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Goa Election 2022: भंडारी समाज और ईसाई वोट हो संकते हैं निर्णायक

Goa Election: भंडारी समाज के अलावा जो सबसे बड़ा वोट बैंक है वह है ईसाईयों का। ईसाई मतदाताओं की संख्या लगभग 26 प्रतिशत है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Monika
Published on: 13 Jan 2022 12:02 PM IST (Updated on: 15 Jan 2022 6:42 PM IST)
Goa election 2022
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गोवा विधानसभा चुनाव (photo : social media ) 

Goa Election 2022: गोवा विधानसभा चुनाव (Goa vidhan sabha chunav 2022) में जाति-आधारित विभाजन (caste division) जरूर अपना असर दिखाने की क्षमता रखता है। गोवा के 11 लाख मतदाताओं में से 30 फीसदी भंडारी समाज (Bhandari community) समुदाय के हैं और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में इनकी महत्वपूर्ण मौजूदगी है। इस वोट के खिसकने से चुनाव नतीजे निर्णायक साबित हो सकते हैं। भंडारी समाज के अलावा जो सबसे बड़ा वोट बैंक (vote bank) है वह है ईसाइयों (Christians) का। किसी निर्वाचन क्षेत्र में भंडारी समाज और ईसाई मतदाताओं के मिल जाने का मतलब होता है कि उस प्रत्याशी की जीत तय है।

गोवा में ईसाई मतदाताओं (Christian voters) की संख्या लगभग 26 प्रतिशत है। दक्षिण गोवा जैसे ईसाई बहुल नुवेम, बेनौलिम और वेलिम जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में 80 प्रतिशत मतदाता ईसाई हैं। अगर भंडारी समाज (Bhandari community) और ईसाई वोटर आपस में मिल जाते हैं तो इसे नजरदांज करना किसी भी दल के लिए भारी नुकसान हो सकता है। भंडारी समाज - ईसाई मतदाता कॉम्बिनेशन कम से कम 25 निर्वाचन क्षेत्रों में उथल-पुथल पैदा कर सकता है।

मिसाल के तौर पर नार्थ गोवा के कलंगुट निर्वाचन क्षेत्र में 51 फीसदी ईसाई मतदाता और 21 फीसदी भंडारी समाज के वोटर हैं। ये दोनों अगर मिल गए तो इनका समर्थन किसी भी प्रत्याशी को बड़ी जीत दिला सकता है। इसी तरह

दक्षिण गोवा के नवेलिम में ईसाई मतदाता 39 प्रतिशत और भंडारी समाज 13 प्रतिशत है सो ऐसे में ये संयुक्त रूप से किसी भी प्रत्याशी को जिताने में सक्षम है। उत्तरी गोवा के सालिगाओ में तो भंडारी समाज लगभग 45 प्रतिशत और ईसाई मतदाता 30 प्रतिशत हैं यानी दोनों मिला कर 75 प्रतिशत वोटर बेस है। दक्षिण गोवा के क्यूपेम में ईसाई 34 प्रतिशत और भंडारी समाज 21 प्रतिशत है।

राजनीतिक दलों की रणनीति

राजनीतिक दल जानते हैं कि 25 निर्वाचन क्षेत्रों में क्या स्थिति है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल (Arvind Kejriwal) गोवा में भंडारी समाज के कार्यालय जा चुके हैं, गोवा फॉरवर्ड पार्टी ने तो भंडारी समाज के किरण कन्दोलकर को अपना कार्यकारी अध्यक्ष बना रखा था लेकिन किरण पाला बदल कर तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress)में चले गए। आप की रणनीति को पंचर करने के लिए भाजपा किसी ईसाई चेहरे को आगे बढ़ा सकती है जिसे चुनाव जीतने की स्थिति में मुख्यमंत्री बनाया जा सके लेकिन ईसाई नेताओं द्वारा भाजपा छोड़ने से स्थिति थोड़ी बदल गयी है। जहाँ तक कांग्रेस की बात है तो जबतक दिगंबर कामत का गोवा कांग्रेस में दबदबा है तब तक पार्टी किसी ईसाई को मुख्यमंत्री नहीं बनायेगी।

