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बॉलीवुड की इस बूढ़ी अम्मा ने हर पीढ़ी के कलाकारों के साथ किया था काम

Admin
Published on: 26 April 2016 4:04 PM IST
बॉलीवुड की इस बूढ़ी अम्मा ने हर पीढ़ी के कलाकारों के साथ किया था काम
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मुंबई: इंडियन थिएटर की मशहूर कोरियोग्राफर, डांसर और सिल्वर स्क्रीन की फेवरेट ग्रैंडमदर जोहरा सहगल किसी परिचय की मोहताज नहीं है। अगर आज जोहरा जी हमारे बीच होतीं तो 104 साल की हो चुकी होतीं। वैसे भी उन्होंने अपनी जिंदगी के 102 बसंत देखे है। मतलब वे 102 साल तक जिंदा रहीं। 50 से ज्यादा देशी-विदेशी फिल्मों और टीवी सीरियल्स के जरिए लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने वाली जोहरा सहगल का जन्म 27 अप्रैल 1912 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में हुआ था।

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धरती के लाल से पहला ब्रेक

उनका असली नाम मुमताज-उल्लाह खान था, लेकिन डांसर और परफॉर्मर कामेश्वरनाथ सहगल से शादी के बाद वो जोहरा सहगल हो गईं। उन्होंने 14 अगस्त 1942 को शादी की थी। कामेश्वर नाथ से उनकी मुलाकात अल्मोड़ा में उदय शंकर के स्कूल में हुई। उन्होंने अपना पहला पब्लिक डांस परफॉरमेंस 1935 में दिया था। उनको फिल्मों में पहला ब्रेक 1946 में के.ए.अब्बास ने दिया था, फिल्म का नाम था 'धरती के लाल'। उन्होंने अपने सिने करियर में नीचा नगर, अफसर, दिल से, कल हो न हो, वीर-जारा और चीनी कम जैसी यादगार बेहतरीन बॉलीवुड फिल्मों में काम किया।

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पृथ्वीराज कपूर से लेकर रणवीर कपूर तक के साथ काम

दिलचस्प बात है कि जोहरा सहगल ने अपने फिल्मी सफर में हर पीढ़ी के अदाकारों के साथ काम किया, इसमें पृथ्वीराज कपूर से लेकर उनके परपोते रणवीर कपूर तक का नाम शामिल हैं। 2012 में उनकी बॉयोग्राफी जोहरा सहगल-फैटी लोगों के सामने आई, जिसे उनकी बेटी किरण सहगल ने लिखा। वहीं, 10 जुलाई 2014 को 102 साल की उम्र में जोहरा सहगल का निधन हो गया। जानकर आश्चर्य होगा कि उनका आखिरी वक्त तक अभिनय से नाता रहा।

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वो सहारनपुर में पैदा हुईं, बचपन देहरादून में बीता। शुरुआती शिक्षा यहीं हुई। जब कोई सोच भी नहीं सकता था, तब 1930 में लंदन गई और वहीं से होते हुए जर्मनी के ड्रेसडेन में एक मशहूर बैले स्कूल में आधुनिक नृत्य का प्रशिक्षण लिया। कोई भी जानकर हैरान रह सकता है कि उन्होंने अपनी जिंदगी के 80 साल तो नृत्य, थियेटर को दिए।

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बैले डांस-पृथ्वी थियेटर की भूमिका अहम

जोहरा ने प्रसिद्ध बैले नर्तक और सितारवादक पंडित रविशंकर के बड़े भाई उदयशंकर की नृत्य मंडली के साथ काम किया। देश दुनिया में इस बैले जोड़ी ने यादगार प्रस्तुतियां दी। वहीं जानेमाने पेंटर और लेखक कमलेश्वर सहगल से मुलाकात हुई, और दोनों शादी के बंधन में बंध गए। फिर अभिनय में नए आसमान की तलाश में बंबई चली गईं। वहां जोहरा को गुरू के रूप में पृथ्वीराज कपूर मिल गए। पृथ्वी थियेटर से जुड़कर उनका नया अवतार हुआ।

