TRENDING TAGS :
Waheeda Rehman Birthday: वहीदा रहमान जन्म दिन विशेष, अभिनय से अधिक गुरुदत्त के साथ अपने रिश्तों के लिए जानी गईं
Waheeda Rehman Birthday Special: ‘साहब बीबी और गुलाम’,’प्यासा’, ‘कागज के फूल’ जैसी सुपर डुपर हिट फिल्मों में वहीदा रहमान की बेजोड़ अदाकारी को भला कौन भूल सकता है।
Waheeda Rehman Birthday Special: 'साहब बीबी और गुलाम','प्यासा', 'कागज के फूल' जैसी सुपर डुपर हिट फिल्मों में वहीदा रहमान की बेजोड़ अदाकारी को भला कौन भूल सकता है। खूबसूरती की इबारत लिखती उनके गालों पर पड़ने वाले डिंपल, मासूमियत से भरी मुस्कराहट और साथ ही साड़ी में लिपटी हुई वहीदा के लटके झटके और उनकी अदाओं का हर कोई कायल था । यही नहीं, उनकी बेपनाह खूबसूरती पर रश्क करने वालों की आज भी फेहरिस्त कम नहीं हुई है। वैसे तो उर्दू भाषा में वहीदा का मतलब 'लाजवाब' होता है । यह कहना गलत नहीं होगा कि हिंदी सिनेमा की सदाबहार अभिनेत्री वहीदा रहमान ने अपने नाम को सार्थक करते हुए अभिनय के क्षेत्र में अपनी बेजोड़ छाप छोड़ी है।
अपनी मासूमियत, सुंदरता और उम्दा अभिनय से चलाया जादू
हिंदी सिनेमा का 1950 से लेकर 1970 तक का काल बेहतरीन फिल्मों के निर्माण के कारण स्वर्ण काल माना जाता है। इस दौरान हिंदी सिनेमा अपने नए विचारों और प्रयोगों के साथ निरंतर तरक्की की राह प्रशस्त कर रहा था, वहीँ इस दौर में कई दिग्गज कलाकार अपनी अपनी हाड़तोड़ मेहनत और हुनर के दम पर हॉलीवुड सिनेमा का परचम पूरे विश्व में फहराने का सबब बन रहे थे। उन्हीं मेहनतकश कलाकारों में से एक थीं वहीदा रहमान। उन्होंने अपनी लगातार बेहतरीन फिल्मों के जरिए एक लंबे अर्से तक हिंदी सिनेमा के दर्शंकों को अपनी मासूमियत, सुंदरता और उम्दा अभिनय के जादू से बांधे रखा। यह वहीदा रहमान की अदाकारी का ही कमाल था कि उस समय के अधिकांश अभिनेता उनके साथ काम करना चाहते थे। वर्ष 1955 में तेलगु सिनेमा 'जयसिम्हा' से शुरू हुआ, वहीदा रहमान का फ़िल्मी सफ़र आज की तारीख तक बदस्तूर जारी है।
गुरुदत्त और वहीदा के बीच प्रेम प्रसंग काफी चर्चा में रहा
वहीदा रहमान में एक बेहतरीन अभिनेत्री का अक्श तलाशने वाले दिग्गज अभिनेता गुरुदत्त ने वर्ष 1956 में वहीदा रहमान को देव आनंद के साथ 'सी.आई.डी.' में खलनायिका की भूमिका में लिया। यह फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर सुपरहिट रही। इसके बाद वर्ष 1957 में गुरुदत्त और वहीदा रहमान की क्लासिक फिल्म 'प्यासा' रिलीज़ हुई। यह फिल्म गुरुदत्त और वहीदा के बीच प्रेम प्रसंग को लेकर काफी चर्चा में रही। कहा जाता है कि वर्ष 1959 में रिलीज़ हुई गुरुदत्त की फिल्म 'कागज़ के फूल' उन दोनों के असफल प्रेम कथा पर आधारित थी। इन सारी चर्चाओं के बाद भी बाद के वर्षों में भी वहीदा रहमान ने गुरुदत्त के साथ दो अन्य फ़िल्में की थीं। इनमें वर्ष 1960 की 'चौदहवीं का चाँद' और वर्ष 1962 की 'साहिब, बीबी और गुलाम थी। इन दोनो ही फिल्मों में लाजवाब पटकथा के साथ इन दोनो ही कलाकारों का अभिनय किसी के भी मन मष्तिष्क को झकझोर कर रख सकता है।
गुरुदत्त से उनकी मुलाकात हुई और वह सिनेमा के रुपहले परदे पर छा गईं
वहीदा रहमान का जन्म तमिलनाडु राज्य के चेंगलपट्टू में 3 फरवरी, 1938 को एक सुशिक्षित तमिल-मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता जिलाधिकारी जैसे उच्च पद पर तैनात थे। परंतु वहीदा के जन्म के केवल 9 वर्ष बाद यानि वर्ष 1948 में उनके पिता का इंतकाल हो गया। उनकी माँ भी पिता के मृत्यु के सात वर्षों बाद चल बसी थीं। पिता की मृत्यु के एक वर्ष बाद वहीदा ने एक तेलुगु सिनेमा 'रोजुलु मरई' में बाल कलाकार की भूमिका के साथ सिने जगत में कदम रखा। इस समय तक वहीदा भरत नाट्यम की बारीकियों को सीखकर एक उम्दा नृत्यांगना बन चुकी थी। अब वह भारतीय सिनेमा में आने का प्रयास कर रहीं थी । इसी दौरान हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता और निर्माता-निर्देशक गुरुदत्त से उनकी मुलाकात हुई और वह सिनेमा के रुपहले परदे पर छा गईं।
