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Saif Ali Khan attack Case: सैफ अली खान हमले मामले में उठा बड़ा विवाद, क्यों सामने आई हेल्थ इंश्योरेंस की बात
Saif Ali Khan attack Case: एएमसी ने बांद्रा के लीलावती अस्पताल में भर्ती होने के बाद सैफ अली खान के लिए ₹25 लाख कैशलेस उपचार के दावे को जल्दबाज़ी में मंज़ूरी दिए जाने पर चिंता जताई है। इस दावे को जमा करने के कुछ ही घंटों के भीतर मंज़ूरी दे दी गई।
Saif Ali Khan attack: बॉलीवुड अभिनेता सैफ़ अली ख़ान एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। इस बार विवाद उन पर हुए हमले के बाद उपचार में आए खर्च में 25 लाख के कैशलेस उपचार का दावा जल्दबाजी में मंजूर करने पर सवाल उठाया गया है। यह सवाल एसोसिएशन ऑफ़ मेडिकल कंसल्टेंट्स (AMC) ने उठाया है। जिसमें 14,000 से ज़्यादा मेडिकल पेशेवर शामिल हैं।
एएमसी ने बांद्रा के लीलावती अस्पताल में भर्ती होने के बाद सैफ अली खान के लिए ₹25 लाख कैशलेस उपचार के दावे को जल्दबाज़ी में मंज़ूरी दिए जाने पर चिंता जताई है। इस दावे को जमा करने के कुछ ही घंटों के भीतर मंज़ूरी दे दी गई। इस जल्दबाजी दावे की मंजूरी ने मशहूर हस्तियों के लिए तरजीही उपचार के आरोपों को हवा दे दी है। अब AMC ने भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) से जाँच की माँग की है।
एएमसी ने आईआरडीएआई को लिखे पत्र में दावे के निस्तारण की प्रक्रिया की गति की आलोचना की गई। एसोसिएशन ने बताया कि आम पॉलिसीधारकों के लिए इस तरह की त्वरित स्वीकृति दुर्लभ है। एएमसी का कहना है कि मशहूर हस्तियों और हाई-प्रोफाइल व्यक्तियों को तरजीही शर्तों और उपचार का लाभ मिलता है। संस्था का तर्क है कि इससे स्वास्थ्य बीमा प्रणाली में प्रणालीगत असमानता पैदा होती है।
स्वास्थ्य बीमा विशेषज्ञ निखिल झा ने भी एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर इन चिंताओं को दोहराया और दावा निस्तारण की स्वीकृति प्रक्रिया की असमानता की प्रकृति का सवाल उठाया है। झा ने इस बात पर जोर दिया कि, एक सामान्य पॉलिसीधारक के मामले में, बीमाकर्ता को दावे को मंजूरी देने से पहले अतिरिक्त दस्तावेज - जैसे कि मेडिकोलीगल मामलों में एफआईआर की प्रति - की आवश्यकता होती। हालांकि, बीमा प्रदाता ने खान के मामले में इस आवश्यकता को माफ कर दिया और बिना देरी किए उनके इलाज के लिए ₹25 लाख मंजूर कर दिए।
झा ने एक एक्स पोस्ट में लिखा, "बीमा कंपनी ने सैफ अली खान के इलाज के लिए लीलावती अस्पताल को कुछ ही घंटों में 25 लाख रुपये मंजूर कर दिए। सामान्य प्रक्रिया यह है कि मेडिकोलीगल मामलों में एफआईआर की कॉपी मांगी जाती है। बीमा कंपनी ने इस आवश्यकता को माफ कर दिया और तुरंत कैशलेस अनुरोध को मंजूरी दे दी।"