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अभिनय से जुड़ाव

नृत्य और बैले के संसार से वो अभिनय के संसार में आई। कहा जाता था कि पृथ्वीराज कपूर जैसा सिखाने वाला हो तो सबकुछ समझ आ जाता है। पृथ्वी थियेटर के अलावा जोहरा रंगमंच के प्रगतिशील आंदोलन इप्टा से भी जुड़ीं। इप्टा की मदद से बनी चेतन आनंद की ऐतिहासिक फिल्म नीचा नगर में अभिनय भी किया। ये कान फिल्म-महोत्सव का पुरस्कार जीतकर अंतरराष्ट्रीय सिनेमंच पर पहचान पाने वाली ये पहली भारतीय फिल्म थी।

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बॉलीवुड को मिली बूढ़ी अम्मा

मुंबई की ट्रेनिंग के साथ जोहरा ने पति के साथ पाकिस्तान का भी रुख किया, लेकिन वहां की हवाएं दंपत्ति को नागवार लगीं। लिहाजा दोनों लौट आए। कुछ दिन बाद उनके पति की मौत हो गई। जोहरा करियर तराशने और किस्मत आजमाने फिर मुंबई पहुंचीं। पति के इंतकाल के बाद उनके लिए एक इम्तहान भी था। वहां कुछ फिल्में, नाटक और टीवी में काम किया। 1962 में फिर लंदन का रुख किया।

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वहां फिल्म, टीवी और रेडियो में विविधता भरे काम करने के बाद 1990 में दिल्ली लौट आईं और हिंदी सिनेमा की बूढ़ी अम्मा बन गईं। मुख्यधारा के सिनेमा में जोहरा की उपस्थिति रस्म अदायगी नहीं रहीं, वो अपने भरपूर कद के साथ वहां मौजूद थीं। दिल से, हम दिल दे चुके सनम, वीर जारा, चीनी कम और सांवरिया जैसी फिल्में इसकी ताकीद करती हैं।

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100 साल पूरे करने पर

उनकी जिंदगी के 100साल पूरे होने के मौके पर उनकी बेटी और ओडिसी नृत्यांगना किरन सहगल ने उनकी जीवनी प्रकाशित की थी,जोहरा सहगल- फैटी। फैटी इसलिए कि उनकी मां वजन को लेकर बहुत सजग रहती थीं, लेकिन वो कम न होता था और बेटी ने मां को फैटी कहकर चिढ़ाया। किरन ने अपनी मां के जीवन संघर्ष को बहुत गहराई और दिली तसल्ली के साथ इस किताब में उकेरा है। एक कलाकार और संस्कृतिकर्मी की निजी और सार्वजनिक जद्दोजहद को समझने का मौका हमें जोहरा की आत्मकथा क्लोजअप से भी मिलता है।

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अपने दो बच्चों के साथ रह गई एक अदाकारा का मनोबल इस किताब में दिखता है। तब भी ये कोई आत्मदया या आत्मविलाप के वृतांत नहीं हैं, इनमें भरपूर उल्लास और जीवट के नजारे हैं। अकेले रह सकने की ताब। जोहरा सहगल कहती थीं कि जिंदगी मुझे डराए इससे पहले मैं उसे डरा दूंगी।

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जिंदगी के हर रंग को जीने की ललक

अपनी अदाओं, ठिठोलियों और अल्हड़ताओं में हमें रिझाती रहने वाली इस नायिका को उम्र और वक्त के तकाजों ने कम चोटें नहीं पहुंचाई। फिर भी अंत तक इन्होंने हार नहीं मानी । जिंदगी को भरपूर जिया और मिसाल बनीं उन महिलाओं के लिए।जो विषम परिस्थितियों में हार मान जाती है। इन्होंने खुद के बल पर खुद को साबित किया और अपने दोनों बच्चों को अच्छी परवरिश भी दी है।



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