोधरा कांड की सच्चाई को सामने ला सकते हैं, मगर मनिका अपने चैनल के बॉसेज के साथ मिलकर एक झूठी रिपोर्ट दिखाती है। समर इसका विरोध करता है और अपना फुटेज वापस मांगने की बात करता है, तो उस पर चोरी का इल्जाम लगाकर उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है।
नौकरी और गर्लफ्रेंड दोनों को ही खो चुका समर शराब के नशे में डूब जाता है, मगर पांच साल बाद नानावटी कमीशन की रिपोर्ट के बाद मनिका अपनी पोल खुलने के डर से चैनल की नई रिपोर्टर अमृता को गोधरा भेजती है, ताकि वो अपनी एक नई कहानी गढ़ सके। रिपोर्टर अमृता की भूमिका कलाकार राशि खन्ना ने निभाई है। मगर यहां अमृता के हाथ समर की वो पुरानी फुटेज लग जाती है, जिसे चैनल ने दबा दिया था। अमृता समर को ढूंढकर गोधरा कांड की सच्चाई की तह में जाने का फैसला करती है? लेकिन क्या वो इसमें कामयाब होती है? क्या शराबी समर उसका साथ देता है? ये आप फिल्म देखने के बाद ही जान पाएंगे।
फिल्म के एक दृश्य में दिखाया जाता है कि किस तरह से एक मुस्लिम शख्स अपनी राजनीति को चमकाने के लिए पूरे मुस्लिम समाज का इस्तेमाल करता है और दंगा फैलता है साथ ही फिल्म के एक दृश्य में दिखाया जाता है कि समर और अमृता एक महिला से मिलने के लिए मुस्लिम आबादी के बीच में जाते हैं उसी समय 2007 का वर्ल्ड कप मैच का फाइनल टीवी पर चल रहा होता है फाइनल में भारत और पाकिस्तान का मुकाबला होता है सभी लोग बैठकर मैच देख रहे होते हैं तभी पाकिस्तान के प्लेयर की तरफ से अच्छा प्रदर्शन किया जाता है जिस पर सभी ताली बजाने लगते हैं तो अमृता समर से पूछती है कि यह लोग पाकिस्तान के खिलाड़ी के लिए ताली क्यों बजा रहे हैं तो समर कहता है यहां पर ऐसा ही होता है लेकिन इस फिल्म के एक दृश्य में यह भी दिखाया गया है कि भारत के जीतने पर पूरी मुस्लिम आबादी पटाखे फोड़ती है और खुशियां मानती है। जब फिल्म के कहानी का अंत होता है तो एक हिंदी रिपोर्टर एंकरिंग कर रहा होता है और उसके पीछे भक्ति गाने की ट्यून बज रही होती है।
द कश्मीर फाइल ओर द केरल स्टोरी के बाद द साबरमती रिपोर्ट को लेकर भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है।