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B'ANNIV: एक थप्पड़ ने बना दिया राज कपूर को फिल्म इंडस्ट्री का शोमैन
लखनऊ: इक दिन बिक जाेगी मिट्टी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारो तेरे बोल.... राज कपूर पर उनकी ही फिल्म की ये पंक्तियां बिलकुल सटीक बैठती है। फिल्म इंडस्ट्री के शोमैन एक्टर-डायरेक्टर राज कपूर का जन्म 14 दिसंबर 1924 को पेशावर (पाकिस्तान) में हुआ था। गालों पर थप्पड़ से फिल्मी करियर शुरु करने वाले राज कपूर पूरा नाम रणबीर राज कपूर था। राजकपूर के पोते यानी ऋषि-नीतू के बेटे का नाम नाम रणबीर है। उनकी पढ़ाई कोलकाता में हुई थी। उनका मन कभी पढाई में नहीं लगता था इसलिए उन्होंने पढाई बीच में ही छोड दी. वे ऐसे मनमौजी विद्यार्थी थे जिन्होंने अपनी कॉपी-किताबें बेचकर खूब पकौडे और चाट खाए। राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर ने उन्हें सफलता का मंत्र दिया था कि राजू नीचे से शुरूआत करोगे तो ऊपर तक जाओगे। पिता की इस बात को उन्होंने गांठ बांध लिया और महज 17 साल की उम्र में रंजीत मूवीकॉम और बॉम्बे टॉकीज फिल्म प्रोडक्शन कंपनी में स्पॉटब्वॉय का काम शुरू किया।
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रगों में था एक्टिंग
उस वक्त के नामचीन डायरेक्टर केदार शर्मा की एक फिल्म में राज कपूर ने क्लैप ब्वॉय का काम किया और उसी दरम्यान किसी गलती पर केदार शर्मा ने उनको चांटा रसीद कर दिया। आगे चलकर केदार शर्मा ने ही अपनी फिल्म 'नीलकमल' में राजकपूर को एक्टर के रुप में लिया। राजकपूर को एक्टिंग तो पिता से विरासत में मिली थी। राजकपूर पिता के साथ रंगमच पर भी काम किया करते थे। साल 1960 में फिल्म ‘अनाड़ी’ और 1962 में ‘जिस देश में गंगा बहती है’ के लिए सर्वश्रेष्ठ एक्टर का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था।
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आवारा अंदाज में एक्टिंग का लोहा मनवाया
इसके अलावा साल 1965 में संगम, 1970 में मेरा नाम जोकर और 1983 में प्रेम रोग के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था।राज कपूर ने अपनी एक्टिंग से लोगों को अपना दीवाना बनाया है। उनकी मशहूर फिल्मों में 'बरसात', 'जिस देश में गंगा बहती है', 'तीसरी कसम', 'जागते रहो', 'संगम',‘मेरा नाम जोकर’, श्री 420, आवारा, ‘बेवफा’, ‘आशियाना’, ‘अंबर’, अनहोनी, पापी, आह, धुन, बूट पॉलिश ऐसी फिल्में है जो आज भी दर्शकों के जहन में बसी हुई है। भारत सरकार ने राज कपूर को मनोरंजन जगत में उनके अपूर्व योगदान के लिए 1971 में पद्मभूषण से विभूषित किया था। उन्हें सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। कहा जाता है कि इस मारोह के दौरान उन्हे दिल का दौरा पड़ा । इलाज के लिए एम्स ले जाया गया था। एक महीने बाद उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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सफेद रंग से प्यार जिसका असर दिखा फिल्मों पर
राज कपूर के बारे में कहा जाता है कि बचपन में उन्होंने एक सफेद साड़ी पहने हुई एक औरत को देखा और उस पर मोहित हो गए थे। उसके बाद से सफेद साड़ी से उनका प्यार इतना गहरा गया कि उनकी तमाम फिल्मों की एक्ट्रेसेस (नर्गिस, पद्मिनी, वैजयंतीमाला, जीनत अमान, पद्मिनी कोल्हापुरे, मंदाकिनी) फिल्मों में सफेद साड़ी पहने नजर आईं। यहां तक कि घर में उनकी पत्नी कृष्णा हमेशा सफेद साड़ी ही पहना करती थीं।
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एक परिवार में दो दादा साहेब फालके अवॉर्ड
फिल्म इंडस्ट्री में राज कपूर का योगदान उन तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उनके बाद परिवार की 4 पीढ़ियां लगातार बॉलीवुड में सक्रिय रही हैं और मनोरंजन के क्षेत्र में योगदान दे रही हैं। कपूर परिवार एक ऐसा परिवार है, जिसमें दादा साहेब फालके पुरस्कार दो बार आया। साल 1972 में राज के पिता पृथ्वीराज कपूर को भी यह सर्वोच्च पुरस्कार मिला था।