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Suraiya Death Anniversary: आज भी सुरैया के गीत लोगों को बना देते हैं दीवाना
Suraiya Death Anniversary: सुरैया के गीत आज भी संगीत प्रेमियों को दीवाना बना देते हैं। सुरैया ने 1936 में जद्दन बाई की मैडम फैशन में मिस सुरैया के रूप में एक बाल कलाकार से अपने कैरियर की शुरुआत की थी।
Suraiya Death Anniversary: वो पास रहे या दूर रहें, नज़रों में समाए रहते हैं, दिल ए नादान तुझे हुआ क्या है, तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी, जैसे अनगिनत सुपरहिट गीतों में अपनी कशिश भरी आवाज से लोगों के दिल पर जादू चलाने वाली मशहूर अदाकारा, गायिका की आज पुण्यतिथि है।
सुरैया के गीत आज भी संगीत प्रेमियों को दीवाना बना देते हैं। सुरैया ने 1936 में जद्दन बाई की मैडम फैशन में मिस सुरैया के रूप में एक बाल कलाकार से अपने कैरियर की शुरुआत की थी।भारतीय सिनेमा में अपने योगदान से एक खास जगह बनाने वाली एक्ट्रेस सुरैया को हर सिनेमाप्रेमी जानता है।सुरैया की अदाकारी और सुंदरता की वजह से उन्हें मलिका-ए-हुस्न, मलिका-ए-तरन्नुम और मलिका-ए-अदकारी के नामों से संबोधित किया जाता है।
नाव का पलटना बना एक असफल मुहब्बत की शुरुआत
साल 1950 में प्रदर्शित फिल्म 'अफसर' के निर्माण के दौरान देवानंद का झुकाव सुरैया की ओर हो गया था। एक फिल्म की शूटिंग के दौरान देवानंद और सुरैया की नाव पानी में पलट गई । सुरैया को डूबता देखकर देवानंद खुद अपनी जान की फिक्र न करके सूटबूट में नदी में छलांग लगा दी । बड़ी ही मशक्कत के साथ सुरैया को डूबने से बचाया। इसके बाद सुरैया देवानंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगीं थी। देवानंद सुरैया से इस कदर प्यार करते थे कि उन्होंने बिना सोचे अपनी पूरी कमाई एक्ट्रेस को एक रिंग गिफ्ट करने में लगा दी थी। सुरैया भी देव से बेहद प्यार करती थीं।
सुरैया की मोहब्बत परवान चढ़ ही रही थी कि उनकी नानी को इस बात की भनक लग गई। वो इस रिश्ते के खिलाफ खड़ी हो गईं। अंत में नानी की अकड़ जीत गई और रुपहले पर्दे की एक बेहद खूबसूरत जोड़ी जोड़ी परवान नहीं चढ़ सकी।
जब देवानंद और सुरैया को कुछ समझ नहीं आया तो उन्होंने फैसला किया कि वह फिल्म सेट पर ही असली शादी करेंगे। इसे एक सीन की तरह दिखाया जाएगा । लेकिन यह शादी असल की होगी। इसके लिए दोनों ने असली पंडित बुलाए । लेकिन यह शादी नहीं हो सकी। क्योंकि सुरैया की नानी को किसी असिस्टेंट डायरेक्टर ने इसकी सूचना दे दी और सेट पर पहुंचकर उनकी नानी ने जबरदस्ती कर सुरैया को खींचते लेकर घर चली गईं।
नौशाद थे सुरैया के क़द्रदान
आकाशवाणी के एक कार्यक्रम के दौरान संगीत सम्राट नौशाद ने जब सुरैया को गाते सुना तब वह उनके गाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए। नौशाद के संगीत निर्देशन में पहली बार कारदार साहब की फिल्म 'शारदा' में सुरैया ' मेरे दिल को सजन तुम समझा दो ' गीत को गाने का मौका मिला।
अनमोल घड़ी फिल्म से बनाई अपनी दोहरी पहचाना
सुरैया साल 1946 मे महबूब खान की 'अनमोल घड़ी' में फिल्म में सहअभिनेत्री थीं। लेकिन फिल्म के एक गाने 'सोचा था क्या क्या हो गया' गीत गाकर वह बतौर गायिका भी श्रोताओं के बीच अपनी पहचान बनाने की राह पर चल निकली। इस फिल्म के बाद से उनके प्रशंसकों की फेहरिस्त लगातार बढ़ती ही गई।
सुरैया के दिलकश अंदाज को देखकर इन्हे फिल्मों के लिए चुना गया