फिल्मों की विभिन्न शैलियों में अपने योगदान के लिए जानी जाती है
वहीदा रहमान एक ऐसी अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिन्दी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाने के साथ ही तेलुगु, तमिल और बंगाली फिल्मों में भी उतनी ही प्रसिद्ध अर्जित की है। उन्हें 1950, 1960 और 1970 के दशक की शुरुआत तक फिल्मों की विभिन्न शैलियों में अपने योगदान के लिए जाना जाती हैं। उन्हें अपने पूरे करियर में, फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए दो फिल्मफेयर पुरस्कार मिल चुके हैं।
उनकी उपलब्धियां
हिन्दी फिल्म में उनकी पहली उपस्थिति सी आई डी (1956) में हुई थी। बाद में, उन्हें प्यासा (1957), 12 ओ'क्लॉक (1958), कागज़ के फूल (1959), साहिब बीबी और ग़ुलाम और चौदहवीं का चाँद (1961) सहित कई सफल फिल्मों में देखा गया। उनकी अन्य उल्लेखनीय फिल्मों में सोलवाँ साल (1958), बात एक रात की (1962), कोहरा (1964), बीस साल बाद (1962), गाइड (1965), मुझे जीने दो (1963), तीसरी कसम (1966), नील कमल (1968) और ख़ामोशी (1969) शामिल हैं।
उनका करियर 1960, 1970 और 1980 के दशक तक जारी रहा। उन्होंने गाइड (1965) में अपनी भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। यहाँ वह अपने करियर के शिखर पर पहुँची। उन्होंने नील कमल (1968) के लिये भी यह पुरस्कार जीता। लेकिन बाद की फिल्मों में उत्कृष्ट अभिनय के बावजूद जिसमें रेशमा और शेरा (1971) के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार जीतना शामिल रहा, उनकी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल रही।
सत्तर के दशक के मध्य से, मुख्य हीरोइन के रूप में वहीदा का करियर समाप्त हो गया और चरित्र अभिनेत्री के रूप में उनका करियर शुरू हुआ। लम्हे (1991) में अपनी उपस्थिति के बाद, उन्होंने 12 साल के लिए फिल्म उद्योग से संन्यास ले लिया।
कलाकार कमलजीत सिंह और वहीदा ने वर्ष 1974 में बने पति पत्नी
अभिनेता और निर्माता-निर्देशक गुरुदत्त के साथ विफल प्रेम संबंध और उनकी टीम को छोड़ने के बाद वहीदा रहमान ने वर्ष 1964 में 'शगुन' नाम की फिल्म की थी। इस फिल्म में उनके सह-कलाकार कमलजीत सिंह थे। यह फिल्म तो नहीं चली परंतु दोनों के दिल मिल गए। फिर वर्ष 1974 में दोनों ने शादी कर ली और मुंबई छोड़कर बंगलौर के पास स्थित एक फार्म हाउस में दोनों ने अपना घर बसाया। कमलजीत सिंह का वास्तविक नाम शशि रेखी था।
1960 के दशक में वह भी फिल्मों में असफल होने के बाद बिज़नस की दुनिया में लौट गए। बंगलौर के फार्म हाउस में रहने के दौरान उनकी बेटी काश्वी रेखी और बेटा सोहेल रेखी का जन्म हुआ। मुंबई के बांद्रा बैंडस्टैंड स्थित 'साहिल' में फिर से अपना बसेरा बना लिया। यहीं पर 21 नवम्बर, 2000 को कमलजीत बीमारी के चलते निधन हो गया। वहीदा रहमान का बेटा सोहेल रेखी एमबीए करने के बाद एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत है, तो वहीँ बेटी काश्वी रेखी एक ज्वेलरी डिज़ाइनर है। काश्वी ने वर्ष 2005 में बनी फिल्म 'मंगल पांडे' में 'स्क्रिप्ट सुपरवाइजर' के साथ फ़िल्मी दुनिया में कदम रखने का भी प्रयास किया था, परंतु इस फिल्म के बाद वह इंडस्ट्री से अलग ही रहीं।