भाजपा (BJP) के लिए एक संकटपूर्ण स्थिति ये है कि उसके कई ईसाई विधायक पार्टी को अलविदा कह रहे हैं। सामूहिक दलबदल भगवा पार्टी के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है। ताजा मामला कलंगुट के विधायक और मंत्री माइकल लोबो का है जिन्होंने दो दिन पहले विधायकी और भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। लोबो अपनी पत्नी दलीला के लिए सिओलिम सीट से टिकट की पैरवी कर रहे थे और उसमें सफल नहीं रहने से नाराज थे। वे उत्तरी गोवा के एक मजबूत नेता हैं और माना जाता है कि कम से कम 5-6 निर्वाचन क्षेत्रों में उनका प्रभाव है। अपने इस कदम का बचाव करते हुए लोबो ने कहा कि मतदाता मुझे बता रहे हैं कि भाजपा अब आम लोगों की पार्टी नहीं है। आम कार्यकर्ता (पार्टी कार्यकर्ता) का अब पार्टी में कोई महत्व नहीं है। पार्टी छोड़ने वाले वे पहले भाजपा विधायक नहीं हैं। पिछले महीने कार्टोलिम विधायक अलीना सलदान्हा ने भाजपा छोड़ दी थी। अलीना आप में शामिल हो गईं, जबकि वास्को से एक अन्य ईसाई विधायक कार्लोस अल्मेडा ने भाजपा छोड़ कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। अटकलें लगाई जा रही हैं कि वेलिम विधायक और मंत्री फिलिप नेरी रोड्रिगेज और नुवेम विधायक विल्फ्रे डी सा उर्फ बाबशान भी जल्द ही भाजपा छोड़ सकते हैं।

इन विधायकों के भाजपा छोड़ने के पीछे मुख्य कारण भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की बेचैनी है। ये विधायक ईसाई बहुल निर्वाचन क्षेत्रों से आते हैं, जहां भाजपा का जनाधार बहुत कम है। नतीजे के डर से ये विधायक कांग्रेस, आप और टीएमसी जैसे विकल्पों की कोशिश कर रहे हैं।

भाजपा का गोवा सफ़र (BJP Goa Journey)

गोवा में जनसंघ और भाजपा ने 1972 से (जनता पार्टी के साथ संयुक्त प्रयास को छोड़कर) तीन प्रयास किए थे, लेकिन इनमें से किसी भी चुनाव में दो प्रतिशत से अधिक वोट हासिल नहीं कर सके। 1989 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सात सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन उसे भी दो प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिले। 1991 के लोकसभा चुनाव में पर्रिकर को उत्तरी गोवा में 18 फीसदी वोट मिले और वह तीसरे स्थान पर पहुंच गए। इसी तरह, दक्षिण गोवा में श्रीपद नाइक ने 14 प्रतिशत वोट पाकर तीसरा स्थान हासिल किया।

1994 के विधानसभा चुनाव में एमजीपी के साथ गठबंधन करके, भाजपा ने चार सीटें जीतकर आठवीं विधानसभा में पदार्पण किया। विजी लोग थे - मनोहर पर्रिकर (पणजी), श्रीपद नाइक (मडकाई), दिगंबर कामत (मडकाओ) और नरहरि हल्दनकर (वालपोई)। इसके बाद 1999 में यह 10 सीटों, 2002 में 17 सीटों और 2007 में गिरकर 14 सीटों तक पहुंच गई। लेकिन भाजपा गोवा के 40 सदस्यीय सदन में 21 सीटों पर बहुमत तभी हासिल कर सकी जब पार्टी ने कांग्रेस के दलबदलुओं या एमजीपी और यूजीडीपी जैसे छोटे दलों की मदद ली।

Monika

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Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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