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... तो इसलिए 9/11 पर बनीं फिल्मों को ज्यादा सफलता हाथ नहीं लगी !

न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 11 सितम्बर 2001 को टकराते विमानों की तस्वीर ने पूरी दुनिया को स्तब्ध किया और आने वाले कई दशकों के लिए टीवी की सबसे हैरतंगेज तस्वीरें बन गई।

Anoop Ojha
Published on: 11 Sep 2017 10:39 AM GMT
... तो इसलिए 9/11 पर बनीं फिल्मों को ज्यादा सफलता हाथ नहीं लगी !
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vinod-kapoor

लखनऊ: न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 11 सितम्बर 2001 को टकराते विमानों की तस्वीर ने पूरी दुनिया को स्तब्ध किया और आने वाले कई दशकों के लिए टीवी की सबसे हैरतंगेज तस्वीरें बन गई। हमले ने हमेशा के लिए दुनिया बदल दी पर हॉलीवुड इससे बेअसर ही रहा। कई सालों तक भरभरा कर गिरती स्टील की बनी इमारत लोगों को दहलाती रहीं।

पूरी दुनिया में अमेरिकी पूंजी के प्रभाव का प्रतीक वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की आकाश छूती दो इमारतों से एक एक कर टकराते यात्रियों से भरे दो विशाल विमान, आग की लपटें, धुएं का गुबार और फिर बारी बारी से भरभरा कर गिरती, मलबे में तब्दील होती इमारत, चीखते चिल्लाते लोगों की बदहवासी। 11 सितंबर को न्यूयॉर्क पर अल कायदा के हमलों से पहले ऐसी तस्वीरें लोगों ने हॉलीवुड की फिल्मों में ही देखी थी। आश्चर्य है कि दूसरे विश्व युद्ध और वियतनाम की जंग जैसी ऐतिहासिक घटनाओं ने हॉलीवुड के फिल्मकारों को जितना प्रेरित किया उतना इस घटना ने नहीं किया ।

डेढ़ दशक से ज्यादा बीत गया और अब तक सिर्फ दो फिल्में ही इन हमलों पर बनी लेकिन दोनो ही फिल्में उतनी सफल नहीं हईं जितनी आमतौर पर हालीवुड की फिल्में होती हैं ।

अमरीकी ऐसी फिल्में देखना पसंद करते हैं लेकिन ट्रेड सेंटर पर हुए हमले पर बनी फिल्मों को सफलता हाथ नहीं लगी । अमेरिका पर अब तक के सबसे भयावह हमले ने शुरुआत में तो ऐसी तस्वीर बनाई की लगा लोगों में इसे लेकर काफी ज्यादा दिलचस्पी है। दिलचस्पी थी भी पर फिल्में सिर्फ दो ही बनीं। एक थी यूनीवर्सल की ..यूनाइटेड 93 और दूसरी पैरामाउंट की ओलिवर स्टोन्स के साथ मिल कर बनाई फिल्म ..वर्ल्ड ट्रेड सेंटर..

हालीवुड की प्रोड्यूसर बोनी कर्टिस कहती हैं, "निश्चित रूप से 11 सितंबर के हमलों और उसके बाद हुई जंग में लोगों की काफी ज्यादा दिलचस्पी थी। बहुत लोगों ने इस पर काम करना शुरू किया क्योंकि यह एक ऐसी घटना थी जो दुनियां में कभी नहीं हुई थी ।"

बाक्स ऑफिस पर नाकामी

हालांकि लोग यह भी मानते हैं कि ऐसी दुखद घटनाओं को लोग फिल्म के रूप में नहीं देखना चाहते। कर्टिस कहती हैं, "हम लोंगों के बीच इस पर बहुत चर्चा हुई है कि क्या इतनी जल्दी फिल्म बनाना ठीक होगा या फिर ये कि क्या लोग इस घटना पर बनी फिल्म देखने के लिए आएंगे। " इन सवालों के जवाब इतने सीधे नहीं हैं। साल 2006 में पर्दे पर उतरी यूनाइटेड 93 और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर बॉक्स ऑफिस पर उतनी कामयाब नहीं हुईं। पहली फिल्म ने करीब 7.4 करोड़ और दूसरी ने करीब 16.1 करोड़ डॉलर की कमाई की जो हॉलीवुड़ के लिहाज से अगर बहुत कम नहीं तो बहुत ज्यादा भी नहीं है। '

यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैलिफोर्निया के स्कूल ऑफ सिनेमैटिक आर्ट्स में पढ़ाने वाले प्रोफेसर जेसन स्क्वायर कहते हैं, "यह इस बात का भी संकेत है कि लोग इस विषय के बारे में दिन के उजाले में सोचें। किसी भी विषय पर फिल्म बनाना बेहद मुश्किल होता है और ये मुश्किल और बढ़ जाती है जब मामला संवेदनशील हो । लोग थिएटर में जा कर ये सब नहीं देखना चाहते और हॉलीवुड एक कारोबार है इसलिए शुरुआत में कुछ फिल्मों के बनने के बाद अब और कोई इस तरह के प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं दे रहा ।

एक और प्रोड़्यूसर डॉन हैन का मानना है कि लोग 'आघात पहुंचाने वाली' फिल्में नहीं देखना चाहते, "मुझे बहुत गहरा धक्का लगा था और मेरे ख्याल से हम सबकी हालत यही है । इसलिए हम इसे दोबारा नहीं देखना चाहते। इसके बजाए उन फिल्मों को हम देखना चाहेंगे जो हमें इससे दूर ले जाएं और हम इस सबसे बच सकें। शायद यही वजह है कि हम सुपर हीरो वाली ज्यादा फिल्में देख रहे हैं जैसे कि कैप्टन अमेरिका या आयरन मैन। इन फिल्मों के हीरो बुरे लोगों को परास्त करते हैं और हमारे लिए यह महान कहानी बन जाती है।

इसमें कोई शक नहीं कि 11 सितंबर की घटना ने समाज के लिए मनोरंजन का महत्व एक पलायनवादी के रूप में साबित किया। वैसे कुछ लोग हैं जो इस राय से सहमत नहीं हैं। पटकथा लेखक रिचर्ड वाल्टर कहते हैं, "हॉलीवुड की फिल्मों को पलायनवादी कहना ऐसा ही है जैसे बराक ओबामा को डेमोक्रैट कहना। इसमें कुछ नया नहीं है मुझे नहीं लगता कि कुछ बदला है । हॉलीवुड वही कर रहा है जो वो बहुत पहले से करता आया है । हालांकि कर्टिस कहती हैं कि 11 सितंबर के बाद हल्के फुल्के सिनेमा की तरफ लोगों ज्यादा आकर्षित हुए हैं। कर्टिस के मुताबिक, "लोग पूरी तरह से कल्पनाओं, स्पेशल इफेक्ट्स, सुपरहीरो और पलायनवादी मनोरंजन की तरफ जाना चाहते हैं। इसके बिल्कुल उलट कुछ ऐसे फिल्मकार भी हैं जो इस दुखद घटना की गहराई में उतर कर ये दिखाना चाहते हैं कि इसका असर हमारे देश या हमारी धरती पर क्या हुआ है।

अमरीका में लोगों के लिए पिछले 10 सालों में अफगानिस्तान और इराक की जंग के आसपास बनने वाली फिल्मों का निश्चित रूप से इस बात से सरोकार है कि ग्यारह सितंबर के हमले का क्या असर हुआ। हाॅलीवुड की अगर बात नहीं करें तो तब से लेकर अब तक इस आतंकवादी घटना पर करीब 40 फिल्में बन चुकी हैं। इनमें से पाकिस्तानी फिल्मकार शोएब मंसूर की ..खुदा के लिए.. और "फारेनहाइट 9/11 को सबसे ज्यादा प्रशंसा मिली है। खुदा के लिए पाकिस्तान में उदारवादी मुसलमानों और कट्टरपंथियों के बीच संघर्ष दिखाती है। फिल्म यह भी दिखाती है कि 9/11 के हमले के बाद पश्चिम में मुसलमानों को संदेह से देखा जाने लगा है। यह बेहतरीन फिल्म 2007 में प्रदर्शित हुई थी। आलोचकों ने इसकी खूब प्रशंसा की थी और इसे विचारोत्तेजक फिल्म बताया था।

हिंदी फिल्मोद्योग भी इस विषय पर फिल्में बनाकर व्यवसाय करने में पीछे नहीं रहा। साल 2007 में अभिनेता नसीरूद्दीन शाह ने खुद के निर्देशन में ..यूं होता तो क्या होता.. बनाई, जो अमेरिका में हुए आतंकवादी हमलों पर आधारित थी। नसीरूद्दीन शाह ने इस फिल्म में अपने बेटे को इट्रोडूयूस किया था । कबीर खान की सैफ अली खान-करीना कपूर अभिनीत कुर्बान, शाहरूख खान की माई नेम इज खान भी इसी विषय के इर्द-गिर्द बनी फिल्में हैं।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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