यह बात और है कि सुरैया को सबसे बड़ा फिल्मी ब्रेक अपने चाचा जहूर के जरिए से मिला जो उन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में बतौर खलनायक अपनी पहचान बना चुके थे। लेकिन असल चमक तो सुरैया के दिलकश अंदाज में दी जिसे देखकर हर कोई आकर्षित हो जाता था। सुरैया साल 1941 में स्कूल की छुट्टियों के दौरान एक बार मोहन स्टूडियो में फिल्म 'ताजमहल' की शूटिंग देखने गयी। वहां उनकी मुलाकात फिल्म के निर्देशक नानु भाई वकील से हुई जिन्हें सुरैया में एक बेहतरीन कलाकार दिखाई दिया।उस मुलाकात के बाद सुरैया के दिलकश अंदाज ने नानु भाई को अपनी फिल्म में लेने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने सुरैया को अपनी फिल्म मुमताज महल के लिए चुन लिया। सुरैया की इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया था। इसी तरह एक वाकया और भी है जब
आकाशवाणी के एक कार्यक्रम के दौरान संगीत सम्राट नौशाद ने जब सुरैया को गाते सुना तब वह उनके गाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए। नौशाद के संगीत निर्देशन में पहली बार कारदार साहब की फिल्म 'शारदा' में सुरैया को गाने का मौका मिला। जिसके बाद उनका फिल्मी कैरियर का कद तेजी से बढ़ता ही चला गया।
इस बीच निर्माता जयंत देसाई की फिल्म 'चंद्रगुप्ता' के एक गाने के रिहर्सल के दौरान सुरैया को देखकर के. एल. सहगल काफी प्रभावित हुए और उन्होंने जयंत देसाई से सुरैया को फिल्म 'तदबीर' में काम देने की सिफाशि की। साल 1945 मे प्रदर्शित फिल्म 'तदबीर' में के. एल. सहगल के साथ काम करने के बाद धीरे-धीरे उनकी पहचान फिल्म इंडस्ट्री में बनती गई।
सुरैया ने अभिनेत्री नरगिस और कामिनी कौशल को भी दी चुनौती
सुरैया अपनी अभिनय और गायन इन दोहरी प्रतिभा के बल पर सह अभिनेत्री नरगिस और कामिनी कौशल से भी आगे निकल गईं। इसका मुख्य कारण था कि सुरैया अभिनय के साथ-साथ खूबसूरत आवाज में गाने भी गाती थीं । प्यार की जीत', 'बड़ी बहन' और 'दिल्लगी' फिल्मों में अपनी दोहरी प्रतिभा के जरिए कामयाबी हासिल करते हुए सुरैया निरंतर बढ़ती गई।
1950 से लेकर 1953 तक सुरैया के सिने करियर के लिये बुरा वक्त साबित हुआ
देवानंद ने उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से साल 1954 मे शादी कर ली। इस घटना से टूट चुकी सुरैया ने आजीवन शादी न करने का फैसला कर लिया। लगातार अपने जीवन में घट रही घटनाओं से आहत हुई सुरैया के लिए साल 1950 से लेकर 1953 तक बुरा वक्त साबित हुआ । लेकिन वर्ष 1954 मे प्रदर्शित फिल्म 'मिर्जा गालिब' और 'वारिस' की सफलता ने सुरैया एक बार फिर फिल्म इंडस्ट्री मे अपनी पहचान बनाने में कामयाब साबित हुई।
मिर्जा गालिब फिल्म को देख तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इतने भावुक हो गए
फिल्म को देख तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इतने भावुक हो गए कि उन्होंने सुरैया को कहा कि तुमने 'मिर्जा गालिब' की रूह को जिंदा कर दिया।फिल्म 'मिर्जा गालिब' को राष्ट्रपति के गोल्ड मेडल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
पर देव नहीं आय
जादुई आवाज और अभिनय से दर्शकों का दिल जीतने वाली सुरैया ने 31 जनवरी, 2004 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 74 साल की उम्र में जब सुरैया का निधन हुआ, तो हर किसी को उम्मीद थी उन्हें आखिरी विदाई देने के लिए देवानंद जरूर आएंगे लेकिन वो नहीं आए और इस तरह ये लवस्टोरी खत्म हो गई। अपनी आखिरी सांस तक अपने प्यार का इंतजार करती थक चुकी आंखों ने अपने जनाजे पर भी इंतजार जरूर किया होगा। इस तरह एक बेहतरीन अदाकारा की जिदंगी खुद एक दुखद अंजाम के साथ अंधेरे में समा गई । लेकिन उनकी कशिश भरी आवाज आज भी उनके गाय हुए गीतों के जरिए संगीत प्रेमियों के जहन में बरबस ही उनकी याद ताजा कर जाती है।