बहुत पवित्र होता है गोरखशेप झील का पानी, रास्ते में ठंड से हड्डियां तक कांपी

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Published on: 28 Aug 2016 12:32 PM GMT
बहुत पवित्र होता है गोरखशेप झील का पानी, रास्ते में ठंड से हड्डियां तक कांपी
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govind pant raju Govind Pant Raju

लखनऊ: जिंदगी एक सफ़र है सुहाना, यहां कल क्या हो? किसने जाना...

कुछ इसी सोच के चलते हम एवरेस्ट की ओर अपने क़दमों को बढाते जा रहे थे। मौसम ठंड था पर हमें परवाह नहीं थी.. दिल में बस उन कठिन रास्तों को पार करने के जूनून था। खैर इससे पहले की यात्रा का आनंद तो आप ले ही चुके हैं... बताते हैं आपको आगे की यात्रा के बारे में।

लोबूचे से गोरखशेप तक का रास्ता भी पूरी तरह ग्लेशियर और मोरेन के ऊपर से होकर गुजरता है। लोबूचे से थोड़ा समतल चल कर एक खड़ी चढ़ाई के बाद हम एक ऐसी जगह पहुंच गए, जहां से नीचे बहुत दूर तक की घाटी साफ दिखाई दे रही थी। थोड़ा सा आगे बढ़ने पर हमारे पीछे का पूरा परिदृश्य ओझल हो गया। हमारे चारों ओर अब सिर्फ बड़े-बड़े पत्थर, भुरभुरी मिट्टी और उसमें दबी बर्फ के सिवा कुछ भी नहीं दिखता था।

आगे की स्लाइड में कितनी ऊंचाई पर पहुंचे

आसमान में धूप चमक रही थी और बीच-बीच में बादलों के अलग-अलग आकार के टुकड़े आकर सूरज को छिपा देते थे। लोबूचे जैसी बर्फीली हवा तो यहां नहीं थी। मगर जब भी हवा का तेज झोंका आता, तो हमारी आखों से पानी निकल आता। थोड़ा उतरते और फिर थोड़ा ऊपर चढ़ते हुए हम 5 हजार मीटर की ऊंचाई से ऊपर पहुंच चुके थे। सांस लेने में बहुत मजा आ रहा था।

gorakhpur shape

आगे की स्लाइड में देखिए क्या हुआ पहुंचे ऊंचाई पर

बाबा रामदेव के प्राणायाम की तरह हमारी सांसें खुद ब खुद धौंकनी की तरह अन्दर बाहर हो रही थीं। अरूण सिंघल अपने शरीर की सारी शक्ति को संचित कर धीरे-धीरे ऊपर चढ़ रहा था जबकि ठीक से खाना न खाने, अच्छी नींद न आने और फिर पाइल्स की मार के कारण राजेन्द्र की भी स्थिति ठीक नहीं थी। ताशी को भी अब तेज ठंड का अहसास होने लगा था। सिर्फ नवांग ही इस सब से बचा दिखता था। मेरे तो मुंह में ऐसा लग रहा था जैसे थूक बचा ही नहीं था। पूरा मुंह बुरी तरह सूख चुका था। जब भी मौका मिलता मैं एक घूंट पानी पीकर उसे तर करने की कोशिश करते हुए चला जा रहा था। मगर थोड़ी और ऊंचाई पर पहुंच कर हमारी सारी परेशानियां एक झटके से खत्म हो गईं।

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आगे की स्लाइड में जानिए कैसा था लिंगट्रेन का शिखर

हमारे सामने चारों ओर का दृश्य एक दम साफ हो गया था और हिमालय की सर्वोच्च चोटियों का सबसे सुन्दर, सबसे मोहक और सबसे चुनौती भरा नजारा हमारे सामने था। हमारे एकदम बाएं काला पत्थर का ऊंचा टीला था और उसके कुछ आगे पूमोरी का सुन्दर शिखर, जो रास्ते में कई जगहों से हमें अलग अलग रूपों में दिखाई दिया था। इसके बाद चपटे शिखर वाला 6,749 मीटर ऊंचा लिंगट्रेन शिखर था, जो एक सिरे से एक रिज द्वारा 7550 मीटर ऊंचे चांगत्से शिखर से जुड़ा था। चांगत्से तिब्बत में है और इसका लम्बवत ग्लेशियर भी उसी ओर खुलता है। इसके बाद पीछे एकदम चांगत्से से एवरेस्ट का अद्भुत दृश्य दिखता है।

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आगे की स्लाइड में देखिए कब मिला गोरखशेप का मैदान

नव वधू सा शर्मीला एवरेस्ट शिखर दिख रहा था और एवरेस्ट मार्ग का हिलेरी स्टैप भी। एवरेस्ट के सामने था नुप्त्से, जो सदा एवरेस्ट से ऊंचा दिखने की कोशिश करता रहता है। नूप्से से जुड़ा हुआ खुम्मू ग्लेशियर और खुम्भू आइस फाल भी यहां से साफ देखा जा सकता था। हमारी सारी थकान और परेशानियां एकाएक खत्म हो गई थीं और हम वहीं पर रूक कर बहुत देर तक आसपास के शिखरों की तस्वीरें खींचते रहे। शुरू से हमारे साथ रहा अमा देवलम शिखर अब एकदम बदल गया था। थोड़े विश्राम के बाद हमने फिर आगे बढ़ना शुरू किया और बड़े-बड़े पत्थरों तथा कमजोर चट्टानों के बीच संभल कर चलते रहे। करीब आठ किलोमीटर आगे चलकर एक लम्बी चढ़ाई के बाद हमारे सामने था गोरखशेप का मैदान।

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आगे की स्लाइड में जानिए कैसा है गोरखशेप

5,164 मीटर ऊंचाई पर स्थित गोरखशेप में एक बहुत बड़े रेतीली मिट्टी और रेत के मैदान के एक किनारे पर तीन-चार छोटे बड़े होटल या टी हाऊस बने हैं। जिनके बाईं ओर 5545 मीटर ऊंचा काला पत्थर है, जहां से एवरेस्ट का दृश्य बहुत ही सुन्दर दिखता है। गोरखशेप का मैदान वस्तुतः एक झील है, जो साल में सात महीने बर्फ से ढंका और भरा रहता है। 1952 के स्विस एवरेस्ट अभियान में पहली बार गोरखशेप में ही एवरेस्ट बेस कैम्प बनाया गया था। इसके बाद भी कुछ वर्ष तक गोरखशेप को ही एवरेस्ट आधार शिविर के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा। मगर अब बेस कैम्प यहां से 8-9 किलोमीटर और आगे खुम्भू ग्लेशियर पर बनाया जाता है।

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आगे की स्लाइड में जानिए क्यों है गोरखशेप पवित्र

गोरखशेप से भी एवरेस्ट और समीप के शिखरों का दृश्य दिखता रहता है और यहां से पर्वतारोहियों को काला पत्थर तक चढ़ कर एवरेस्ट का विंहगम दृश्य देखने की भी सुविधा है। गोरख शेप में पानी एक स्रोत के रूप में निकलता है, जो ऊपर काला पत्थर से बह कर आता है। ऐसा जन विश्वास है कि इस स्थान पर गुरू गोरखनाथ ने भी तपस्या की थी और इसी लिए गोरखशेप के पानी को बहुत पवित्र माना जाता है। यहां स्थानीय लोग पूजा भी करते हैं। हमारे लिए तो गोरखशेप पवित्र था। इसलिए पवित्र था कि यहां पहुंच कर हम अपने एक बड़े सपने को साकार कर पा रहे थे।

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गोविन्द पन्त राजू

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