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'वन नेशन वन इलेक्शन' पर पीएम मोदी को मिला इस 'सुपरस्टार' का साथ
नई दिल्ली: देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर एक फिर से बहस ने जोर पकड़ लिया है। इसी बीच फिल्म एक्टर रजनीकांत का महत्वपूर्ण बयान सामने आया है। उन्होंने एक देश, एक चुनाव का समर्थन किया है।
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ये है पूरा मामला
अभिनेता से नेता बने रजनीकांत रविवार को चेन्नई में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने ‘एक देश, एक चुनाव’ का समर्थन करते हुए कहा कि इस तरीके से चुनाव कराने से देश का धन और समय दोनों की बचत होगी।
एक देश, एक चुनाव के मुद्दे पर रजनीकांत का समर्थन मिलने के बाद से बीजेपी के नेताओं ने ख़ुशी जाहिर की। वहीं विपक्ष की ओर से इस पर तीखी प्रतिक्रिया आना शुरू हो गई है।
बता दें कि साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत राजनीति में कदम रखने के लिए तैयार हैं। कुछ समय पहले ही उन्होंने घोषणा की थी कि उनकी पार्टी 2021 में तमिलनाडु में विधानसभा की सभी 234 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
डीएमके ने की बयान की निंदा
डीएमके ने 'एक देश एक चुनाव' पर रजनीकांत के बयान की निंदा की है। डीएमके के नेता ए सरवनान ने कहा, 'हम इस फार्मूले का विरोध करते हैं। यह संघीय ढांचे के खिलाफ है।
इन पार्टियों का पहले ही मिल चुका है समर्थन
इससे पहले देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव करवाने को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को समाजवादी पार्टी (एसपी), जेडीयू और तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) का साथ मिला है।
9 दल विरोध में खड़े
पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं इस मुद्दे पर तमाम राजनीतिक दल दो हिस्सों में बंट गए हैं और अभी तक इस विषय पर सहमति नहीं बन सकी है। देश के 4 राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन किया तो नौ दल इसके खिलाफ खड़े हैं। विधि आयोग ने इस विषय पर चर्चा के लिए परामर्श प्रक्रिया की एक बैठक भी बुलाई थी लेकिन इसमें दोनों मुख्य दल भाजपा और कांग्रेस ने हिस्सा ही नहीं लिया था। आयोग ने इस मुद्दे पर विचार रखने के लिए 7 राष्ट्रीय और 59 क्षेत्रीय दलों को न्यौता दिया था।
आम सहमति के बिना ऐसा कर पाना नहीं होगा आसान
'एक देश-एक चुनाव' के फॉम्युले पर अमल करने के लिए अगले लोकसभा चुनाव के साथ 20 राज्यों के विधानसभा चुनाव करवाने होंगे। इनमें 10 राज्यों का कार्यकाल तो 2019 में ही पूरा हो रहा है, लेकिन बाकी दस राज्यों के आगे के कार्यकाल का समय पूरा नहीं हो रहा। कुछ राज्य सरकारों को इस फॉम्युले पर दो साल पहले ही अलविदा करना पड़ सकता है। हालांकि, इसके लिए संविधान संशोधन करना होगा, जो आम सहमति के बिना आसान नहीं होगा।