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BIRTH ANNI SPECIAL:राजकपूर के सफेद साड़ी प्रेम ने तोड़ा था इस एक्टर का दिल

suman
Published on: 14 Dec 2018 9:17 AM IST
BIRTH ANNI SPECIAL:राजकपूर के सफेद साड़ी प्रेम ने तोड़ा था इस एक्टर का दिल
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जयपुर :बॉलीवुड के 'शो मैन' रहे एक्टर-डायरेक्टर राज कपूर की जिंदगी में तमाम- उतार चढ़ाव आए।इसके के बाद भी राज कपूर एक ऐसा नाम जिन्होंने हिंदी सिनेमा को एक अलग पहचान दी। राज कपूर ने जिस परिवार में जन्म लिया, उसका बॉलीवुड में बड़ा नाम था, लेकिन एक सच यह भी है कि राज कपूर ने अपने करियर में जिन ऊंचाइयों को छुआ, उसके पीछे सिर्फ उनकी मेहनत और काबिलियत थी। राज कपूर का जन्म 14 दिसंबर, 1924 को पेशावर (पाकिस्तान) में हुआ था।

स्पॉटबॉय का काम राज कपूर ने 17 साल की उम्र में 'रंजीत मूवीकॉम' और 'बॉम्बे टॉकीज' फिल्म प्रोडक्शन कंपनी में स्पॉटबॉय का काम शुरू किया। पृथ्वी राज कपूर जैसी हस्ती के घर जन्म लेने के बाद भी राज कपूर ने बॉलीवुड में कड़ा संघर्ष किया। उनके लिए शुरुआत इतनी आसान नहीं थे।राज कपूर के पिता पृथ्‍वीराज कपूर ने उन्‍हें सफलता का मंत्र दिया था कि राजू नीचे से शुरूआत करोगे तो उपर तक जाओगे. पिता की इस बात को उन्‍होंने गांठ बांध लिया और महज 17 साल की उम्र में रंजीत मूवीकॉम और बॉम्बे टॉकीज फिल्म प्रोडक्शन कंपनी में स्पॉटब्वॉय का काम शुरू किया.कहते हैंराज कपूर के फिल्मी करियर की शुरुआत एक चांटे के साथ हुई थी।

विरासत में मिला एक्टिंग निर्देशक केदार शर्मा की एक फिल्म में 'क्लैपर बॉय' के तौर पर काम करते हुए राज कपूर ने एक बार इतनी जोर से क्लैप किया कि नायक की नकली दाड़ी क्लैप में फंसकर बाहर आ गई। इस पर केदार शर्मा ने गुस्से में आकर राज कपूर को जोरदार चांटा रसीद कर दिया था. आगे चलकर केदार ने ही अपनी फिल्म 'नीलकमल' में राजकपूर को बतौर नायक लिया।

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राजकपूर को एक्टिंग तो पिता से विरासत में मिली थी राज कपूर ने अभिनय का सफर पृथ्वीराज थियेटर के मंच से ही शुरू किया था।साल 1935 में मात्र 10 साल की उम्र में फिल्म 'इंकलाब' में छोटा रोल किया. उसके 12 साल बाद राज कपूर ने मशहूर अदाकारा मधुबाला के साथ फिल्म 'नीलकमल' में लीड रोल किया। राज कपूर का पूरा नाम 'रणबीर राज कपूर' था. रणबीर अब उनके पोते यानी ऋषि-नीतू कपूर के बेटे का नाम है। राज कपूर की स्कूली शिक्षा देहरादून में हुई. हालांकि पढ़ाई में उनका मन कभी नहीं लगा और 10वीं क्लास की पढ़ाई पूरी होने से पहले ही उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था।

