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3 अक्टूबर: IND की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म, डाक्टर के दावे को मानने में लगे थे 16 साल
कोलकाता: डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय की निगरानी में तीन अक्टूबर 1978 को भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी दुर्गा का जन्म हुआ था। वह दुनिया की दूसरी टेस्ट ट्यूब बेबी है। उसके जन्म से 67 साल पहले ब्रिटेन में दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुईस जोय ब्राउन पैदा हुई थी। राबर्ट एडवर्ड और पैट्रिक स्टेपटो ने मिलकर उसका जन्म कराया था। इसके जनक रॉबर्ट एडवर्ड को 2010 में मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था।
newstrack.com आज आपको डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय की अनटोल्ड स्टोरी के बारे में बता रहा है।
डॉ. सुभाष के बारे में ये बातें नहीं जानते होंगे आप
डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय का जन्म 16 जनवरी 1931 को हजारीबाग में एक चिकित्सक परिवार में हुआ था। आरंभिक पढ़ाई हजारीबाग में करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे कोलकाता चले गये थे। वहां से एमबीबीएस की डिग्री ली और बाद में वहीं (कोलकाता में ही) बस गये।
डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ने अपने सहयोगियों के साथ तीन अक्टूबर 1978 को भारत में आइवीएफ प्रणाली से पहली टेस्ट ट्यूब बेबी दुर्गा (कनुप्रिया अग्रवाल) का जन्म कराया।
जब इस दावे के बाद तबाह हो गई डाक्टर की जिंदगी
तब उनके दावे को किसी ने नहीं माना, दावे को उस समय ठुकरा दिया गया। मान्यता नहीं दी गयी। उनके दावे को बोगस बताकर उन्हें झूठा करार दे दिया गया। मुखोपाध्याय का तबादला कर उन्हें दंडित भी किया गया। इसका सीधा असर डॉ. सुभाष पर पड़ा। वे डिप्रेशन में रहने लगे। कहीं से न्याय की आस नहीं मिलने पर डॉ. सुभाष ने 19 जून 1981 को आत्महत्या कर ली।
डॉ. सुभाष के दावे को मानने में देश को लग गये 16 साल
डॉ. सुभाष की मौत के पांच साल बाद यानी 1986 में मुंबई में डॉ. टीसी आनंद कुमार की निगरानी में हर्षा नामक बच्ची का जन्म हुआ। जिसे भारत का पहला आधिकारिक टेस्ट बेबी माना गया। इस बात को लेकर देश के अंदर एक नई बहस भी छिड गई थी। आखिरकार डॉ. सुभाष की मौत के 16 साल बाद पहली बार देश ने भी इस बात को स्वीकार किया कि डॉ. मुखोपाध्याय का दावा सही था और वे ही भारत में टेस्ट ट्यूट बेबी के जनक थे। डॉ टीसी आनंद कुमार नहीं। दुर्गा ही पहली टेस्ट ट्यूब बेबी थी, हर्षा नहीं।
डॉ टीसी आनंद ने भी माना सही था डॉ. सुभाष का दावा
डॉ. सुभाष का दावा और शोध कार्य तो इतिहास में दफन हो चुका था। यह मामला दफन ही रहता अगर उनकी डायरी और शोध कार्य से संबंधित पेपर डॉ आनंद कुमार के हाथ नहीं लगते। डॉ सुभाष के शोध कार्य से जुड़े दस्तावेज पढ़ने के बाद डॉ आनंद कुमार ने माना कि जो श्रेय उन्हें मिल रहा है, उसके असली हकदार वे नहीं बल्कि सुभाष मुखोपाध्याय हैं क्योंकि उन्होंने 1978 में आइवीएफ सिस्टम से जिस लड़की दुर्गा के जन्म कराने का दावा किया था, वह दावा बिल्कुल सही था।
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