×

Goa Election 2022: गोवा में कैथोलिक वोटों पर टिकी सभी दलों की निगाहें, साल्सेट में इनका प्रभुत्व

Goa Election 2022: दक्षिण गोवा के साल्सेट क्षेत्र गोवा के ‘किंगमेकर्स और दलबदलुओं’ के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र से कम से कम चार मुख्यमंत्री हो चुके हैं। साल्सेट कैथोलिक ईसाईयों के प्रभुत्व वाला इलाका है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Deepak Kumar
Published on: 7 Feb 2022 9:31 AM GMT
Goa Election 2022
X

Goa Election 2022 

Goa Election 2022: दक्षिण गोवा (South Goa) के साल्सेट क्षेत्र गोवा के 'किंगमेकर्स और दलबदलुओं' के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र से कम से कम चार मुख्यमंत्री हो चुके हैं। साल्सेट कैथोलिक ईसाईयों के प्रभुत्व वाला इलाका है।

साल्सेट के आठ निर्वाचन क्षेत्र वह आधार रहे हैं जिस पर गोवा का राजनीतिक भाग्य घूमता रहा है। इन सभी आठ सीटों पर लगभग 40 फीसदी से अधिक ईसाई आबादी के साथ यह वह क्षेत्र है जो भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) और संघ परिवार के लिए काफी हद तक अभेद्य रहा है।

मडगांव, फतोर्डा, नावेलिम, कर्टोरिम, बेनौलिम, वेलीम, नुवेम और कनकोलिम (जिसमें साल्सेट शामिल है) की सीटों को तोड़ना मुश्किल साबित हुआ है, भाजपा (Bharatiya Janata Party) ने अब तक सीधे मुकाबले में दो से अधिक सीटें नहीं जीती हैं। भाजपा (BJP) ने मडगांव को तीन बार (1994, 1999 और 2002) केवल इसलिए जीता था क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेसी दिगंबर कामत ने उस भगवा पार्टी के साथ मित्रता कर ली थी। इसी तरह, 2002 और 2007 में भाजपा के दामोदर नाइक द्वारा फतोर्डा को दो बार जीता गया था, उसके बाद वह गोवा फॉरवर्ड पार्टी (Goa Forward Party) के प्रमुख विजय सरदेसाई से हार गए, जिन्होंने अब आगामी चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है।

मनोहर पर्रिकर की रणनीति

2012 में मिशन साल्सेट शुरू करने के लिए भाजपा के दिवंगत मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर (Late Chief Minister Manohar Parrikar) ने एक रणनीति बनाई थी। जिसके तहत भाजपा को सभी आठ सीटों पर चुनाव नहीं लड़ना था बल्कि गैर-कांग्रेसी और स्वतंत्र उम्मीदवारों का समर्थन करना था। बदले में इन प्रत्याशियों को चुनाव बाद भाजपा सरकार का समर्थन करना था। महत्वपूर्ण रूप बात ये है कि पर्रिकर ने भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे को नरम कर दिया था और पार्टी को साल्सेट में कैथोलिक अल्पसंख्यकों के लिए अनुकूल बनाने में सफलता प्राप्त की और अपनी पार्टी का एक आधार तैयार किया।

हालांकि अब मनोहर पर्रिकर (Late Chief Minister Manohar Parrikar) नहीं हैं। और वर्तमान मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत (Chief Minister Pramod Sawant) के नेतृत्व में भाजपा इस महत्वपूर्ण इलाके में पहली बार सभी आठ सीटों पर उम्मीदवार उतार रही है। साल्सेट का राजनीतिक व्यवहार हमेशा राज्य की मुख्यधारा के विपरीत रहा है, और इसके सबसे बड़े नेताओं ने लहरों के खिलाफ मुकाबले जीते हैं।

1967 का जनमत संग्रह

भारत में अपनी तरह का एकमात्र जनमत संग्रह 1967 में गोवा में हुआ था। ये जनमत संग्रह गोवा के बाशिंदों की पहचान निर्धारित करने के बारे में था जिसका परिणाम गोवा के महाराष्ट्र में विलय के खिलाफ गया और अंततः गोवा केंद्र शासित प्रदेश बने रहने दिया गया। इस जनमत संग्रह में साल्सेट एक ऐसा क्षेत्र था जिसने महाराष्ट्र विलय विरोधी समूह के पक्ष में पलड़ा झुकाने में भूमिका निभाई थी। महाराष्ट्र विलय विरोधी समूह ने मराठी के बजाये कोंकणी को एक अलग भाषा के रूप में मान्यता देने की वकालत की।

दरअसल, 1961 में पुर्तगालियों के जाने के बाद, गोवा के पहले मुख्यमंत्री दयानंद बंदोदकर (First Chief Minister of Goa Dayanand Bandodkar) ने महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) का नेतृत्व किया था। उन्होंने राज्य के बहुजन समुदाय को उनकी मराठी भाषा के साथ पहचान को मिलते हुए गोवा के महाराष्ट्र में विलय की लामबंदी की थी। बांदोदकर के प्रतिद्वंद्वी जैक डी सिक्वेरा थे, जिन्होंने यूनाइटेड गोअन्स पार्टी (यूजीपी) का नेतृत्व किया। ये पार्टी मुख्य रूप से कैथोलिक हितों का प्रतिनिधित्व करती थी और उच्च जाति के हिंदू जमींदारों द्वारा समर्थित थी। इन दोनों वर्गों ने पुर्तगाली शासन के साथ अपने गठबंधन से खूब फायदा उठाया था। लेकिन साल्सेट क्षेत्र ने जनमत संग्रह के नतीजों में निर्णायक भूमिका निभाई थी और यह सुनिश्चित किया था कि गोवा एक अलग इकाई बना रहे।