सफेद साड़ी एक दिलचस्प बात यह भी है कि उन्हें सफेद साड़ी बहुत पसंद थी। जब छोटे थे तब उन्होंने सफेद साड़ी में एक महिला को देखा था, जिस पर उनका दिल आ गया था. उस घटना के बाद से राज कपूर का सफेद साड़ी प्रति इतना मोह हो गया कि उन्होंने अपनी फिल्मों में काम करने वाली हीरोइनों- नरगिस, पद्मिनी, वैजयंतीमाला, जीनत अमान और मंदाकिनी को सफेद साड़ी पहनाई. यहां तक कि घर में उनकी पत्नी कृष्णा भी हमेशा सफेद साड़ी ही पहना करती थीं। राजकपूर की फिल्में असल जीवन और समाज के ज्वलंत मुद्दों पर होती थी। सिनेमा ही राजकपूर की जिंदगी थी और और असल जीवन को भी वह फिल्म की कहानी कि तरह ही जीते थे।

देव आनंद अपनी किताब रोमांसिंग विद लाइफ में लिखते हैं कि उन्हें जीनत अमान से प्यार हो गया था और वह सही मौका देख रहे थे अपने प्यार के इजहार का। इसी बीच राज कपूर, जीनत अमान और देव आनंद एक जगह बैठे थे, तब राज कपूर ने नशे कि हालत में जीनत से कहा कि तुमने अपना वादा तोड़ दिया। तुमने कहा था कि तुम मेरे लिए हमेशा सफेद साड़ी पहनोगी, जिसके बाद देवानंद का दिल टूट गया और उन्होंने जीनत से अपने प्यार का इजहार नहीं किया।

हमेशा दिल की सुनते राज कपूर हमेशा दिल की सुनते थे और दिल ने ही उनको दगा दे दिया। कहा भी जाता है कि एक कलाकार को कुछ रचनात्मक करने के लिए उस किरदार के साथ जीना पड़ता है। राज कपूर के बारे में कहा जाता है कि अपनी फिल्मों कि एक्ट्रेसेस के प्यार में वह पड़ जाते थे। वैसे तो उनका कई एक्ट्रेसेस के साथ प्यार परवान चढ़ा, लेकिन नरगिस के साथ उनकी लव स्टोरी किसी फिल्म कि कहानी से कम नहीं थी।

फिल्म अवारा में उस जमाने में राजकपूर ने नरगिस को बिकनी पहनाया था। पूरी फिल्म कि बजट 12 करोड़ थी, लेकिन एक गाने पर उन्होंने 8 करोड़ खर्च कर दिये। पैसे कम पड़ने पर नरगिस ने अपने गहने बेच दिए। राजकपूर को भले ही नरगिस से प्यार था, लेकिन वह शादी नहीं, नरगिस से नहीं करना चाहते थे। दोनों के रिश्ते के खिलाफ नरगिस की मां जद्दनबाई और राजकपूर के पिता पृथ्वी राज कपूर थे। दूसरी बात यह कि राज कपूर कि शादी भी हो गई थी और वह अपनी पत्नी कृष्णा को नहीं छोड़ते। नरगिस किसी भी हाल में राजकपूर से शादी करना चाहती थी, पर ऐसा नहीं हो पाया।बाद में दोनों के रास्ते अलग हो गए।

भारत सरकार ने राज कपूर को मनोरंजन जगत में उनके अपूर्व योगदान के लिए 1971 में 'पद्मभूषण' से सम्मनित किया था. साल 1987 में उन्हें सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' भी दिया गया. 1960 में फिल्म 'अनाड़ी' और 1962 में 'जिस देश में गंगा बहती है' के लिए बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर पुरस्कार भी राज कपूर ने जीता. इसके अलावा 1965 में 'संगम', 1970 में 'मेरा नाम जोकर' और 1983 में 'प्रेम रोग' के लिए उन्हें बेस्ट डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला था।'शोमैन' राज कपूर को एक अवार्ड समारोह में दिल का दौरा पड़ा था, जिसके बाद वह एक महीने तक अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूलते रहे. आखिरकार 2 जून 1988 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।



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