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Rajendra Kumar: जुबली कुमार के जन्मदिन पर याद आती है उनकी अधूरी प्रेम कहानी
Rajendra Kumar Birth Anniversary: राजेंद्र कुमार का मूल नाम राजेंद्र कुमार तूली था लेकिन रुपहले पर्दे पर केवल राजेंद्र कुमार हिट रहा। 1950 में फिल्म जोगन से अपने करियर का आरंभ करने वाले इस अभिनेता ने चार दशक तक फिल्मी दुनिया पर राज किया।
Rajendra Kumar Birth Anniversary: हिन्दी सिनेमा के जुबली कुमार यानी राजेंद्र कुमार (Rajendra Kumar) की आज जयंती है। उस दौर में सुपर स्टार या महानायक का खिताब होता तो राजेंद्र कुमार को जरूर मिलता। जिसकी एक साथ छह छह फिल्में सिल्वर जुबली मनाती थीं। वह 1960 से 70 के दशक में सफलतम अभिनेताओं में से एक थे। उनका मूल नाम राजेंद्र कुमार तूली था लेकिन रुपहले पर्दे पर केवल राजेंद्र कुमार हिट रहा। 1950 में फिल्म जोगन से अपने करियर का आरंभ करने वाले इस अभिनेता ने चार दशक तक फिल्मी दुनिया पर राज किया। भारत सरकार ने इन्हें 1969 में पद्मश्री से अलंकृत किया।
राजेंद्र कुमार की व्यक्तिगत जिंदगी की बात करें तो इनका परिवार पंजाब में रहता था। इनका जन्म 20 जुलाई 1927 को सियालकोट में एक पंजाबी परिवार में हुआ। राजेंद्र कुमार के दादा एक सफल सैन्य ठेकेदार थे और उनके पिता का कराची, सिंध में एक कपड़ा व्यवसाय करते थे।
सारी जमीन-संपत्ति छोड़कर भारत आए
देश के विभाजन के दौरान इनके परिवार को सारी जमीन और संपत्ति को छोड़कर भारत आना पड़ा। राजेंद्रकुमार की शुरुआती जिंदगी की कहानी काफी रोचक है। उनका चयन दरोगा के रूप में हो गया था लेकिन ट्रेनिंग पर जाने से पहले इनके एक मित्र ने इन्हें फिल्मी दुनिया के सब्जबाग दिखा कर बंबई बुला लिया। वास्तविकता पता चलने पर इन्होंने मुंबई में ही जमने का फैसला किया। उन्होंने निर्देशक एच. एस. रवैल के साथ सहायक के रूप में काम किया। करीब पांच साल तक उन्होंने रवैल के साथ पतंग, सगई, पॉकेटमार जैसी फिल्मों में बतौर असिस्टेंट काम किया।
उन्होंने 1949 में फिल्म पतंग में एक कैमियो के साथ अपनी फिल्म की शुरुआत की, लेकिन अगले ही साल 1950 में किदार शर्मा की फिल्म जोगन में दिलीप कुमार और नरगिस के साथ एक छोटी भूमिका मिल गई। यह निर्माता देवेंद्र गोयल थे जिन्होंने कुमार को जोगन में देखा और उन्हें 1955 में वचन में एक ब्रेक दिया।
'ए स्टार इज बॉर्न' का दिया गया शीर्षक
कुमार को फिल्म के लिए केवल पंद्रह सौ रुपये का भुगतान किया गया था, हालांकि, यह फिल्म हिट रही और कुमार की पहली रजत जयंती फिल्म थी और उन्हें एक शीर्षक दिया गया - 'ए स्टार इज बॉर्न'। उन्हें 1957 में महबूब खान की ब्लॉकबस्टर महाकाव्य फिल्म मदर इंडिया में उनके सहायक की भूमिका के साथ और सफलता मिली, जिसमें उन्होंने नरगिस के चरित्र के बेटे की भूमिका निभाई। एक रोमांटिक व्यक्ति के रूप में उनकी पहली बड़ी सफलता अमित सक्सेना की संगीतमय फिल्म गूंज उठी शहनाई (1959) में मिली, जिसमें अमीता सह-कलाकार थीं।
इसके बाद राजेंद्र कुमार लगातार सफलता की सीढियां चढ़ते गए। हालांकि इनकी शादी शुक्ला कुमार से हुई थी जिनके माता पिता लखनऊ में रहते थे। लखनऊ में ही राजेंद्रकुमार के बेटे कुमार गौरव का जन्म हुआ। राजेंद्र कुमार के दो बेटियां भी हैं। कुमार गौरव अभिनेता के रूप में सफल नहीं रहे और बिजनेस के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं।
सायरा बानो पर फ़िदा राजेंद्र कुमार
लेकिन राजेंद्र कुमार के जीवन में एक दौर ऐसा भी आया जब वह अभिनेत्री सायरा बानो पर फिदा हो गए और उनके लिए अपना परिवार छोड़ने को भी तैयार हो गए लेकिन किस्मत को कुछ और ही बदा था। सायरा बानो को यह रिश्ता नहीं भाया और उन्होंने सायरा बानो के बालमन में अमिट छाप रखने वाले दिलीप कुमार को घर बुला लिया। इस पहली मुलाकात में दिलीप कुमार को सायरा बानों भा गईं। सायरा भी दिलीप कुमार को अपने सामने देखते ही फिदा हो गईं। इस तरह ये किस्सा परवान चढ़ने से पहले ही खत्म हो गया।
दिल एक मंदिर, धूल का फूल, मेरे महबूब, आई मिलन की बेला, संगम, सूरज और आरजू आदि फिल्मों ने उन्हें फिल्मी दुनियां का जुबली कुमार बना दिया। एक बार उनकी एक साथ छः फिल्में सिल्वर जुबली हिट हुईं। कहते हैं राजेंद्र कुमार बेहद संयमित जीवन जीते थे बावजूद उन्हें कैंसर हो गया और जिन्दगी भर कोई दवाई न खाने वाले राजेंद्र कुमार ने इस बीमारी से 12 जुलाई सन् 1999 को दुनिया को अलविदा कह दिया।