अब राजनीतिक अवसरवाद

किसी जमाने में भले ही ऊंचे सिद्धांतों पर लड़ाई लड़ी गयी थी लेकिन हाल के दशकों में साल्सेट की आबादी के दिल और दिमाग को जीतने के लिए चुनावी प्रतिद्वंद्विता राजनीतिक अवसरवाद में बदल गई है।

अलेमाओ, पाचेको और कांग्रेस के पूर्व विधायक एलेक्सो लौरेंको जैसे सीरियल दलबदलू साल्सेट की राजनीति का एक हिस्सा बन गए हैं,। जबकि अनंत नाइक और विजय सरदेसाई जैसे लोग किंगमेकर की भूमिका निभाते हैं। इन्हीं जैसों के निर्णायक समर्थन ने पर्रिकर की मदद की थी ज्सिएक बाद 2017 में भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन बना था। पर्यवेक्षकों के अनुसार, यहां चुनाव मुख्य रूप से भावनात्मक मुद्दों पर लड़े जाते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि साल्सेट के मतदाता, विशेष रूप से कैथोलिक, किसी भी नई पार्टी के लोकलुभावन वादों की भावनाओं में तुरंत बह जाते हैं।

सभी की जड़ें साल्सेट में

भाजपा और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस हो या रिवोल्यूशनरी गोवा पार्टी, गोवा में सभी की जड़ें साल्सेट में हैं। गोवा में आप की नींव एल्विस गोम्स ने रखी थी, जिन्होंने 2020 में केजरीवाल की पार्टी छोड़ दी औरA कांग्रेस में चले गए।

मनोज परब के नेतृत्व वाली रिवोल्यूशनरी गोवा पार्टी, जिसकी तुलना कुछ लोग पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना से करते हैं, गोवा के 'भूमि पुत्रों' का नारा अबुलंद कर रही कि कैसे गोवा के मूल निवासियों को नौकरी और अवसरों से वंचित किया गया है। इस पार्टी ने सभी 40 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं। रिवोल्यूशनरी गोवा पार्टी ने वादा किया है कि सत्ता में आने पर वह गोवा विधानमंडल में पर्सन ऑफ गोअन ओरिजिन विधेयक पारित करायेगी और गोवा के लोगों को नौकरियों और सरकारी योजनाओं में उनका अधिकार दिलायेगी।

पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व कांग्रेसी लुईजिन्हो फलेरियो (Former Chief Minister Luizinho Faleiro) (नावेलिम से सात बार के विधायक) के पार्टी में शामिल होने के बाद तृणमूल ने भी साल्सेट के माध्यम से गोवा में प्रवेश किया है। फलेरियो के बाद अलेमाओ भी तृणमूल में शामिल हो गए थे और अब वह अपने गढ़ बेनाउलिम से पांचवीं बार चुनाव लड़ रहे हैं। ये दोनों निर्वाचन क्षेत्र अब आप की घेराबंदी में हैं, जिसने नवेलिम से अधिवक्ता प्रतिमा कौटिन्हो और बेनाउलिम से कैप्टन वेन्जी वीगास को मैदान में उतारा है।

2019 में, कांग्रेस के 10 विधायकों के बड़े पैमाने पर भाजपा में शामिल होने के कारण भाजपा ने कनकोलिम, वेलिम और नुवेम की सीटें हासिल कीं थीं। वैसे, भाजपा के मंत्री फिलिप नेरी रोड्रिग्स (वेलिम) और मौजूदा विधायक विल्फ्रेड डी सा (नुवेम) दोनों टिकटों से वंचित होने के बाद चुनाव से पहले भाजपा से अलग हो चुके हैं। सो अब भाजपा के पास इस क्षेत्र से कनकोलिम विधायक क्लैफसियो डायस ही बचे हैं। मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने पिछले महीने कहा था कि मिशन साल्सेट की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया था कि क्षेत्र में उनकी सरकार का विकास कार्य भाजपा के लिए विजय लेकर आएगा।

गोवा में पहली बार सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही भाजपा ने कैथोलिक समुदाय से 12 या 30 प्रतिशत उम्मीदवार उतारे हैं। दस साल पहले 2012 के चुनाव में पार्टी ने इसके आधे यानी छह कैथोलिक उम्मीदवार मैदान में उतारे थे और सभी विजयी हुए थे। 2017 के चुनाव में भाजपा ने सात कैथोलिकों को मैदान में उतारा, जिनमें से सभी विधायक बने।

राज्य में भारतीय जनता पार्टी Bharatiya Janata Party) के 3.5 लाख सदस्य हैं जिनमें से 18 फीसदी ईसाई हैं। वैसे, गोवा की आबादी में हिंदुओं की संख्या 66 फीसदी से अधिक है। राज्य में लगभग 25 फीसदी ईसाई और 8 फीसदी मुस्लिम हैं। भाजपा ने इस चुनाव में किसी मुस्लिम को उम्मीदवार नहीं बनाया है।

दोस्तों देश और दुनिया की खबरों को तेजी से जानने के लिए बने रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलो करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Deepak Kumar

Deepak Kumar

Next Story